उपभोक्ता फोरम : एक करोड़ की क्षतिपूर्ति का है अधिकार लेकिन, लंबित है महज कुछ रुपयों के मामले ..

1996 से लेकर अब तक 2 हज़ार 631 मामले यहाँ लाएं गए जिनमें 2 हज़ार 216 मामलों का निष्पादन किया गया। उन मामलों में भी 116 में आयोग के आदेश का अनुपालन नहीं हो पाया ऐसे में वह विविध वाद बन गए. इस प्रकार कुल 530 मामले अब तक लंबित हैं जिनमें सैकड़ों मामले ऐसे हैं जिनका कई वर्षों में भी फैसला नहीं हो पाया है.






- पच्चीस वर्षों से कार्यरत आयोग की ईकाई में पांच सौ से ज्यादा मामले लंबित
- नाम के लिए आधा दर्जन से ज्यादा कर्मी, काम के लिए महज दो 

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : कंजूमर फोरम को सरकार ने एक करोड़ रुपये तक की क्षतिपूर्ति से जुड़े मामलों के निष्पादन का अधिकार दिया है लेकिन, यहां महज कुछ रुपयों से जुड़े उपभोक्ताओं के मामले भी लंबित हैं. उपभोक्ताओं के हाथों को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार कई नियमों में फेरबदल करते रहे और तमाम तरह के बदलाव भी किए लेकिन, सरकार के 'जागो ग्राहक जागो' के स्लोगन को सुनकर ग्राहक तो जाग गए वहीं, सरकार सो गई. एक अनुमान के मुताबिक लगभग सौ मामले प्रतिवर्ष उपभोक्ता फोरम में प्रति वर्ष आते हैं लेकिन, निष्पादन 50 मामलों का ही हो पाता है. ऐसे में उपभोक्ता यह समझने लगे हैं कि यहां जाने से अच्छा कि वह घर पर ही रहे.

चार हज़ार के मोबाइल से जुड़े मामले में पांच साल से नहीं मिला न्याय : 
 
वर्ष 2016 में सदर प्रखंड के गुरदास मठिया निवासी मनोज कुमार ने चार हज़ार के मोबाइल सेट के मामले में पैनासोनिक कंपनी के विरुद्ध परिवाद दायर किया था जिसमें उन्होंने बताया था कि कंपनी का सर्विस सेंटर अंबेडकर चौक के समीप से बंद हो गया और कंपनी उनका मोबाइल फोन लेकर चली गई लेकिन, यह मामला उस समय से लेकर अब तक लंबित है. इसी प्रकार सिमरी के राजेश कुमार महज 15 सौ रुपये के पंखे की तकनीकी खराबी के मामले को लेकर फोरम में पहुंचे थे लेकिन, कई वर्ष गुजर जाने के बाद भी मामले में सुनवाई नहीं हो रही है वह उपभोक्ता फोरम में लगातार दौड़ लगा रहे हैं.

समरी ट्रायल से करना है निष्पादन, फिर भी हो रहा विलंब : 

बताया जा रहा है कि उपभोक्ता न्यायालय में मामलों का निष्पादन समरी ट्रायल से होता है दरअसल, उपभोक्ताओं के अधिकारों को संरक्षित करने के लिए बनाए गए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम गवाही की जरूरत नहीं थी ना ही विशेष कागजातों की आवश्यकता थी लेकिन, अब यहां की स्थिति अन्य न्यायालयों की तरह तारीख पे तारीख वाली बन गई है. जानकार बताते हैं कि पहले जहां पूर्व अध्यक्ष नारायण पंडित मामलों का निष्पादन छाया प्रति के आधार पर कर देते थे वह स्वयं रुचि लेकर मामलों का निष्पादन कराते थे वहीं, अब उपभोक्ताओं को कई तरह के कागजातों की मांग कर लटकाया जाता है फिर भी वर्षों तक मामलों का निष्पादन नहीं हो पाता.

पच्चीस वर्षों में आए 26 सौ से ज्यादा मामले, पांच सौ से ज्यादा लंबित :

उपभोक्ता फोरम से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 1996 से लेकर अब तक 2 हज़ार 631 मामले यहाँ लाएं गए जिनमें 2 हज़ार 216 मामलों का निष्पादन किया गया। उन मामलों में भी 116 में आयोग के आदेश का अनुपालन नहीं हो पाया ऐसे में वह विविध वाद बन गए. इस प्रकार कुल 530 मामले अब तक लंबित हैं जिनमें सैकड़ों मामले ऐसे हैं जिनका कई वर्षों में भी फैसला नहीं हो पाया है. 

उपभोक्ता फोरम में कार्यरत हैं सात कर्मी व सदस्य, चार बजे तक केवल दो के हुए दर्शन :

उपभोक्ता फोरम में दो सदस्यों के साथ ही एक स्टेनो, दो लिपिक एक कंप्यूटर ऑपरेटर तथा तीन चपरासी की नियुक्ति की गई है लेकिन, बुधवार को 4:03 बजे पहुंचने पर यहां केवल एक लिपिक बलराम राय तथा एक स्टेनो हरेंद्र पांडेय ही कार्यरत दिखाई दिए. पूछने पर ज्ञात हुआ कि अन्य लोग आज आए ही नहीं है. बताया गया तीन चपरासियों में से केवल एक ही यहां पर कार्यरत है जबकि दो को समाहरणालय में प्रतिनियुक्त कर  गया है ऐसे में नोटिस आदि भेजने तथा अन्य कार्यो के निष्पादन की गति धीमी हो जाती है। करीब 4:15 मिनट पर स्टेनो भी कार्यालय बंद कर जाते दिखाई दिए.

कहते हैं अध्यक्ष :

कोरोना काल में मामलों के निष्पादन में कुछ विलंब हो रहा था लेकिन, अब मामलों के निष्पादन के लिए विशेष प्रयास किए जाएंगे. उम्मीद है कि आने वाले दिनों में लंबित मामलों की संख्या कम होगी.

राधेश्याम सिंह 
अध्यक्ष,
उपभोक्ता फोरम










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