गृहस्थी संभालने के साथ बक्सर की बहुएं अब बन रही अफसर ..

भारतीय परिवेश में शादी के बाद आमतौर पर बहुओं की पढ़ाई छूट जाती थी. शादी के बाद केवल चूल्हा-चौका तथा बर्तन ही उनका जीवन माना जाता था लेकिन, बदलते परिवेश में यह सोच अब बदल रही है. ऐसे में लोगों ने बहुओं को भी बेटियों का दर्जा देना शुरू कर दिया है. परिणाम स्वरूप बीपीएससी जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा में भी बक्सर की बहुओं ने शानदार प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है.




- मंझरिया की बहू ने पहले ही प्रयास में पाई सफलता
- पिछले वर्ष भी बक्सर की बहू बनी थी ऑफिसर

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: भारतीय परिवेश में शादी के बाद आमतौर पर बहुओं की पढ़ाई छूट जाती थी. शादी के बाद केवल चूल्हा-चौका तथा बर्तन ही उनका जीवन माना जाता था लेकिन, बदलते परिवेश में यह सोच अब बदल रही है. ऐसे में लोगों ने बहुओं को भी बेटियों का दर्जा देना शुरू कर दिया है. परिणाम स्वरूप बीपीएससी जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा में भी बक्सर की बहुओं ने शानदार प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है. ऐसे में अपनी प्रतिभा के बल पर बहुएं अब एक नहीं बल्कि दो खानदानों का नाम रोशन कर रही हैं. 

पिछले ही वर्ष नगर के नया बाजार इलाके के रहने वाले रामनाथ ओझा की पुत्र वधू अमृता ने बीपीएससी की परीक्षा में सफलता प्राप्त की थी वहीं, इस वर्ष एक बार फिर सदर प्रखंड के मंझरिया गांव निवासी पेशे से ठीकेदार तथा बिजली दुकान संचालक अशोक सिंह की पुत्रवधू अंकिता सिंह ने अपने पहले ही प्रयास में 242 वां स्थान लाकर रेवेन्यू ऑफिसर का पद प्राप्त किया है.




मंझरिया की बहू ने पहले ही प्रयास में प्रतियोगी परीक्षा में लहराया परचम:

बहू की सफलता पर अशोक सिंह खुशी से फूले नहीं समा रहे. उन्होंने बैंड-बाजा बजवा कर इस खुशी का इजहार किया. उन्होंने पूरे मोहल्ले में मिठाइयां बांटी. बहू की सफलता पर उनके चेहरे पर एक ससुर नहीं बल्कि, एक पिता की तरह हर्ष का भाव देखने को मिल रहा था. उन्होंने बताया कि इसी वर्ष अप्रैल माह की 26 तारीख के पुत्र प्रतीक कुमार सिंह की शादी अंकिता से हुई थी. शादी के बाद अंकिता को उन्होंने बहू नहीं बल्कि, बेटी का दर्जा दिया. पढ़ाई के लिए उन्होंने कभी रोका-टोका नहीं, जिसका परिणाम आज बहू ने खानदान का नाम रोशन कर दिया है.


सरकारी स्कूल में शिक्षिका अमृता ने देखा था बड़ा ख्वाब:

पिछले साल बीपीएससी की परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के बाद राजगीर में बतौर श्रम प्रवर्तन पदाधिकारी कार्यरत अमृता कुमारी नया बाजार स्थित आदर्श मध्य विद्यालय में बतौर शिक्षिका कार्यरत थी. विद्यालय से अपने घर आने के क्रम में वह अक्सर बीडीओ ब्लॉक के समीप अधिकारियों की गाड़ियों को देखती और यह सोचा करती थी कि वह भी ऑफिसर बन सकती है. अपने इस ख्वाब को सच करने के लिए वह लगातार प्रयासरत थी. वहीं, उनके पति अरविंद ओझा तथा अन्य स्वजनों ने भी उन्हें काफी सहयोग किया. नतीजा यह हुआ कि अपने दूसरे प्रयास में वह बीपीएससी परीक्षा पास करने में सफल रही.

प्रसिद्ध मानस प्रवक्ता वाचक तथा अमृता के ससुर रामनाथ ओझा बताते हैं कि, जिस दिन हमारे समाज में बहू को बेटी का दर्जा प्राप्त होने लगेगा. बहुएं भी बेटी बन जाएंगी, उस दिन से परिवारों में छोटी-छोटी बातों पर संघर्ष समाप्त होकर प्रेम की वर्षा होने लगेगी और ऐसे ही परिवारों से प्रतिभावानों की (लड़का या लड़की) कतार निकलने लगेगी. उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में कहा गया है कि, "जहां सुमति तहां संपति नाना, जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना."








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