संक्रमण काल में वनवे हुई जेल, न्यायालय हुए बंद तो नहीं मिल रही बेल ..

जेल जाने वालों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन, छूटने वालों की संख्या नगण्य रहने से जेलों पर भी अतिरिक्त बोझ बढ़ जा रहा है. अधिवक्ताओं का कहना है कि उच्चतम न्यायालय के द्वारा 7 साल से कम सजा मामले में लोगों की गिरफ्तारी पर रोक लगाई है. लेकिन, ना तो पुलिस कर्मियों के द्वारा और ना ही निचली अदालतों के द्वारा इस बात का अनुपालन किया जा रहा है.





- जेल जा रहे लोगों को नहीं मिल रही बेल, न्यायालय पर बढ़ता जा रहा लंबित मामलों का बोझ 
- अधिवक्ताओं ने बताई व्यथा, कहा- उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का नहीं हो रहा अनुपालन

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर:  कोरोना काल में न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. दूसरी तरफ जेल जाने वाले लोगों को बेल नहीं मिल रही है. ऐसे में जेल में भी क्षमता से अधिक कैदी भरे हुए हैं. ऐसे में संक्रमण फैलने की आशंका तो बलवती हो ही रही है साथ ही साथ बेल नहीं मिलने के कारण आम जनमानस को भी खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. संक्रमण काल में न्यायालय के सभी तरह की गतिविधियां बंद पड़ी हुई हैं. ऐसे में जेल जाने वालों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन, छूटने वालों की संख्या नगण्य रहने से जेलों पर भी अतिरिक्त बोझ बढ़ जा रहा है. अधिवक्ताओं का कहना है कि उच्चतम न्यायालय के द्वारा 7 साल से कम सजा मामले में लोगों की गिरफ्तारी पर रोक लगाई है. लेकिन, ना तो पुलिस कर्मियों के द्वारा और ना ही निचली अदालतों के द्वारा इस बात का अनुपालन किया जा रहा है. 

वरिष्ठ अधिवक्ता रेणु रणविजय ओझा ने बताया कि जिस प्रकार पिछले कोरोना काल में वर्चुअल मोड में सुनवाई हो रही थी उस प्रकार अबकी बार ऐसा नहीं हो रहा. इस साल भी  वैसी ही व्यवस्था की जा सकती हैं. व्हाट्सएप से वीडियो कॉलिंग या ग्रुप कॉलिंग के माध्यम से सुनवाई की प्रक्रिया की जा सकती है, जिससे कि लोगों को राहत होगी. साथ ही साथ न्यायालय में भी लंबित मामलों का बोझ नहीं बढ़ेगा. जहां तक रिकॉर्ड देखने की बात हो सकती है तो उसे भी व्हाट्सएप आदि के माध्यम से स्कैन कर शेयर किया जा सकता है लेकिन, इस संबंध में पहल किए जाने की नितांत आवश्यकता है अन्यथा न्यायालय पर लंबित मामलों की संख्या काफी बढ़ जाएगी.




अधिवक्ता उमेश कुमार बताते हैं कि वर्तमान परिस्थिति में जेल ओवरलोड हो गया है. उन्होंने बताया कि माननीय उच्चतम न्यायालय का यह निर्देश है कि 7 साल से कम सजा के मामलों में गिरफ्तारी न हो लेकिन, न तो पुलिसकर्मी इस बात को मान रहे हैं और ना ही न्यायालय द्वारा इसकी मॉनिटरिंग हो रही है. इस तरह से पुलिस लोगों को पकड़कर न्यायालय के समक्ष ला रही है उसी तरह न्यायिक मजिस्ट्रेट उसे फॉरवर्ड भी कर दे रहे हैं. ऐसे में सीधे तौर पर यह उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना है. उन्होंने कहा कि, बताया जा रहा है कि पिछले 1 महीने से जमानत की किसी भी याचिका पर सुनवाई नहीं हुई है, ना ही कोई कैदी जेल से छूटे हैं. बताया जा रहा है कि तकरीबन एक हजार से ज्यादा जमानत आवेदनों को दाखिल तक नहीं किया जा सका है.

क्षमता से दोगुना कैदी केंद्रीय कारा में हैं बंद:

जेल सूत्रों के अनुसार जेल में भी क्षमता से बहुत अधिक कैदी वर्तमान में रह रहे हैं क्षमता के मुताबिक जहां 777 रखने कैदियों के रखे जाने की व्यवस्था केंद्रीय कारा में है वहीं कैदियों की संख्या तकरीबन 18 सौ पहुंच गई है. ऐसे में वार्डों में ठूंस-ठूंस कर कैदियों को रखना मजबूरी है. लिहाजा कैदियों को मिलने वाली सुविधाओं में भी कमी आना लाजमी है. जेल सूत्र बताते हैं कि, शौचालय अथवा स्नानागार का प्रयोग करने के लिए कैदियों को लंबी लाइन लगानी पड़ती है. कोरोना गाइडलाइंस का तो यहां कोई मतलब ही नहीं है.

14 दिनों के लिए बिक्रमगंज भेजे जा रहे हैं कैदी:

बक्सर केंद्रीय कारा में कैदियों की बड़ी संख्या को देखते हुए संक्रमण से बचाव के लिहाज से कैदियों को बिक्रमगंज मंडल कारा भेजने की व्यवस्था की गई है. जहां से 14 दिन के बाद उन्हें पुनः बक्सर जेल में स्थानांतरित कर दिया जाता है. यहां भी उन्हें तकरीबन 1 हफ्ते तक अति उच्च सुरक्षा वार्ड (अंडा सेल) में रखा जाता है जिसके बाद उन्हें अन्य कैदियों के साथ दूसरे वार्ड में शिफ्ट किया जाता है. पिछले साल कोरोना काल में यह व्यवस्था शुरु की गई थी जिसके तहत कैदियों को गिरफ्तारी के बाद बिक्रमगंज भेज दिया जाता है. अधिवक्ता रेणु रण विजय ओझा ने बताया कि बिक्रमगंज जेल भेजे जाने के बाद भी परेशानियां बढ़ जाती हैं. वहां से वकालतनामा लाना हो अथवा कैदियों के परिजनों को कैदियों से मुलाकात करनी हो सभी मामलों में काफी परेशानी होती है. ऐसे में मामलों की ऑनलाइन सुनवाई के बारे में सहानुभूति पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है. उधर रविवार को एक बार फिर अधिवक्ता संघ ने जानकारी दी है कि न्यायालय में 25 मई तक कार्य नहीं होंगे.







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