कलियुग में हो रहा है अमानवीय मूल्यों का संरक्षण व पोषण : आचार्य पैराणिक

संपूर्ण मानव समाज कलियुग का पुजारी बनता दिख रहा है. दुर्भाग्य तो यह है कि हम धन के गुलाम बन गए हैं. हमारा जीवन केवल धन के लिए ही हो गया है. मानव जीवन में धन की आवश्यकता है यह भागवत का उपदेश है लेकिन, धन के लिए मानव जीवन है यह कलि का सिद्धांत है. कलि के सिद्धांत पर चलने वाला दुर्योधन आदि कौरव का हश्र हम जानते हैं. 






- भागवत कथा के दौरान आचार्य कृष्णानंद शास्त्री पौराणिक जी महाराज ने कही बात
- कहा, कलियुग में धर्म होगा नष्ट, अधर्म का होगा बोलबाला

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : मानवीय मूल्यों का ह्रास सभी युगों में देखा जाता है किंतु कलियुग तो अमानवीय मूल्यों का पोषक, जनक तथा संवर्धक है. यह कहना है आचार्य कृष्णानंद शास्त्री "पौराणिक" जी महाराज का. वह नगर के रामरेखा घाट स्थित रामेश्वर नाथ मंदिर में आयोजित भागवत कथा के दौरान लोगों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने बताया कि कलियुग की संपूर्ण आयु 4,32,000 वर्ष है 5,123 वर्ष ही अभी व्यतीत हुआ है. शेष आयु 4,26,877 वर्ष है.


कलियुग का आगमन अर्थात जन्म महाराज परम भागवत परीक्षित जी के कार्यकाल में हुआ. कलियुग का गुण एवं धर्म पुराणों में बताया गया है कि मानव समाज से धर्म का वनवास हो जाएगा, तपस्या नष्ट हो जाएगी. सत्य मानव समाज से इतना दूर चला जाएगा कि दिखाई नहीं देगा. मनुष्य कपट, छल, प्रपंच को ही अपना धर्म मानेगा. मन में इतनी दुष्टता होगी कि वह किसी को भी सुखी नहीं देखFआ सकेगा. सरकारें जनता का खून चूस कर पीने वाली होंगी. पुत्र पिता से द्वेष करेंगे. साधु एवं विद्वान दुखी एवं विपन्न होंगे. दुर्जन एवं पापी संपन्न तथा बलवान होंगे. स्त्रियां परजीवी होंगी. भाई-भाई का परम शत्रु बनेगा. गुरु शिष्य का संबंध अर्थ तक सीमित रहेगा. इस प्रकार इस कलयुग में न्याय, सत्य तथा अच्छाइयों का दमन होगा. इस कलि के इन सब दुर्गुणों के कारण महाराज परीक्षित ने कलि को अपने राज्य में केवल चार ही स्थान दिया. द्यूत क्रीड़ा, सुरा पान, हिंसा एवं वेश्या गमन स्थल परंतु कलि ने प्रार्थना पूर्वक एक स्थान स्वर्ण भी मांग लिया तब से कलियुग इन पांचों ही स्थानों को इतना महत्वपूर्ण बना दिया कि आज संपूर्ण मानव समाज कलियुग का पुजारी बनता दिख रहा है. दुर्भाग्य तो यह है कि हम धन के गुलाम बन गए हैं. हमारा जीवन केवल धन के लिए ही हो गया है. मानव जीवन में धन की आवश्यकता है यह भागवत का उपदेश है लेकिन, धन के लिए मानव जीवन है यह कलि का सिद्धांत है. कलि के सिद्धांत पर चलने वाला दुर्योधन आदि कौरव का हश्र हम जानते हैं. 

भागवत में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि जो व्यक्ति लोभ एवं स्वार्थ के वशीभूत होकर कलि के मार्ग का अनुगमन करता है उस के विनाश का तथा पांडव जैसे धर्म के मार्ग पर चलने वाले नर के विकास का मार्ग मैं स्वयं प्रशस्त करता हूं.


















Post a Comment

0 Comments