मनुष्य जब अच्छे कर्मों के लिए आगे बढता है तो सम्पूर्ण सृष्टि की शक्ति समाहित होकर मनुष्य के पीछे लग जाती है और हमारे सारे कार्य सफल होते हैं. ठीक उसी तरह बुरे कर्मों की राह के दौरान सम्पूर्ण बुरी शक्तियां हमारे साथ हो जाती हैं. अतः कर्म करते समय मनुष्य को निर्णय करना होता कि उसे किस राह पर चलना है.
- जल भरी के साथ श्रीमद् भागवत कथा का हुआ आयोजन
- बैंड बाजे के साथ शुरू हुई कलश यात्रा में शामिल हुए बच्चे, युवा व धर्म प्रेमी
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : विश्वामित्र स्वास्थ कल्याण समिति के तत्त्वाधान में मुख्य यजमान राम उदार उपाध्याय एवं समिति के सचिव किशोर दूबे के सहयोग से रामलीला मंच, (किला मैदान) में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह का शनिवार धार्मिक परंपरा के साथ शुभारंभ किया गया.
प्रात:कालीन आठ बजे बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु आयोजन स्थल पर एकत्रित हुए. बैण्ड-बाजे के साथ शुरू हुई कलश यात्रा में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे बच्चे, युवती व महिलाओं ने भाग लिया. कलश यात्रा में पीले वस्त्र धारण की हुई कन्याएं व महिलाएं सिर पर कलश धारण किए हुए मंगलगीत गाते हुए चल रही थी. शोभा यात्रा के दौरान लोगों ने जयकारे के साथ पुष्प वर्षा कर स्वागत किया. इस मौके पर शोभा यात्रा पर खुले आकाश से पुष्प वर्षा की गई. कलश यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं के जयकारे से वातावरण गुंजायमान हो गया. राधे-राधे के उद्घोष से पूरा माहौल श्रीराधे-कृष्ण भक्ति के रस में डूब गया. शुभारंभ पर प्रथम दिन आचार्य पीतांबर'प्रेमेश' ने कथा माहात्म्य पर बोलते हुए कहा कि 'बिनु परतीती होई नहीं प्रीति' अर्थात् माहात्म्य ज्ञान के बिना प्रेम चिरंजीव नहीं होता, अस्थायी हो जाता है. धुंधकारी चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण के आचरण को हम यदि आत्मसात कर लेें तो हमारे जीवन से सारी उलझने स्वत: समाप्त हो जाएंगी. द्रौपदी, कुन्ती महाभागवत नारी हैं. इस कड़ी में उन्होंने सर्वप्रथम कुन्ती स्तुति को विस्तारपूर्वक समझाते हुए परीक्षित जन्म एंव शुकदेव आगमन की कथा सुनाई. तत्पश्चात् उन्होंने गौकर्ण की कथा सुनाई गई. उन्होंने कहा कि भगवान की लीला अपरंपार है. वे अपनी लीलाओं के माध्यम से मनुष्य व देवताओं के धर्मानुसार आचरण करने के लिए सदैव प्रेरित करते हैं. श्रीमदभागवत कथा के महत्व को समझाते हुए आचार्य प्रेमेश ने कहा कि भागवत कथा में जीवन का सार तत्व मौजूद है. भागवत श्रवण से मनुष्य को परमानन्द की प्राप्ति होती है. साथ ही भागवत श्रवण से हमें प्रेतयोनी से भी मुक्ति मिलती है. यही वजह है कि चित्त की स्थिरता के साथ ही श्रीमदभागवत कथा सुननी चाहिए. भागवत श्रवण मनुष्य केे सम्पूर्ण कलेश को दूर कर भक्ति की ओर अग्रसर करती है. पूज्य आचार्य ने अच्छे और बुरे कर्मो की परिणिति को विस्तार से समझाते हुए आत्मदेव के पुत्र धुंधकारी ओर गौमाता के पुत्र गोकरण के कर्मो के बारे में विस्तार से वृतांत समझाया. जहां एक ओर धुंधकारी द्वारा एकाग्रता पूर्ण भागवत कथा श्रवण से प्रेतयोनी से मुक्ति बताई तो वहीं दूसरी ओर धुंधकारी की माता द्वारा संत प्रसाद का अनादर कर छल-कपट से पुत्र प्राप्ति और उसके बुरे परिणाम को समझाया. दरअसल मनुष्य जब अच्छे कर्मों के लिए आगे बढता है तो सम्पूर्ण सृष्टि की शक्ति समाहित होकर मनुष्य के पीछे लग जाती है और हमारे सारे कार्य सफल होते हैं. ठीक उसी तरह बुरे कर्मों की राह के दौरान सम्पूर्ण बुरी शक्तियां हमारे साथ हो जाती हैं. अतः कर्म करते समय मनुष्य को निर्णय करना होता कि उसे किस राह पर चलना है.
उन्होंने कहा कि छल और छलावा ज्यादा दिन नहीं चलते. छल रूपी खटाई से दुध हमेशा फटेगा. छलछिद्र जब जीवन में आ जाए तो भगवान भी उसे ग्रहण नहीं करते हैं. क्योंकि, निर्मल मन ही प्रभु को स्वीकार्य है. छलछिद्र रहित और निर्मल मन भक्ति के लिए जरूरी है. कथा- क्रम में भजन, गीत व संगीत पर श्रद्धालु देर तक झूमते रहे. अंत में आचार्य ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा से ही जीव का वास्तविक कल्याण संभव है. जहां भागवत कथा का गुणगान होता है वहां प्रभु खुद दर्शन देते हैं. भगवान श्री कृष्ण ने विश्व कल्याण के लिए जो संदेश दिया है, श्रीमद्भागवत में उसी का सार है. श्री कृष्ण के आचरण का अनुसरण कर हम समाज में फैली हुई कुरीतियों से हमेशा- हमेशा के लिए दूर रह सकते हैं. आज युवा पीढ़ी को श्रीमद्भागवत कथा के साथ जोड़ने की महती आवश्यकता है, तभी मजबूत समाज की स्थापना होगी.
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