मनुष्य को मानवता की शिक्षा देने के लिए भगवान लेते हैं अवतार : आचार्य पौराणिक

सनातन मानवता के विनाश को देखकर देव ऋषि धरा के आर्तनाद से दयार्द भगवान नारायण श्री कृष्ण नामक मानव बनकर संपूर्ण सृष्टि के जीवों की रक्षा एवं सनातन धर्म की प्रतिष्ठापना सभी अमानवों का उद्धार, साधु संतों का सम्मान करते हुए मानव धर्म अर्थात सनातन धर्म का मनुष्य समाज में उत्कृष्ट प्रशिक्षण देकर अवतारवाद को पूर्ण करते हैं. 



- भागवत कथा के दौरान भगवान के अवतार पर आचार्य ने की चर्चा
- सर्वजन कल्याण सेवा समिति के द्वारा आयोजित है धर्मायोजन

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : रामरेखा घाट स्थित रामेश्वर नाथ मंदिर प्रांगण में सर्वजन कल्याण समिति के 14 वें धर्मयोजन के तहत चल रहे सात दिवसीय भागवत कथा व श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के चतुर्थ दिवस पर भागवत कथा के दौरान आचार्य श्री कृष्णानंद शास्त्री "पौराणिक" जी महाराज ने कहा कि भगवान का धरा पर अवतार राक्षस वध एवं साधु का परित्राण मात्र नहीं है. यह सर्वाधिक आसान एवं लघु कार्य तो नारायण बैकुंठ में बैठे-बैठे अपने संकल्प मात्र से ही कर सकते हैं. श्री सुखदेव जी ने कहा, राजन परीक्षित उन प्रभु के अवतार मनुष्यों को मानवता की शिक्षा देने के लिए होता है. मानव समाज को यह बताने के लिए वे मानव बनते हैं कि पुत्र का पिता का शिष्य का पति का राजा का इत्यादि जितने मानवीय संबंध एवं व्यवहार है उनका आचरण व्यवहार विचार एवं कर्तव्य तथा मानव का धर्म क्या है मनुष्य को संसार में कैसे रहना चाहिए.
 


भगवान के अवतार का कारण है कि जब जब इस वसुंधरा पर मानवता विनष्ट होकर भयंकर दानवता का रूप धारण कर लेती है और मानवता का दमन करने लगती है तब मानवता की घनीभूत मूर्ति (जिन्हें हम साधु एवं संत कहते हैं) महात्माओं की पुकार सुनकर प्रभु अपने बैकुंठ लोक से इस पृथ्वी पर आते हैं अर्थात उतरते हैं इस उतरने की विधि को ही अवतार कहा जाता है. जिसकी व्युत्पत्ति है अवतरतीति अवतार: 

भगवान का अवतार तीन कार्यों को मुख्यतः संपादित करता है. प्रथम मानव समाज को संपूर्णता के साथ मानवता एवं मानव धर्म की शिक्षा. द्वितीय जो मानव है साधु, संत, महापुरुष इत्यादि इन सभी का हित एवं रक्षा. तीसरा कार्य है राक्षसों दानवों तथा अमानवीय कृत्य करने वालों का उद्धार. ईश्वर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह किसी को भी मारता नहीं अपितु तारता है. जैसे पारस पत्थर किसी भी परिस्थिति में लोहा को सोना बनाता है ठीक वैसे ही भगवान राक्षसों को किसी भी प्रकार का संबंध होते हैं उसका उद्धार कर देते हैं. अवतार की व्युत्पत्ति अव+तार ,अवती रक्षती भक्तान्, तार+तारयति दुष्टान य: स:अवतार. रक्षा करना एवं तारना ही अवतार है. आज से तकरीबन 5 हज़ार 250 वर्ष पहले इस धराधाम पर मानव समाज से बहुतायत रूप में मानवता समाप्त हो गई थी तथा दानवता प्रतिष्ठापित होकर अल्प संख्या में बची मानवता 
का विनाश कर सनातन धर्म को नष्ट करने लगी थी. उस कालखंड के धर्मनिरपेक्ष शासकों कंस, जरासंध, शिशुपाल, दंतवक्र, दुर्योधन, शकुनी इत्यादि के द्वारा साधु-संत महात्मा एवं मानवता अर्थात सनातन धर्म को भी नष्ट करने के विविध उपाय उद्योग एवं नीतियां अपनाई जाने लगी. सनातन मानवता के विनाश को देखकर देव ऋषि धरा के आर्तनाद से दयार्द भगवान नारायण श्री कृष्ण नामक मानव बनकर संपूर्ण सृष्टि के जीवों की रक्षा एवं सनातन धर्म की प्रतिष्ठापना सभी अमानवों का उद्धार, साधु संतों का सम्मान करते हुए मानव धर्म अर्थात सनातन धर्म का मनुष्य समाज में उत्कृष्ट प्रशिक्षण देकर अवतारवाद को पूर्ण करते हैं. यही हमारे भगवान का उदार चरित्र उनको विश्वपूज्य एवं जगतवंद्य बनाता है. श्री कृष्ण जन्म का यही महत्व है.




















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