वीडियो: एक निशाचर की डायरी .. सुलगता श्मशान, बेखौफ इनसान ..

धधकती चिताओं और सिसकते लोगों के आंसुओं के बीच घाट का बाज़ार जो श्मशान घाट से रामरेखा घाट तक पसरा हैं देर रात तक निर्बाध रूप से चालू हैं. अंत्येष्टि के बाद मां गंगा  में डुबकी लगाकर मृतात्मा को तिलांजलि पर पूड़ी-जलेबी और पेड़ा खाने की परंपरा कोरोना काल में भी जारी है इसलिए रामरेखा घाट पर हलवाइयों चूल्हे पूड़ी- जलेबी तैयार करने के लिए 24 घंटे जलते रहते हैं. 

 







- रात की वीरानगी में लगातार सुलगता शमशान
- मौत के तांडव के बीच भी जीवन तलाशते लोग


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर:  श्मशान घाट की उबड़-खाबड़ पगडंडियों से नीचे उतरते ही माँ गंगा की आँचल में तीन दर्जन चिताएं धूं-धूं कर जल रही हैं और चिरायंध गन्ध और गर्मी से पूरा मंजर दहकती भठ्ठी जैसा दिख रहा है और देर रात मानो गंगा का शीतल पावन जल शांत है कहीं, गंगा की धार नहीं है फिर भी श्मशान घाट पर चिताओं की भीड़ बढ़ती ही जा रही हैं, रात ढल रही हैं. लकड़ियों की चिताएं लगाई जा रही हैं. लकड़ी बेचने वालों की लकड़ी लोहे से भी महंगी हो गई हैं. तो श्मशान घाट के डोम राजा की फीस डॉक्टरों से कम नहीं हैं. धधकती चिताओं और सिसकते लोगों के आंसुओं के बीच घाट का बाज़ार जो श्मशान घाट से रामरेखा घाट तक पसरा हैं देर रात तक निर्बाध रूप से चालू हैं. अंत्येष्टि के बाद मां गंगा  में डुबकी लगाकर मृतात्मा को तिलांजलि पर पूड़ी-जलेबी और पेड़ा खाने की परंपरा कोरोना काल में भी जारी है इसलिए रामरेखा घाट पर हलवाइयों चूल्हे पूड़ी- जलेबी तैयार करने के लिए 24 घंटे जलते रहते हैं. 


पिता के चिता की आग ठंडी होने से पहले पहुंच गई पुत्री की लाश:

रात के 9:30 बज रहे हैं. शव वाहन तेजी से भागते हुए श्मशान घाट की तरफ जा रहा है. श्मशान घाट पर मौजूद लोग शव वाहन को रास्ता देते हैं आधा- अधूरा पीपीई पहले दो युवा शव उतारते हैं और दाह-संस्कार के प्रबंध में जुट जाते हैं. लकड़ी वाले से मोलभाव करते हैं. बताते हैं कि, अभी दोपहर में ही तो लकड़ी इस भाव से खरीदी थी. उत्सुकतावश पूछने पर युवाओं में से एक बताते हैं कि लाश पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के बलिया की रहने वाली स्वाति पांडेय की है जिनकी उम्र केवल 22 वर्ष है. वह उनकी चचेरी बहन हैं. इसी नवंबर माह में इनकी शादी होनी थी लेकिन, संक्रमण से इनका निधन हो गया इसके पूर्व दोपहर में इनके पिताजी 55 वर्षीय राजेन्द्र पांडेय का भी निधन हो गया है. युवक लगभग बुझने के कगार पर पहुंच चुकी सुलगती चिता की ओर इशारा करता है और बताता है कि, वह उनके पिता के चिता है जिस की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई है. 



वहीं, पास में ही पीपीई किट पहनकर अपने स्वजन का अंतिम संस्कार कर रहे भोजपुर जिले के रहने वाले सुनील कुमार तिवारी बताते हैं कि यह उनके चाचा की लाश है. वह सैप में कार्यरत हैं और एसपी ऑफिस में ड्यूटी कर रहे थे. इसी बीच वह संक्रमण के शिकार हो गए. चिकित्सकों के काफी प्रयास के बाद उन्हें बचाया नहीं जा सका. डुमराँव कोविड केंद्र में उन्होंने अंतिम सांस ली.


मृत्यु प्रमाण पत्र देने वाला कोई नहीं:

शव को शवदाह स्थल पर रखकर युवक नगर परिषद के द्वारा निर्गत होने वाली शवदाह पर्ची लेने के लिए काउंटर पर पहुंचते हैं. काउंटर बंद है. युवक बताते हैं कि दिन में भी जब यहां पहुंचे थे तो उनसे कहा गया था कि शवदाह का प्रमाण पत्र बाद में ले लीजिएगा. वहां लिखे नंबर पर फोन करने पर उधर से आवाज आती है कि मैं ऑफ ड्यूटी हूं. हैरान-परेशान दोनों युवक मिन्नतें करते हैं जिसके बाद उक्त कर्मी थोड़ी देर में आने की बात कहते हैं.


मौके का फायदा उठाने में जुटे हैं लकड़ी विक्रेता:

श्मशान घाट पर एक साथ तकरीबन डेढ़ दर्जन लाशें जलती हुई दिखाई दे रही हैं तभी कुछ लोग अलग-अलग लाशें लेकर शवदाह के लिए पहुंचते हैं. लकड़ी विक्रेताओं से बातचीत शुरु होती है. आम की लकड़ी 14 सौ रुपये मन(40 किलो), सागवान की लकड़ी 24 सौ रुपये मन देने की बात कहते हैं. तय होता है कि कम से कम चार मन लकड़ी लेने पर बेहतर तरीके से शवदाह हो पाएगा. इसी बीच जब संवाददाता कैमरा लेकर पूछना शुरु करते हैं तो दुकानदार मन के जगह भाव क्विंटल में हो जाता है.  आम की लकड़ी 12 सौ रुपये क्विंटल तथा सागवान की लकड़ी 24 सौ रुपये बताई गई. यह पूछने पर कि अभी दूसरे हिसाब से लकड़ी क्यों बेची जा रही थी लकड़ी विक्रेताओं के पास कोई जवाब नहीं रहता.


रामरेखा घाट पर 1:00 बजे तक मिल सकती है पूरी-सब्जी:

रात तकरीबन 10:15 मिनट  पर रामरेखा घाट पर शवदाह कर पहुंचे लोग स्नान कर वापस लौट रहे हैं तभी अधखुले दुकान की शटर के पास से आवाज आती है. मिठाई लेनी है पूरी सब्जी लेनी है ठिठक कर पूछने पर मालूम चलता है कि, मिठाई दुकानदार दुकान के बाहर बैठकर आर्डर ले रहे हैं बताया जाता है रात को 1:00 बजे आवश्यकता होगी दुकानदार ने कहा कि 1:00 बजे भी पूरी सब्जी उपलब्ध हो जाएगी. संदेह होने पर दुकानदार पूछ बैठते हैं कहीं आप पत्रकार तो नहीं? ना कहने पर वह आश्वस्त होकर कहते हैं आप आराम से आइए व्यवस्था हो जाएगी.


शादी की खुशियों में मौत के मातम भूल गए हैं लोग:

रात 10:30 बजे, नजारा पुस्तकालय रोड का है. नाचते-गाते लोगों के साथ बारात गुजर रही है. बारात में अधिसंख्य महिलाएं भी हैं. लगभग लोगों ने मास्क नहीं पहना है. ऐसा लग रहा है जैसे जिस कोरोना से पूरा विश्व आक्रांत है वह अस्तित्व में ही नहीं है. पिछले दिनों बिहार पुलिस के मुखिया के द्वारा जारी पत्र के अनुसार बिना स्थानीय थाने की अनुमति लिए विवाह समारोह नहीं हो सकता. हालांकि, अनुमति देने के बाद निगरानी में कोताही इस तरह के दृश्य पैदा कर रही है.


बाजार में 4:00 बजे तक खोलनी है मिठाई दुकान, स्टेशन पर कोई पाबंदी नहीं:

बक्सर रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को लेकर ट्रेन पहुंचती है. यात्री निकलकर अपने गंतव्य को रवाना होते हैं. इसी बीच आवाज आती है मिठाई ले लीजिए, पापड़ी ले लीजिए. कुछ लोग रुक कर खरीदारी करने लगते हैं. इसी बीच भी दुकानदार से समय पूछा जाता है तो दुकानदार 10:45 होने की बात बताते हैं. और फिर से अपने काम में लग जाते हैं पास में ही रेस्टोरेंट भी खुला हुआ है जहां लोग आराम से बैठकर भोजन कर रहे हैं.


भूख के आगे कोरोना का भय गायब: 

रात तकरीबन 11:10 हो रहे हैं. बाजार समिति रोड में एक व्यक्ति कचरे में कुछ ढूंढता हुआ दिखाई देता है. पूछने पर बताता है कि कबाड़ी ढूंढ रहा हूं बेच कर भोजन का प्रबंध करूंगा. उधर रामरेखा घाट पर भी रात्रि 1:00 बजे तक घाट पर स्नान कर लौट रहे लोगों से भिक्षा की याचना कर रही महिलाओं से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कोरोना से बचने के साथ ज्यादा भूख से भी बचना जरूरी है. दुकानदार पूरी सब्जी दे रहा है लोग लेकर घाट की तरफ बैठकर खाने के लिए जा रहे हैं. 


सन्नाटे को चीरती एंबुलेंस के सायरन की आवाज, बेखौफ फुटपाथ पर सो रहे लोग:

रात के तकरीबन 1:15 कोविड-19 के सामने सन्नाटा पसरा हुआ है कुत्तों की रोने की आवाज आ रही है रात के 1:25 मिनट गोलंबर के समीप एक निजी नर्सिंग होम के नजदीक ही फुटपाथ पर सो रहे लोग. इसी बीच सायरन बजाती हुई एंबुलेंस पहुंचती है. संभवत: किसी बीमार को लेकर दाखिले के लिए परिजन पहुंचे हैं. आनन-फानन में चिकित्सक बाहर निकलते हैं. मरीज के परिजनों को अंदर ले कराने का निर्देश देते हैं लेकिन, इन सबसे बेखबर फुटपाथ पर लोग सो रहे हैं.

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