वीडियो : समाज का नजरिया और संसाधनों का अभाव बन रहा बेटियों की ऊंची उड़ान में बाधक ..

उन्हें चुनाव के दौरान युवाओं का ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया जा चुका है. निधि की प्रेरणा से उसकी छोटी बहन दीक्षा भी वुशू के नेशनल लेवल के खिलाड़ी के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है. इतना सब होने के बावजूद आज भी उन्हें सरकारी उपेक्षा का दंश झेलना पड़ता है, जिसके कारण दोनों खिलाड़ी अपनी क्षमता का बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती.





- बक्सर के खिलाड़ी बहनों ने बताई व्यथा, कहा - समाज में आज भी उपेक्षित हैं बेटियां
- खेल प्रतिभा को निखारने के लिए प्रशासन की तरफ से नहीं मिल पा रही विशेष मदद

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : आज महिला दिवस है महिला दिवस को लेकर तमाम तरह के आयोजनों का सिलसिला पूरे देश भर में चल रहा है लेकिन, महिलाओं और खासकर कामकाजी महिलाओं तथा खिलाड़ियों की क्या स्थिति है यह बात हर किसी को पता है. भले ही कोई उसे जाहिर करें अथवा नहीं. 

सदर प्रखंड के महदह गांव निवासी किसान बलवंत सिंह की दोनों पुत्रियां दीक्षा और निधि वुशू खेल की बेहतरीन खिलाड़ी हैं. निधि वर्ष 2011 से लगातार वूशु खेल में अपने प्रदेश का परचम राष्ट्रीय स्तर पर लहरा रही है वहीं, उन्हें चुनाव के दौरान युवाओं का ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया जा चुका है. निधि की प्रेरणा से उसकी छोटी बहन दीक्षा भी वुशू के नेशनल लेवल के खिलाड़ी के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है. इतना सब होने के बावजूद आज भी उन्हें सामाजिक नजरिए और संसाधनों के आभाव का दंश झेलना पड़ता है, जिसके कारण ना सिर्फ ये दोनों खिलाड़ी बल्कि अन्य महिला खिलाड़ी भी अपनी क्षमता का बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती.


उन्होंने हमसे हुई खास बातचीत में बताया कि आज भी ना तो प्रशासनिक स्तर पर खेल के लिए संसाधन उन्हें मिल पाते हैं और ना ही कोई प्रोत्साहन. यहां तक की सामाजिक स्तर पर भी महिला खिलाड़ियों को हेय दृष्टि से देखा जाता है. ऐसे में कहीं ना कहीं वह कुंठा का शिकार हो रही हैं. बावजूद इसके उनके परिजन लगातार उन्हें प्रेरित करते हैं. इसी का नतीजा है कि निधि ने 2011 से अब तक चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है. फिलहाल वह गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर से खेल में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही है वहीं, उन्हीं की प्रेरणा से वुशू के खेल में पहुंची उनकी बहन दीक्षा कुमारी ने अब तक आठ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है, जिसमें उन्हें दो बार अवार्ड भी मिला है. इतना ही नहीं पिछले वर्ष उन्हें मुख्यमंत्री खेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. 

कला भवन में नहीं है जगह, खुले मैदान में कर रही अभ्यास:

निधि ने बताया कि खिलाड़ियों को प्रशासनिक स्तर पर मदद तो मिलती है लेकिन विशेष संसाधनों की उपलब्धता नहीं कराई जाती. इसका उदाहरण इसी बात से समझा जा सकता है कि कला भवन में जगह नहीं होने के कारण उन्हें महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय के खुले मैदान में प्रैक्टिस करनी पड़ती है. ऐसे में अभ्यास बाधित होता है और कहीं ना कहीं इसका असर खेल पर पड़ता है.

है उम्मीद, जरूर सुधरेंगी व्यवस्थाएं :

दोनों बहनों को यह उम्मीद है कि निश्चय ही कभी न कभी स्थितियां सुधरेंगी और खानदान का नाम रोशन कर रही बेटियों के प्रति समाज का नजरिया बदलेगा. साथ ही खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाएं धरातल पर उतरेंगी और उनका सीधा लाभ खिलाड़ियों को मिलेगा.

वीडियो : 









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