हर हाल में 12 से संचालित होंगे निजी विद्यालय : एसोसिएशन

उन्होंने कहा कि जब विभिन्न प्रदेशों में चुनाव कराए जा सकते हैं जहां लाखों की भीड़ में रैलियां हो रही हैं सभाएं हो रही हैं तो कोरोना वायरस के नाम पर बंदी सिर्फ शिक्षण संस्थानों में ही क्यों है? वक्ताओं ने कहा कि सरकारी विद्यालयों के बंद होने पर शिक्षकों एवं संबंधित कर्मियों का वेतन मिलता है जबकि, निजी विद्यालयों की आमदनी शून्य हो जाती है और शिक्षक तथा कर्मियों के जीवन मरण का सवाल खड़ा हो जाता है. क्या सरकार इसकी भरपाई करेगी?


 






- सरकार के फैसले को बताया अव्यावहारिक
- डीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर: नगर में प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के जिला इकाई के द्वारा एक धरना कार्यक्रम का आयोजन समाहरणालय के नजदीक स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर परिसर के बगल में किया गया. मौके पर जिले भर से पहुंचे निजी विद्यालयों निजी विद्यालयों को कोरोना के नाम पर बंद किए जाने का विरोध जताया. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार 11 अप्रैल तक यदि स्कूलों की अनुमति नहीं देती है तो भी 12 अप्रैल से स्कूल खोले जाएंगे. 

उन्होंने सवाल किया कि विद्यालय में छात्र सबसे अनुशासित होते हैं, जो अपने शिक्षकों के निर्देशों का अच्छे से पालन करते हैं. फिर यदि कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए वर्ग संचालन किया जाए तो इसमें सरकार के द्वारा आपत्ति क्यों है? विद्यालय के शिक्षक एवं उनके परिवार का जीवन यापन एकमात्र स्रोत विद्यालय से प्राप्त होने वाला वेतन है. यदि विद्यालय को बंद कर दिया जाए तो विद्यालय से जुड़े शिक्षक एवं अन्य कर्मियों की आजीविका कैसे चलेगी? 




शिक्षकों ने प्रशासन तथा सरकार से यह सवाल किया कि बार-बार विद्यालय के बंद होने से बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है क्या ऐसा कर छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं किया जा रहा है? उन्होंने कहा कि जब विभिन्न प्रदेशों में चुनाव कराए जा सकते हैं जहां लाखों की भीड़ में रैलियां हो रही हैं सभाएं हो रही हैं तो कोरोना वायरस के नाम पर बंदी सिर्फ शिक्षण संस्थानों में ही क्यों है? वक्ताओं ने कहा कि सरकारी विद्यालयों के बंद होने पर शिक्षकों एवं संबंधित कर्मियों का वेतन मिलता है जबकि, निजी विद्यालयों की आमदनी शून्य हो जाती है और शिक्षक तथा कर्मियों के जीवन मरण का सवाल खड़ा हो जाता है. क्या सरकार इसकी भरपाई करेगी?


सफल नहीं है वर्चुअल कक्षा चलाने का प्रयोग:

एसोसिएशन के सदस्यों ने कहा कि वर्चुअल कक्षा कई कारणों से एक सफल प्रयोग नहीं है. सभी अभिभावक अपने बच्चों को स्मार्टफोन उपलब्ध नहीं करा सकते. साथ ही नेटवर्क की अनुपलब्धता अक्सर बनी रहती है. ऐसे में वर्चुअल कक्षा की बात बेमानी है. विद्यालय संचालकों ने कहा कि उन्हें अतिरिक्त भार भी वाहन करना पड़ता है, जिनमें हाउसिंग टैक्स, वाहनों का बीमा, परमिट, रोड टैक्स, बिजली बिल, ईपीएफ, बैंकों से लिए गए लोन आदि प्रमुख हैं. क्या इनकी भरपाई सरकार करेगी? उन्होंने यह भी पूछा कि कई वर्षों से आरटीआई एक्ट के तहत लंबित राशि का भुगतान नहीं हुआ है, इसका जिम्मेदार कौन है? मौके पर मौजूद शिक्षकों ने उन्हें भी कोरोना वॉरियर्स का दर्जा देने की बात कही क्योंकि, वह बच्चों सहित सारे समाज को कोरोना नियमों का अनुसरण करने की सलाह देते हैं. स्कूल संचालकों ने एक स्वर में कहा कि कोरोना वायरस के प्रभाव को देखते हुए कोरोना संक्रमण में क्षेत्र को माइक्रो कंटेनमेंट जोन बनाया जाए ना कि, शैक्षणिक संस्थानों को बंद किया जाए. बाद में इन सभी बातों से बिहार के मुख्यमंत्री को अवगत कराने हेतु एक पत्र जिला पदाधिकारी के माध्यम से सौंपा गया जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया की सरकार 11 अप्रैल तक शैक्षणिक संस्थानों के पक्ष में कोई सकारात्मक निर्णय लें और 12 अप्रैल से कोविड-19 कॉल के आलोक में शिक्षण संस्थानों को खोलने की अनुमति दें. अगर सरकार इन बातों पर गंभीरता से विचार नहीं करती है तो शैक्षणिक संस्थान के बंदी संबंधी आदेश को नहीं माना जाएगा. मौके पर रविन्द्र सिंह, भरत प्रसाद, सरोज सिंह, मोहन चौबे, निर्मल कुमार सिंह, अनिरुद्ध सिंह, योगेंद्र कुमार, राजेश चौबे, संदीप राय राहुल राज, प्रभाष सिंह समेत कई विद्यालय संचालक मौजूद थे.







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