बक्सर में त्रेता युग में प्रभु श्री राम ने पंचकोसी परिक्रमा की शुरुआत की थी. दरअसल अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह महर्षि विश्वामित्र के साथ 5 कोस में अलग-अलग स्थानों पर रह रहे ऋषि-मुनियों से आशीर्वाद लेने के लिए गए थे. वहां उन्होंने रात भी गुजारी और जो भोजन उन्होंने उस वक्त ग्रहण किया था उसे आज प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है.
- गंगा स्नान और जलभरी के साथ रवाना हुआ था श्रद्धालुओं का जत्था
- पुआ-पकवान ग्रहण कर किया परंपराओं का निर्वहन
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : त्रेता युग से से चली आ रही परंपरा के तहत पंचकोसी परिक्रमा का शुभारंभ हो गया. यात्रा अपने पहले पड़ाव अहल्यावली यानि कि अहिरौली पहुंची और वहां माता अहिल्या और गौतम ऋषि की विधि-विधान से पूजा अर्चना की गई. इसके पूर्व संतों का जत्था रामरेखा घाट पहुंचा जहां गंगा स्नान करने के बाद गंगाजल लेकर पंचकोसी परिक्रमा के पहले पड़ाव की तरफ प्रस्थान किया. वहां पहुंचकर सभी ने भक्ति भाव से दीप-प्रज्ज्वलित कर माता अहिल्या तथा गौतम ऋषि की पूजा करते हुए प्रसाद स्वरूप पुए-पकवान अर्पित कर स्वयं भी ग्रहण किए. प्रसाद ग्रहण करने के बाद भजन-कीर्तन करते हुए वहीं, रात गुजार रहे हैं. अगले पड़ाव के रूप में स्नान आदि कर संत समाज के लोग तथा श्रद्धालु भक्त नदांव पहुंचेंगे जहाँ सत्तू और मूली का प्रसाद ग्रहण करेंगे. इसके पूर्व वहां नारद मुनि के द्वारा स्थापित भगवान भोलेशंकर के नारदेश्वर मंदिर में पूजन-अर्चन किया जाएगा.
बुधवार की सुबह तकरीबन 8:30 बजे रामरेखा घाट से निकली पंचकोसी परिक्रमा यात्रा कार्यक्रम का संचालन आचार्य सुदर्शनाचार्य उर्फ भोला बाबा ने किया. इस दौरान जहां दूर-दराज से श्रद्धालु पहुंचे हुए थे वहीं, प्रशासन की ओर से तमाम व्यवस्थाएं की गई थी. संतों की टोली में शामिल कुलशेखराचार्य जी महाराज, कृष्णानंद शास्त्री तथा छविनाथ त्रिपाठी ने अहिरौली में श्रद्धालुओं के समक्ष प्रवचन करते हुए कहा कि पंचकोशी परिक्रमा विधि विधान से करने पर अहिरौली में बुद्धि न गांव में मन भवन में चित्र की शुद्धि तथा युवाओं में अहंकार का नाश हो जाता है. इसके बाद चरित्रवन में प्रेम रुपी परमात्मा से मिलन होता है. पंचकोसी परिक्रमा समिति के कोषाध्यक्ष रोहतास गोयल तथा सदस्य सुरेश राय ने कहा कि मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को किसी प्रकार का कष्ट ना हो इसके लिए पानी के टैंकर के साथ-साथ तमाम तरह की व्यवस्था की गई है.
मेले में गुरही जलेबी बेचता दुकानदार |
आपको बता दें कि बक्सर में त्रेता युग में प्रभु श्री राम ने पंचकोसी परिक्रमा की शुरुआत की थी. दरअसल अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह महर्षि विश्वामित्र के साथ 5 कोस में अलग-अलग स्थानों पर रह रहे ऋषि-मुनियों से आशीर्वाद लेने के लिए गए थे. वहां उन्होंने रात भी गुजारी और जो भोजन उन्होंने उस वक्त ग्रहण किया था उसे आज प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया जाता है. पहले दिन अहिरौली में पुआ-पूरी और पकवान, दूसरे दिन नदांव में सत्तू और मूली, तीसरे दिन भभुअर में चुरा-दही, चौथे दिन नुआंव में खिचड़ी तथा पांचवे तथा अंतिम दिन चरित्रवन में लिट्टी चोखा का प्रसाद ग्रहण किया जाता है.
पूजन कर मंदिर से बाहर निकलती महिलाएं |
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