जिले के कई प्रमुख मंदिरों के अतिरिक्त पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के मंगला भवानी तथा कामाख्या देवी के मंदिरों में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा है. बक्सर से कई लोग नवरात्र के प्रथम दिन देवी दर्शन के लिए विंध्याचल को भी रवाना हुए. संक्रमण काल के बाद देवी मंदिर खुले होने की वजह से श्रद्धालुओं में खासा उत्साह है.
मां विंध्यवासिनी के मंदिर में पहुंचे श्रद्धालु |
- शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन मंदिरों में उमड़ा श्रद्धालुओं का हुजूम
- पड़ोसी राज्य के देवी मंदिरों में दर्शन को पहुँचे श्रद्धालु
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : देवी दुर्गा की आराधना का महाअनुष्ठान गुरुवार से शुरु हो गया. पहले सुबह से लोगों का देवी मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ करने का सिलसिला शुरू हो गया. जिले के कई प्रमुख मंदिरों के अतिरिक्त पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के मंगला भवानी तथा कामाख्या देवी के मंदिरों में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा है. बक्सर से कई लोग नवरात्र के प्रथम दिन देवी दर्शन के लिए विंध्याचल को भी रवाना हुए. संक्रमण काल के बाद देवी मंदिर खुले होने की वजह से श्रद्धालुओं में खासा उत्साह है.
सनातन धर्म में शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है. नवरात्रि माँ दुर्गा की पूजा व उपासना का पर्व है. नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. नवरात्रि में कलश स्थापना का भी विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. और माता रानी की कृपा से सभी दुख दूर हो जाते हैं. इस बार षष्ठी तिथि की क्षय हो जाने के कारण नवरात्र 8 दिन का पड़ रहा है एवं पक्ष 14 दिन का पड़ रहा है.
कलश स्थापन का शुभ मुहूर्त :
कर्मकांड केसरी प्रोफेसर मुक्तेश्वर नाथ शास्त्री बताते हैं कि 7 अक्टूबर गुरुवार को कलश स्थापन के लिए अभिजित मुहूर्त दिन में 11:36 बजे से 12:24 बजे का समय शुभ फल कारक होगा. आवश्यक होने पर प्रतिपदा उपरांत द्वितीय तिथि में दिन में 3:28 बजे के बाद सूर्यास्त के पूर्व भी कलश स्थापन किया जा सकता है. क्योंकि चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग नवरात्र आरंभ तथा कलश स्थापन में वर्जित है. उक्त दोनों योग उस दिन भोग कर रहा है.
माँ भगवती ने स्वयं बताया है पूजा का महत्व :
प्रोफ़ेसर शास्त्री बताते हैं कि दुर्गा सप्तशती में ही भगवती ने कहा है जो शरद काल की नवरात्रि में मेरी पूजा आराधना और मेरे चरित्र का पूरा पाठ करता अथवा सुनता है उसे मैं सभी बाधाओं से मुक्त कर धन-धान्य आदि से संपन्न करती हूँ. सप्तमी तिथि में देवी प्रतिमाओं की स्थापना कर त्रिदिवसीय पूजा आराधना पूरे देश को मातृमय में कर देती है. इस वर्ष सप्तमी तिथि मंगलवार 12 अक्टूबर को है.
अष्टमी का मान व्रत एवं पूजन तथा महानिशा पूजा के लिए 13 अक्टूबर गुरुवार को होगा. आज ही संधि पूजा रात 11:18 से लेकर 12:06 बजे के बीच की जाएगी. महानवमी 14 अक्टूबर गुरुवार को होगी. नवरात्रि समाप्ति से संबंधित हवन पूजन 14 अक्टूबर गुरुवार को नवमी पर्यंत रात 9:52 तक किया जाएगा. पूर्ण नवरात्र व्रत के पारण दशमी तिथि में 15 अक्टूबर शुक्रवार को प्रातः काल की जाएगी. विजयादशमी का प्रसिद्ध पर्व 15 अक्टूबर शुक्रवार को होगा. असत्य पर सत्य की विजय का पताका फहराएगी. दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन श्रवण नक्षत्र युक्त दशमी तिथि में 15 अक्टूबर शुक्रवार को किया जाएगा. शुक्रवार की दशमी तिथि में देवी का प्रस्थान अर्थात हाथी पर होगा जो शुभ फलकारी होने के साथ वर्षा भी करा सकता है.
इस बार 'डोली' पर सवार होकर आएंगी माँ दुर्गा
इस साल मां दुर्गा डोली पर सवार होकर आएंगी. देवी भाग्वत पुराण के अनुसार
शशि सूर्य गजाऽरुढ़ा शनि भौम तुरंगमा।
गुरौशुक्रे च दोलायां बुद्धे नावागमिष्यति।।
नवरात्रि की शुरुआत सोमवार या रविवार से होती है तो इसका अर्थ है कि माता हाथी पर सवार होकर आएंगी. शनिवार और मंगलवार को माता अश्व पर सवार होकर आती हैं. जब नवरात्रि गुरुवार या शुक्रवार से प्रारंभ होते हैं तो इसका अर्थ है कि माता डोली पर सवार होकर आएंगी. बुधवार पड़े तो माता जी का आगमन पालकी से होता है. इस साल नवरात्रि गुरुवार से प्रारंभ हो रहा है.
शारदीय नवरात्रि 2021 तिथियां :
7 अक्टूबर : प्रतिपदा (एकं ) माँ शैलपुत्री की पूजा
8 अक्टूबर : द्वितीया - माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा
9 अक्टूबर : तृतीया - माँ चंद्रघंटा पूजा
10 अक्टूबर : चतुर्थी - माँ कुष्मांडा देवी पूजा
11अक्टूबर : पंचमी व षष्टी माँ स्कंदमाता व कात्यायनी देवी की पूजा
12 अक्टूबर : सप्तमी - माँ कालरात्रि की पूजा
13 अक्टूबर : अष्टमी - माँ महागौरी की पूजा
14 अक्टूबर : नवमी - माँ सिद्धिदात्री की पूजा
15 अक्टूबर : दशमी तिथि (व्रत पारण), विजयादशमी या दशहरा
15 अक्टूबर को दशहरा, इस वर्ष नहीं होगा पुतला दहन :
इस वर्ष दशहरा अथवा विजशदशमी 15 अक्टूबर दिन शुक्रवार को है. इस दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन होता है. लेकिन, संक्रमण काल के मद्देनजर जिला प्रशासन के निर्देशानुसार इस वर्ष पुतला दहन नहीं होगा. हालांकि, रामलीला में रावण वध का मंचन होगा. विजयादशमी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है.
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