घर पर मशरूम उत्पादन से गृहणियां बढ़ाएंगी भोजन का ज़ायका, बनाएंगी पैसा ..

आत्मा के प्रभारी उप परियोजना निदेशक विकास कुमार राय ने सामूहिक खेती पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि प्रगतिशील कृषक आत्मा के माध्यम से कृषक हितार्थ समूह तथा खाद्य सुरक्षा समूह का गठन कर आत्मा द्वारा संचालित सभी कार्यक्रमों का लाभ उठा सकते हैं. किसानों के सवाल पर उन्होंने बताया कि धान फसल में बीपीएच का प्रकोप होने पर प्रति एकड़ 120 ग्राम चेश का प्रयोग कर सकते हैं. 






- इटाढ़ी में "मशरूम" विषय पर किसान गोष्ठी का हुआ था आयोजन
- मशरूम उत्पादन के साथ-साथ पराली प्रबंधन पर भी की गई चर्चा

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: देश की स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर दिन गुरुवार को इटाढ़ी प्रखंड मुख्यालय में कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंध अभिकरण (आत्मा), के द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम अंतर्गत “मशरूम” विषय पर किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का उद्घाटन जिला कृषि पदाधिकारी-सह-परियोजना निदेशक, आत्मा श्री मनोज कुमार द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया. किसानो को संबोधित करते हुए जिला कृषि पदाधिकारी ने कहा कि आत्मा द्वारा बिहार कौशल विकास मिशन योजना अंतर्गत मशरूम विषय पर प्रशिक्षण कराने की योजना है, जिसमे बेरोजगार युवक-युवतियो को एक माह का प्रशिक्षण दिया जायेगा. महिलाये अपने घरेलू काम-काज के साथ घरो में मशरूम का उत्पादन कर अपने एवं अपने पूरे परिवार के लिए पोषण युक्त आहार का उत्पादन कर सकती है. उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित महिलाओ से अपने विचार साझा करते हुए बताया कि विगत दिनों आत्मा,बक्सर द्वारा जिले के सभी प्रखंडो में दो दिवसीय मशरूम विषय पर प्रशिक्षण आयोजित कर मशरूम बैग उपलब्ध कराया गया था, जिसमे प्रत्येक बैग से मशरूम उत्पादन प्रारंभ हो गया है. इससे महिलाओ में मशरूम उत्पादन के प्रति जागरूकता फैली है. 



काफी मशरूम के उत्पादन  ऑयस्टर मशरूम की खेती के बारे में बताते हुए डीएओ ने बताया कि स्पॉन (बीज) के जरिए मशरूम की खेती की जाती है. मशरूम की खेती हेतु स्पॉन को अधिक दिनों रखने से वह ख़राब हो जाता है. इसलिए जब आवश्यकता हो तभी स्पॉन (बीज) की खरीदारी करे. इसके उत्पादन के लिए भूसा, पॉलीबैग, कार्बेंडाजिम, फॉर्मेलिन और स्पॉन (बीज) की जरूरत होती है. ऑयस्टर मशरूम उत्पादन के क्रम में दस किलो भूसे के लिए एक किलो स्पॉन की जरूरत होती है, दस किलो भूसे को 100 लीटर पानी में भिगोया जाता है, तत्पश्चात 150 मिली. फार्मलिन, सात ग्राम कॉर्बेंडाजिन को पानी में घोलकर इसमें दस किलो भूसा डुबोकर उसका शोधन किया जाता है. भूसा भिगोने के बाद लगभग बारह घंटे यानि अगर सुबह फैलाते हैं तो शाम को और शाम को फैलाते हैं तो सुबह निकाल लें, इसके बाद भूसे को किसी जालीदार बैग में भरकर या फिर चारपाई पर फैला देते हैं, जिससे अतिरिक्त पानी निकल जाता है। इसके बाद एक किलो सूखे भूसे को एक बैग में भरा जाता है, एक बैग में तीन लेयर लगानी होती है, एक लेयर लगाने के बाद उसमें स्पॉन की किनारे-किनारे रखकर उसपर फिर भूसा रखा जाता है, इस तरह से एक बैग में तीन लेयर लगानी होती है। बैग में स्पॉन लगाने के बाद पंद्रह दिनों में इसमें ऑयस्टर की सफेद-सफेद खूटियां निकलने लगती हैं, ये मशरूम बैग में चारों तरफ निकलने लगता है। इस मशरूम में सबसे अच्छी बात होती है इसे किसान सुखाकर भी बेच सकते हैं, इसका स्वाद भी बेहतर होता है. आत्मा के प्रभारी उप परियोजना निदेशक विकास कुमार राय ने सामूहिक खेती पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि प्रगतिशील कृषक आत्मा के माध्यम से कृषक हितार्थ समूह तथा खाद्य सुरक्षा समूह का गठन कर आत्मा द्वारा संचालित सभी कार्यक्रमों का लाभ उठा सकते हैं. किसानों के सवाल पर उन्होंने बताया कि धान फसल में बीपीएच का प्रकोप होने पर प्रति एकड़ 120 ग्राम चेश का प्रयोग कर सकते हैं. 


सहायक निदेशक,कृषि अभियंत्रण प्रियंका कुमारी ने पराली प्रबंधन वाले यंत्रों पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि पराली जलाने से भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास हो रहा है. इस परिस्थिति में स्ट्रा रीपर, हैप्पी सीडर,सुपर सीडर इत्यादि यंत्र महत्वूपर्ण विकल्प के रुप में उपलब्ध हैं. सहायक निदेशक(रसायन) श्रीमती वसुंधरा द्वारा मिटटी स्वास्थ कार्ड पर चर्चा की गई. उन्होंने किसानो से अपील करते हुए कहा कि अधिक से अधिक कृषक अपने खेतो के मिट्टी की जाँच कराये ताकि मृदा जाँच के आधार पर संतुलित उर्वरक का प्रयोग हो सके.  मौके पर सभी प्रसार कर्मी एवं अनेक प्रगतिशील महिला एवं पुरुष प्रगतिशील कृषक मौजूद थे.








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