बक्सर के रेसलर रूद्र ने जीती वर्ल्ड लेवल चैंपियनशिप ..

कई बार इन्हें शरीर पर गंभीर चोटें भी आई. इसके बावजूद इलाज एवं खेल दोनों अनवरत जारी रखा. जिसका परिणाम यह हुआ महज एक वर्ष में ही द ग्रेट खली के नेतृत्व में इतने बड़े सम्मान को हासिल कर लिया.आज यह उस संस्थान में द ग्रेट खली के सबसे लोकप्रिय खिलाड़ियों में से एक हैं. जो अभी भी दुनिया के कई देशों में खेलने के लिए अभ्यासरत हैं.






- जिले के राजपुर प्रखंड के कोनौली के रहने वाले हैं रूद्र राहुल कुशवाहा
- द ग्रेट खली के दिशा निर्देशन में मिली सफलता

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : राजपुर प्रखंड के खीरी पंचायत अंतर्गत कोनौली गांव के युवा रेसलर रुद्र राहुल कुशवाहा ने कॉन्टिनेंटल रेसलिंग एंटरटेनमेंट (सीडब्ल्यूइ) की वर्ल्ड हेलिवेट टैग टीम चैंपियनशिप का खिताब जीता है. राहुल बिहार के अभी पहले प्रोफेशनल रेसलर हैं, जिनके साथ राजस्थान के प्रदीप सैनी ने भी साथ दिया है. इन्होंने वर्ल्ड स्तर की चैंपियनशिप जीती है. इस रेसलिंग के फाइनल में अपने निकटतम रहे अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी हिमाचल प्रदेश के सूर्या टेकर एवं पंजाब के हरमन सिंह को पराजित कर इस खिताब को अपने नाम किया है. 




रुद्रा राहुल कुशवाहा पिछले एक वर्ष से द ग्रेट खली की कॉन्टिनेंटल रेसलिंग एंटरटेनमेंट अकादमी में ट्रेनिंग ले रहे हैं. उसने बताया कि बचपन से ही टीवी शो पर रेसलिंग एवं बॉक्सिंग खेल को देखा करता था तब कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह इस खेल का एक हिस्सा बनेंगे. घरवालों की इच्छा थी कि वह पढ़ लिखकर किसी प्रतियोगी परीक्षा को हासिल कर एक अच्छा अधिकारी बन देश एवं समाज हित में काम करें. जिसके लिए स्नातक की पढ़ाई पूरा करने के बाद वह आंखों में उज्जवल भविष्य का सपना लिए पटना एवं दिल्ली में रहकर कई प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. 


इसी बीच कोरोना महामारी ने पूरे दुनिया में तबाही मचा दी. लॉकडाउन के समय यह भी अपने गांव कोनौली चले आए. यहां लगभग दो-तीन महीना रहने के बाद पढ़ाई नहीं होने की वजह से मन नहीं लग रहा था. मन के अंदर कुछ और ही करने का जज्बा था. एक अच्छे खिलाड़ी के तौर पर देश का नाम रौशन करने का सपना लिए वह इंटरनेट की दुनिया से रेसलर संस्थान का पता ढूंढने लगे. जानकारी मिलते ही वह पंजाब के जालंधर जा पहुंचे. जहां दिलीप सिंह राणा उर्फ द ग्रेट खली के संस्थान में अपना नामांकन करा लिया. इसके बाद से ही इसने बहुत काफी कठिन परिश्रम किया. 

उन्होंने बताया कि इस खेल को सीखने में कई बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. कई बार इन्हें शरीर पर गंभीर चोटें भी आई. इसके बावजूद इलाज एवं खेल दोनों अनवरत जारी रखा. जिसका परिणाम यह हुआ महज एक वर्ष में ही द ग्रेट खली के नेतृत्व में इतने बड़े सम्मान को हासिल कर लिया.आज यह उस संस्थान में द ग्रेट खली के सबसे लोकप्रिय खिलाड़ियों में से एक हैं. जो अभी भी दुनिया के कई देशों में खेलने के लिए अभ्यासरत हैं. इधर इनके खिताब के हासिल करने पर इनके पिता वंश नारायण सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता श्याम कुमार सिंह, पूर्व मुखिया मकरध्वज सिंह विद्रोही, शिक्षक धनंजय मिश्र के अलावा अन्य समाजसेवियों एवं बुद्धिजीवियों ने बधाई देते हुए सफलता के ऊंचे शिखर तक पहुंचने की कामना की.
















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