हमारे जीवन का मुक्ति द्वार है श्रीमद्भागवत कथा : आचार्य पीतांबर 'प्रेमेश'

कहा कि कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मो से भी बढ़कर है. तभी तो धुन्धकारी जैसे शराबी,  कवाबी, महापापी, प्रेतआत्मा का भी भागवत कथा के रसपान से उद्धार हो जाता है. उन्होंने कहा कि 'भा' से भक्ति, 'ग' से ज्ञान, 'व' से वैराग्य और 'त' त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे, उसे ही हम भागवत कहते हैं. 






- नगर के गोलम्बर के समीप आयोजित है श्रीमद्भागवत कथा
- कथा का रसपान करा रहे प्रख्यात कथा वाचक

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : श्रीमद् भागवत कथा मानव जीवन का सार है. जब हमारा मन विचलित हो, पीड़ित हो, भ्रमित हो, चंचल हो तथा कुछ सूझबूझ नहीं रहा हो तो ऐसी स्थिति में हमें सबकुछ त्याग कर श्रीमद् भागवत के शरण में चले जाना चाहिए. मैं विश्वास दिलाता हूं कि हमारा कल्याण हो जाएगा तथा कोई कामना शेष नहीं रह जाएगी. हमारे सारे संकट दूर हो जाएंगे. हमारा जीवन भक्तिमय और आनंदकारी हो जाएगा. हमारे सनातन धर्म में श्रीकृष्ण ऐसे नायक हैं जिसमें लोक चेतना, लोक  व्यवहार, लोक मर्यादा, लोक रक्षा तथा लोक के आचार-विचार का मार्गदर्शन सहज ही परिलक्षित होता है. इस संदर्भ में बक्सर में गोलम्बर के समीप सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन कहीं-न-कहीं हमारे पुनीत कर्मों का ही नतीजा है. यह कहना है आचार्च प्रीताम्बर 'प्रेमेश' का.




श्रीमद्भागवत कथा का रसपान कराते हुए व्यास पीठ से आचार्य पीतांबर'प्रेमेश' ने कहा कि आज कलियुग में श्रीमद्भागवत महापुराण श्रवण कल्पवृक्ष से भी बढ़कर है, क्योंकि कल्पवृक्ष मात्र तीन वस्तु अर्थ, धर्म और काम ही दे सकता है. कल्प वृक्ष हमें मुक्ति और भक्ति नहीं दे सकता है लेकिन, श्रीमद्भागवत तो वह  दिव्य कल्पतरु है जो अर्थ, धर्म, काम के साथ-साथ हमें भक्ति और मुक्ति प्रदान करके हमारे लिए परम पद प्राप्त कराता है. 

उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत केवल पुस्तक नहीं, अपितु साक्षात् श्रीकृष्ण स्वरुप है. इसके एक-एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये हैं. उन्होंने कहा कि कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मो से भी बढ़कर है. तभी तो धुन्धकारी जैसे शराबी,  कवाबी, महापापी, प्रेतआत्मा का भी भागवत कथा के रसपान से उद्धार हो जाता है. उन्होंने कहा कि 'भा' से भक्ति, 'ग' से ज्ञान, 'व' से वैराग्य और 'त' त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे, उसे ही हम भागवत कहते हैं. 

इसके साथ-साथ उन्होंने भागवत के ०६ प्रश्न, निष्काम भक्ति, २४ अवतार, श्री नारद जी का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्मादि प्रसंगों का बड़ा ही रोचक वर्णन प्रस्तुत किया. कुन्ती देवी तो सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना करती हैं, क्योंकि दुख में ही तो हमारे गोविन्द, हमारे बांके बिहारी जी का दर्शन होता है. राजा परीक्षित को श्राप कैसे लगा तथा भगवान श्री शुकदेव उन्हें मुक्ति प्रदान करने के लिये कैसे प्रगट हुए इत्यादि कथाओं का भावपूर्ण वर्णन श्रवण कर समुपस्थित भक्तजन भावविभोर हो उठे.















 














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