वीडियो : महारास लीला भगवान की श्रेष्ठतम लीला है : आचार्य पीतांबर प्रेमेश

उन्होंने समझाया कि रुक्मणि स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं और वह नारायण से दूर रह ही नहीं सकती हैं. यदि जीव अपने धन अर्थात लक्ष्मी को भगवान के काम में लगाए तो ठीक नहीं तो फिर वह धन चोरी द्वारा, बीमारी द्वारा या अन्य मार्ग से हरण हो ही जाता है. इसलिए हमें धन को सदैव परमार्थ में लगाना चाहिए. 





- सदर प्रखंड के जासो में आयोजित है भागवत कथा
- स्थानीय निवासी दीनानाथ दूबे करा रहे हैं आयोजन

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : सदर प्रखंड के जासो में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के षष्ठम दिवस को भगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम महारास लीला का वर्णन करते हुए प्रख्यात कथावाचक आचार्य पीतांबर प्रेमेश जी ने बताया कि रास तो जीव का शिव के मिलन की कथा है. यह काम को बढ़ाने की नहीं अपितु काम पर विजय प्राप्त करने की कथा है. इस कथा में कामदेव ने भगवान पर खुले मैदान में अपने पूर्ण सामर्थ्य के साथ आक्रमण किया है, लेकिन वह भगवान को पराजित नही कर पाया. अंततः उसे ही परास्त होना पड़ा है. भगवान श्रीकृष्ण के महारास लीला में जीव का संदेहाभिभूत होना या काम को देखना ही पाप है. 



दरअसल, सदर प्रखंड के जासो गांव में स्थानीय निवासी दीनानाथ दूबे तथा उनकी पुत्री बबीता तिवारी के द्वारा भागवत कथा का आयोजन किया गया है. बबीता तिवारी ने बताया कि उनके पिता की इकलौती संतान हैं. ऐसे में उनके पिता की इच्छा अनुरूप उन्होंने भागवत कथा का आयोजन कराया है. उनकी माता जी की भी प्रबल इच्छा थी कि वह भागवत कथा का आयोजन कराए लेकिन, दुर्भाग्यवश दस वर्ष पूर्व ही उनका निधन हो गया है ऐसे में भागवत कथा का आयोजन उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि भागवत कथा से परमानंद प्राप्त होता है. कथा श्रवण से ऐसा प्रतीत होता है जैसे वृंदावन में बैठे हो.


कथा प्रसंग में आगे बोलते हुए आचार्य ने गोपी गीत का वर्णन करते हुए कहा कि जब-जब जीव में अभिमान आता है, तब तब  भगवान उनसे दूर हो जाते हैं लेकिन, जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते हैं. हमारे प्रभु उसे दर्शन देते हैं. कथा क्रम में भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणि के साथ संपन्न हुआ. लेकिन रुक्मणि को श्रीकृष्ण द्वारा हरण कर विवाह किया गया. इस कथा में उन्होंने समझाया कि रुक्मणि स्वयं साक्षात लक्ष्मी हैं और वह नारायण से दूर रह ही नहीं सकती हैं. यदि जीव अपने धन अर्थात लक्ष्मी को भगवान के काम में लगाए तो ठीक नहीं तो फिर वह धन चोरी द्वारा, बीमारी द्वारा या अन्य मार्ग से हरण हो ही जाता है. इसलिए हमें धन को सदैव परमार्थ में लगाना चाहिए. जब कोई लक्ष्मी नारायण को पूजता है या उनकी सेवा करता है तो उन्हें भगवान की कृपा स्वत: ही प्राप्त हो जाती है. 

भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी के विवाह की मनोहर झांकी भी हुई प्रस्तुत :

आचार्य ने भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणि के अतिरिक्त भगवान के अन्य विवाहों का भी सविस्तार वर्णन किया. कथा के दौरान संगीतमय भजनों का श्रवण कर भक्तजन खुशी से झूम उठे. इस अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह की सुंदर झांकी प्रस्तुत की गई. भागवत कथा का सवाल करने पहुंचने वाले लोगों में मथानिया ग्रामीणों के अतिरिक्त कई अन्य लोग भी पहुंचे थे वह आने वाले के अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद वर्मा, सुरेंद्र तिवारी, रामनाथ ठाकुर, राहुल चौबे आदि भी मौजूद रहे. इस दौरान अधिवक्ता सुरेंद्र तिवारी ने भगवान कृष्ण-राधिका के मधुर भजन तथा कई प्रसंग सुनाकर सबको भाव विभोर कर दिया.

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