गुरुजनों के पूजन को उमड़ी शिष्यों की भीड़, हनुमत धाम में गुरु और शिष्य की महिमा पर हुई कथा ..

गुरु और पारस मणि के अन्तर को सभी ज्ञानी पुरूष ही जानते हैं..पारस मणि के रहस्य से पूरा जगत परिचित है. जिसके स्पर्श मात्र से लोहा सोने का बन जाता है. ठीक उसी प्रकार गुरू भी इतने महान होते हैं कि अपने गुण ज्ञान में ढालकर शिष्य को अपने जैसा ही महान बना देते हैं.
मामा जी की आरती करते रामचरित्र दास जी महाराज



बसांव पीठाधीश्वर अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज

- गुरुदेव के उपदेशों का पालन करना ही गुरुभक्ति है : श्रीराम चरित्र दास जी महाराज
- शिष्यों ने की अपने-अपने गुरुओं की पूजा अर्चना

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : गुरु पूर्णिमा के अवसर पर जिले भर में अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया गया इसमें श्रद्धालु भक्त अपने-अपने गुरुजनों के पास पहुंचे और उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेते हुए उनका पूजन किया. इस दौरान बसांव मठ, श्री त्रिदंडी स्वामी समाधि स्थल समेत तमाम मठ-मंदिरों में लोगों की भीड़ दिनभर लगी रही. 



सदर प्रखंड में स्थित श्री हनुमत धाम मंदिर प्रांगण में गुरु पूर्णिमा महोत्सव मनाया गया. शिष्यों ने गुरु की पूजन अर्चना की. साकेतवासी परम पूज्य श्रीमन्नारायण नेहनिधि नारायण दास जी भक्तमाली उपाख्य श्री मामा जी महाराज के प्रथम शिष्य श्री रामचरित्र दास जी महाराज उपाख्य श्री महात्मा जी ने कथा के दौरान कहा कि गुरु और शिष्य की महिमा बहुत ही निराली एवं सुखदायक होती है. पूरे मनोयोग से अगर गुरु की सेवा की जाए तो भगवान की सेवा अपने आप हो जाती है.
स्वामी त्रिदंडी देव समाधि स्थल में गुरु पूजन करते अयोध्या नाथ जी महाराज

महाराज श्री ने कहा कि गुरु का पूजन केवल एक गुरु पूर्णिमा के दिन करने से नहीं बल्कि गुरु के उपदेशों को आत्मसात करने मात्र से ही गुरु पूजन का फल प्राप्त हो जाता है. गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान, तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है. अर्थात दो अक्षरों से मिलकर बने 'गुरु' शब्द का अर्थ प्रथम अक्षर 'गु का अर्थ- 'अंधकार' होता है जबकि दूसरे अक्षर 'रु' का अर्थ- 'उसको हटाने वाला' होता है. संत तुलसीदास ने कहा है कि 'गुरु विन भवनिधि तरई न कोई. जो बिरंचि संकर सम होई." अर्थात- गुरु की कृपा प्राप्ति के बगैर जीव संसार सागर से मुक्त नहीं हो सकता चाहे वह ब्रह्मा और शंकर के समान ही क्यों न हो? गुरु का दर्जा सम्पूर्ण सृष्टि में भगवान से भी अधिक माना गया है. गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए संत कबीरदास जी ने कहा है कि "गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काको लागू पाय, बलिहारी वा गुरु की, जो गोविन्द दियो बताए.." गुरू और पारस मणि के अन्तर को सभी ज्ञानी पुरूष ही जानते हैं..पारस मणि के रहस्य से पूरा जगत परिचित है. जिसके स्पर्श मात्र से लोहा सोने का बन जाता है. ठीक उसी प्रकार गुरू भी इतने महान होते हैं कि अपने गुण ज्ञान में ढालकर शिष्य को अपने जैसा ही महान बना देते हैं.
श्रद्धालुओं के बीच कथा वाचन करते आचार्य बद्रीनाथ वनमाली जी महाराज

कथा के दौरान उन्होंने ने कहा कि जैसा भोजन आपके शरीर के लिए आवश्यक है वैसे ही सन्तो गुरुजनों का संग करना आवश्यक है. गुरुजनों के द्वारा रचित ग्रन्थ का अध्ययन करना भी भक्ति है. सत्संग का सेवन करना ही मनुष्य के जीवन का पहला लक्ष्य होना चाहिए. इसलिए सप्ताह में एक दिन आवश्यक ही सत्संग या सन्तो की संग जरूर करें और प्रभु के नाम गुण का चिंतन करे. गुरुदेव के उपदेशों का पालन करना ही भक्तों का पूर्ण कर्तव्य होना चाहिए। कथा विश्राम के बाद हजारों लोगों ने प्रसाद पाया.

मौके पर रविलाल, नमोनारायण, अशोक, नंदबिहारी, लालजी, नीतीश, बिनीता दीदी, त्यागी जी, रघुनंदन, श्यामजी, राजऋषि, राजेश,पिंटू, सरोज, अनिमेष, जगत, हरिजी, गोविंद समेत अन्य भक्त मौजूद रहे.

















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