झूठा है भोजपुरी पर अश्लीलता का आरोप: भोजपुरी साहित्य सम्मलेन ..

भोजपुरी देश की सबसे बड़ी जमात द्वारा बोली जाने वाली लोक भाषा है, जिसके पास संस्कृतिक सामाजिक एवं साहित्यिक विरासत की एक लंबी परंपरा है. यही कारण है कि आज भोजपुरी की खुशबू देश की सीमा को पार करते हुए विदेशों तक फैल चुकी है. इसमें आज एक से बढ़कर एक श्रेष्ठ व बेजोड़ साहित्यिक रचनाएं लगातार सृजित और प्रकाशित हो रही हैं.





- भोजपुरी के विद्वानों ने जाहिर किया अपना दर्द
- कहा, किसी को नहीं बनने दिया जाएगा भोजपुरी के विकास का स्पीड ब्रेकर

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: भोजपुरी भाषा एवं साहित्य की तरक्की से परेशान कुछ निहित स्वार्थी तत्व, जो इसे हर हाल में संविधान की अनुसूची से इसे बाहर रखने के हिमायती हैं वहीं भोजपुरी पर एक साजिश के तहत अश्लीलता का आरोप मढ़ते हैं. ऐसे स्वार्थी तत्व तत्व ही शक्ति योग्यता या पद और पैसा पाने के लालच में भोजपुरी जैसी समृद्ध और सशक्त भाषा को जाने-अनजाने बदनाम करने का पाप कर रहे हैं.

यह बातें विश्व भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष गधपूरना पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ अरुण मोहन भारवि तथा भोजपुरी साहित्य मंडल बक्सर के अध्यक्ष अनिल कुमार त्रिवेदी ने एक संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कही. डॉ भारवि एवं अनिल त्रिवेदी के मुताबिक भोजपुरी देश की सबसे बड़ी जमात द्वारा बोली जाने वाली लोक भाषा है, जिसके पास संस्कृतिक सामाजिक एवं साहित्यिक विरासत की एक लंबी परंपरा है. यही कारण है कि आज भोजपुरी की खुशबू देश की सीमा को पार करते हुए विदेशों तक फैल चुकी है. इसमें आज एक से बढ़कर एक श्रेष्ठ व बेजोड़ साहित्यिक रचनाएं लगातार सृजित और प्रकाशित हो रही हैं, जिसकी विस्तृत जानकारी डॉ अरुण मोहन भारवि द्वारा संपादित एवं अरुणोदय प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित भोजपुरी इनसाइक्लोपीडिया के दोनों भाग में बखूबी देखी जा सकती हैं. भोजपुरी के दोनों मर्मज्ञ विद्वानों ने कहा कि भोजपुरी में संस्कार गीतों, सोहर, जनेऊ, मुंडन, विवाह, विदाई या मौसम प्रधान गीतों यथा बिरहा, चैता, होली(फगुआ), कजरी, भजन पराती, झूला, रोपनी, जतसार आदि गीतों में कहीं भी अश्लीलता नहीं है.

भोजपुरी के संपूर्ण गद्य साहित्य, कहानी, उपन्यास, एकांकी, नाटक, लघुकथा, रेखाचित्र, शब्दचित्र, रपट, आलेख, समीक्षा या आलोचना साहित्य में अश्लीलता खोजने वालों के हाथ सदा निराशा ही लगती है भोजपुरी पर अश्लीलता का आरोप लगाने वाले लोग एकाद सड़क छाप गायकों के ट्रकों में बजने वाले गीतों के बहाने भोजपुरी पर अश्लीलता की तोहमत लगाते हैं. क्या हिंदी में कुशवाहा कांत, प्यारेलाल आवारा, गुलशन नंदा, यशपाल की कुछ रचनाओं को आधार बनाकर यही आरोप नहीं लगाया सकता? भोजपुरी को बदनाम करने की साजिश बंद होनी चाहिए. इसको अष्टम अनुसूची में पहुंचाने की राह में किसी को भी स्पीड ब्रेकर नहीं बनने दिया जा सकता है.








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