इसी कारण से सरयू जी को महर्षि वशिष्ठ की बहन भी कहा गया है. सरयू जी स्नान करने की विधि है जो भी प्राणी सरयू जी मे स्नान करे वो सर्वप्रथम मे सरयू जी श्वेत वस्त्रों में और विभिन्न आभूषणों से अलंकृत माँ सरयू की गोद में खेलते चारों भाईयो राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जी का ध्यान करके माँ सरयू में में स्नान करें वो निश्चित रूप से ही मोक्ष प्राप्त करे.
- कहा,इतिहास का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण
- प्रवचन के दौरान अयोध्यापुरी की महिमा से लोगों को कराया अवगत
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : सिय-पिय मिलन महोत्सव के दौरान श्री रामकथा का अमृतपान कराते हुए अवधधाम से पधारे श्रीमदवाल्मीकीय रामायण कथा मर्मज्ञ राघवाचार्य महाराज ने श्री रामकथा में बताया कि पृथ्वी पर भगवान के अवतार होने का एक मात्र प्रयोजन अपने दिव्य गुण प्रेम, वात्सल्य और दया जैसे गुणों का अपने भक्तों के बीच प्रसाद के वितरण करना मात्र भर है. सनातन धर्म के ग्रंथों में श्रीमदवाल्मीकीय रामायण को इतिहास श्रेष्ठ ग्रंथ माना गया है. संतगणों का मानना है इस इतिहास ग्रंथ का एक-एक अक्षर आचार्य ने कहा कि प्राणियों को मोक्ष देने वाला है. प्राणियों का शरीर तो पाँच तत्वों से मिलकर बना है-"क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व ये अधम शरीरा" किंतु भगवान का शरीर केवल एक तत्व सच्चिदानंद तत्व से ही बना है.
अयोध्यापुरी के बारे में उन्होंने बताते हुए कहा कि श्री वैकुण्ठ का हृदय स्थान है. मनु जी द्वारा भगवान से बार-बार विनय करने के पश्चात भगवान के सुदर्शन चक्र पर बसी अदभुत पुरी है. अयोध्या में जाने मात्र भर से प्राणी का भगवान के चक्र से संबंध हो जाता है. उन्होंने बताया कि सरयू जी का जन्म भगवान के नयनों से हुआ है. महर्षि वशिष्ठ जी के द्वारा हजारों वर्ष की तपस्या के परिणाम स्वरुप ही अयोध्यापुरी में सरयू जी अवतरित हुई. इसी कारण से सरयू जी का एकनाम वशिष्ठया भी है. इसी कारण से सरयू जी को महर्षि वशिष्ठ की बहन भी कहा गया है. सरयू जी स्नान करने की विधि है जो भी प्राणी सरयू जी मे स्नान करे वो सर्वप्रथम मे सरयू जी श्वेत वस्त्रों में और विभिन्न आभूषणों से अलंकृत माँ सरयू की गोद में खेलते चारों भाईयो राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जी का ध्यान करके माँ सरयू में में स्नान करें वो निश्चित रूप से ही मोक्ष प्राप्त करे.
राघवाचार्य महाराज ने कहा कि आपके लिए आपका शास्त्र क्या कहता है यह जानकर ही उस कार्य को करना ही निजधर्म है. स्वधर्म को जानकर उसका आचरण करने से ही मानव का कल्याण होगा. श्रीमदभागवत पुराण में भी भगवान ने कहा है स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः.अथार्त अपने धर्म में तो मरना भी कल्याण कारक है और दूसरे का धर्म भय को देनेवाला है.
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