विद्वत परिषद की संगोष्ठी में बक्सर के प्रतीक चिन्ह पर हुई चर्चा ..

कहा कि बक्सर प्रसिद्ध देवताओं के युद्ध क्षेत्र और पुराणों के अनुसार स्वास्थ्य और आधुनिक इतिहास में विदेशी आक्रमण और देशवासियों के बीच एक युद्ध क्षेत्र के लिए महाकाव्य की अवधि से प्रसिद्ध है. पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त अवशेष बक्सर की प्राचीन संस्कृतियों के साथ मोहनजोदड़ो और हड़प्पा को जोड़ता है. आश्चर्य है ऐसे संदर्भ में भी पर्यटन विभाग द्वारा बक्सर के लिए आज तक प्रतीक चिन्ह के निमित पहल क्यों नहीं? 





- वक्ताओं ने कहा अति पौराणिक विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल को प्रतीक चिन्ह नहीं मिलना दुखद
- संरक्षक ने कहा, बक्सर का इतिहास रामायण काल से जुड़ा हुआ

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : विद्वत परिषद के संरक्षक एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार निलय उपाध्याय के मार्गदर्शन में रविवार को नगर के ज्योति प्रकाश पुस्तकालय परिसर में विद्वत परिषद के तत्वाधान में प्रबुद्ध बुद्धिजीवी एवं साहित्यकारों की उपस्थिति में साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें बक्सर का प्रतीक चिन्ह नहीं होने पर रोष व्यक्त करते हुए इसके लिए कार्य करने की चर्चा की गई. संगोष्ठी की अध्यक्षता परिषद के अध्यक्ष रामेश्वर प्रसाद वर्मा ने की एवं संचालन पत्रकार मंगलेश तिवारी ने किया. समागतो के सम्मान में स्वागत भाषण लेखक एवं कवि शशि भूषण मिश्र ने किया




संगोष्ठी को संबोधित करते हुए अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद वर्मा ने कहा कि बिहार के 38 जिलों सहित प्रस्तावित शाहाबाद प्रमंडल अंतर्गत स्थापित विधिवत चार जिलों भोजपुर, बक्सर, रोहतास एवं कैमूर के मध्य एकमात्र बक्सर ही ऐसा जिला है जो पौराणिक ऐतिहासिक सांस्कृतिक शैक्षणिक भौगोलिक तकनीकी राजनीतिक एवं राजस्व राशि के संदर्भ में सर्वोपरि है. फिर भी अति  पौराणिक विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त बक्सर जनपद प्रशासनिक सरकारी के पर्यटन स्थल पर अपने प्रतीक चिन्ह के लिए आज तक लालायित है जबकि, गायत्री महामृत्युंजय नारवान आदि महामंत्र का सर्वप्रथम प्रस्फुटन इसी बक्सर के आदी व अति प्राचीन नाम सिद्धाश्रम स्थलों पर महर्षि विश्वामित्र व नारद जैसे प्राणियों के श्री मुख से हुआ है. मर्यादा पुरुषोत्तम राम उनके अनुज लक्ष्मण का गुरुधाम शिक्षा स्थल होने के बावजूद को अपना प्रतीक चिह्न प्राप्त नहीं हो सका है, जो अत्यंत खेद का विषय है. इस महत्व लक्ष्य की प्राप्ति हेतु बक्सर विद्वत परिषद कृत संकल्पित है. 

मंच संचालन के क्रम में पत्रकार मंगलेश तिवारी ने कहा कि बक्सर प्रसिद्ध देवताओं के युद्ध क्षेत्र और पुराणों के अनुसार स्वास्थ्य और आधुनिक इतिहास में विदेशी आक्रमण और देशवासियों के बीच एक युद्ध क्षेत्र के लिए महाकाव्य की अवधि से प्रसिद्ध है. पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त अवशेष बक्सर की प्राचीन संस्कृतियों के साथ मोहनजोदड़ो और हड़प्पा को जोड़ता है. आश्चर्य है ऐसे संदर्भ में भी पर्यटन विभाग द्वारा बक्सर के लिए आज तक प्रतीक चिन्ह के निमित पहल क्यों नहीं? संरक्षक निलय उपाध्याय ने कहा कि बक्सर का इतिहास रामायण की अवधि से पहले हैं. दिशानिर्देश के तहत निलय उपाध्याय बक्सर विद्वत परिषद के विधिवत निबंधन हेतु इसके संविधान निर्माण के लिए परिषद के अध्यक्ष अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद वर्मा को अधिकृत किया जिसे सर्वसम्मति से प्रस्ताव के रूप में पारित किया गया. ज्योति प्रकाश पुस्तकालय के निदेशक ने बक्सर विद्युत परिषद के लिए हर संभव सहयोग देने का आश्वासन दिया. 

संगोष्ठी के अंत में कवियों द्वारा काव्य पाठ किया गया जिसमें निलय उपाध्याय, मंगलेश तिवारी, पवन नंदन, रामेश्वर प्रसाद वर्मा, शशि भूषण मित्र, शिव बहादुर पांडे पीतम, रामेश्वर मिश्र बिहान, मीरा सिंह मीरा, पुनर्णानंद, डा स्वेत प्रकाश, संजीव कुमार समेत अन्य शामिल रहे. अंत में धन्यवाद ज्ञापन परिषद के प्रसार सचिव आलोक कुमार ने किया.


















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