110 साल में गंगा किनारे से नहर किनारे पहुंच अब काफी बदला-बदला दिखता है न्याय का मंदिर ..

फैमिली कोर्ट का उद्घाटन होने के पूर्व एक अधीनस्थ न्यायालय में पारिवारिक वाद के 369 मामले दर्ज थे लेकिन जब कुटुंब न्यायालय(फैमिली कोर्ट) का उद्घाटन हुआ. उसके बाद मामलों की संख्या बढ़कर दो हजार से ज्यादा हो चुकी है. 





  

- 110 साल के बाद अब नहीं दिखते वो दिन पुराने
- आत्मीय नहीं केवल व्यवसायिक संबंध जी रहे हैं अधिवक्ता

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : 17 मई 1912 को स्थापित हुआ व्यवहार न्यायालय आज अपने 111 में वर्ष में प्रवेश कर चुका है. 110 वर्षों के इस सफर में न्यायालय का अपना एक शानदार इतिहास रहा है, जिस पर एक सदी से ज्यादा सफर तय कर चुके न्यायालय को स्वयं भी गर्व है लेकिन, उस समय से लेकर अब तक परिस्थितियां काफी बदली हैं. वरीय अधिवक्ता शिवपूजन लाल बताते हैं कि पुरानी कचहरी इतनी रमणीक हुआ करती थी कि वहां बगल में सतीघाट, गोलाघाट था, जहां लोग आते थे, नहाते थे और फिर कचहरी चले आते थे. कचहरी में कतार से सत्तू की दुकानें लगी रहती थी जहां लोग सत्तू खरीदते खाते और फिर मुकदमा लड़ते थे. 


अधिवक्ता से मुवक्किल की होती थी आत्मीयता : 

श्री लाल ने बताया कि उस समय के अधिवक्ता की मड़ई में मुवक्किल के रहने और लिट्टी लगाने तक की व्यवस्था रहती थी. इस दौरान वह वकील से सिर्फ न्यायालय के मामले पर ही नहीं बल्कि पारिवारिक मसलों पर भी चर्चा करते और फिर अगली सुबह दोनों एक साथ कचहरी पहुंचते थे. नई कचहरी में अब ना तो पहले वाली बात है और ना ही पहले वाले अधिवक्ता. यहां ठहरने-खाने की तो दूर की बात है चाय पीने तक के लिए भी कोई बेहतर व्यवस्था नहीं है. अधिवक्ता और मुवक्किल का संबंध भी अब आत्मीय नहीं केवल व्यावसायिक रह गया है.


अदालतें बढ़ी तो बढ़े मामले : 

2007 में फैमिली कोर्ट का उद्घाटन होने के पूर्व एक अधीनस्थ न्यायालय में पारिवारिक वाद के 369 मामले दर्ज थे लेकिन जब कुटुंब न्यायालय(फैमिली कोर्ट) का उद्घाटन हुआ. उसके बाद मामलों की संख्या बढ़कर दो हजार से ज्यादा हो चुकी है. आज व्यवहार न्यायालय परिसर में कुटुंब न्यायालय के साथ-साथ स्थाई लोक अदालत, जुबेनाइल कोर्ट के अतिरिक्त जिला विधिक सेवा प्राधिकार भी है लेकिन, बढ़ते न्यायालयों के साथ न सिर्फ मामले बल्कि, लंबित मामलों का भी बोझ बढ़ता जा रहा है.
तीन अधिवक्तों से शुरु हुआ सफ़र दो हज़ार अधिवक्ताओं तक पहुंचा : 

वरीय अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद वर्मा के मुताबिक 1685 में स्थापित शाहाबाद जिला के अंतर्गत 1857 में निर्मित बक्सर अनुमंडल के मुख्यालय स्थित पुरानी कचहरी परिसर में 17 मई 1912 को बक्सर व्यवहार न्यायालय की स्थापना भारत के संविधान निर्माता के रूप में अपनी भूमिका निभाने वाले डॉ सच्चिदानंद सिन्हा बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे. उस वक्त बक्सर अनुमंडल के अंग्रेज एसडीएम डब्ल्यू एच हेराल्ड ने न्यायालय की स्थापना का नोटिफिकेशन प्रस्तुत किया उस वक्त तीन अधिवक्ताओं केदार ओझा, बाबू हरध्यान सिंह और पलटू बाबू (प्रणव मुखर्जी) से शुरु हुआ सफर आज दो हजार अधिवक्ताओं तक पहुंच गया है. तकरीबन एक सौ से ज्यादा महिला अधिवक्ता हैं. 17 मार्च 1991 को जिला बनने के बाद 11 दिसंबर 1992 को तत्कालीन मुख्य न्यायधीश बिमल चंद्र बसाक ने किया था.

स्थापना दिवस पर आयोजित होना चाहिए कार्यक्रम :

अधिवक्ता राघव पांडेय, राजेश कुमार समेत कई युवा अधिवक्ता इस बात का दुःख जाहिर करते हैं कि स्थापना दिवस पर कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ है. अधिवक्ताओं का मानना है कि ऐतिहासिक व्यवहार न्यायालय की स्थापना दिवस के मौके पर अधिवक्ताओं तथा न्यायिक पदाधिकारियों के सहयोग से भव्य कार्यक्रम का आयोजन होना चाहिए ताकि इस ऐतिहासिक दिन का महत्व और भी बढ़ जाए.















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