ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इससे पूर्व भी नगर के खंभों से पुराने स्ट्रीट लाइट निकाल कर नए लगाने के बाद पुराने लाइटों का हिसाब अधिकारी नहीं दे सके हैं. साफ-सफाई के लिए इस्तेमाल होने वाले भी कई यंत्र देखते ही देखते गायब हो जाते हैं और किसी को कुछ पता भी नहीं चलता.
- नगर परिषद के सैकड़ों छोटे-बड़े डस्टबिन हुए गायब, ढक्कन और स्टैंड दे रहे घोटाले की गवाही
- ना लोगों को बांटे गए, ना सड़कों पर लगे, अब कबाड़खाने में बेचे जाने की आशंका
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : अपने कार्यशैली को लेकर सदैव चर्चा में रहने वाले नगर परिषद में अबकी बार डस्टबिन घोटाला सामने आया है. ये चर्चा उस वक्त शुरु हुई जब नगर परिषद कार्यालय भवन की छत पर प्लास्टिक के डस्टबिन के सैकड़ों ढक्कन एवं स्टैंड फेंके हुए देखे गए. नगर परिषद के पास सैकड़ों ढक्कन तो मौजूद हैं लेकिन, उसके डस्टबिन गायब हैं. उसी प्रकार सैकड़ों स्टैंड मौजूद हैं लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर लगने वाले डस्टबिन गायब. खास बात यह है कि इसको लेकर संबंधित अधिकारी साफ-साफ़ कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं.
गीला और सूखा कचरा के लिए घरों में बांटे जाने वाले हरे और नीले प्लास्टिक डस्टबिन के ढक्कन तथा विभिन्न चौक-चौराहों पर लगाए जाने वाले सार्वजनिक डस्टबिन के लोहे के बने स्टैंड देखकर यह साफ नहीं हो सका कि जिन डस्टबिनों ढक्कन छत की छत पर फेंके गए हैं. उनके डस्टबिन कहां है? सवाल यह भी है कि सार्वजनिक स्थानों पर लगने वाले सैकड़ों लोहे के स्टैंड रखे गए हैं तो उनके डस्टबिन कहाँ हैं?
कागज में 20 लेकिन लगाए गए केवल 5 डस्टबिन :
नाम न छापने की शर्त पर एक निवर्तमान वार्ड पार्षद ने बताया कि सार्वजनिक स्थानों पर लगाने के लिए कुल 20 डस्टबिन बांटे जाने थे. कागज में बांट भी दिए गए लेकिन धरातल पर केवल 5 डस्टबिन ही आएं. खास बात यह है कि जो डस्टबिन मिले उनमें स्टैंड नहीं था. निवर्तमान वार्ड पार्षद का यह भी कहना है कि तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने भी जबरन पांच डस्टबिन देकर 20 डस्टबिन पाए जाने के पत्र पर हस्ताक्षर करवाए थे.
तो क्या कबाड़ में बेच दिए गए डस्टबिन?
नगर परिषद कार्यालय सूत्रों की मानें तो जनता को बांटने के बजाय डस्टबिन कबाड़खाने में बेच दिए गए. ऐसे में सैकड़ों ढक्कन और स्टैंड बच गए हैं. संबंधित पदाधिकारी अब इन्हें भी ठिकाने लगाने की योजना बना रहे हैं. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. इससे पूर्व भी नगर के खंभों से पुराने स्ट्रीट लाइट निकाल कर नए लगाने के बाद पुराने लाइटों का हिसाब अधिकारी नहीं दे सके हैं. साफ-सफाई के लिए इस्तेमाल होने वाले भी कई यंत्र देखते ही देखते गायब हो जाते हैं और किसी को कुछ पता भी नहीं चलता.
सरकारी राशि का सदैव होता है बंदरबांट :
सामाजिक कार्यकर्ता मतिर्रहमान ने बताया कि नगर परिषद के द्वारा सदैव सरकारी राशि का बंदरबांट होता रहता है. जनहित के लिए जो राशि नगर आवास एवं विकास विभाग द्वारा दी जाती है उससे अधिकारी अपनी जेब भरते हैं. यह कोई पहला मामला नहीं ऐसे कई मामले हैं जिसमें जनहित को दरकिनार करते हुए अधिकारी स्वहित के लिए तत्पर देखे जाते हैं. उन्होंने कहा कि नगर परिषद की कार्यपालक पदाधिकारी के संरक्षण में कई बड़े घोटाले हो रहे हैं.
कहती हैं कार्यपालक पदाधिकारी :
दीपावली में साफ-सफाई के दौरान डस्टबिन के ढक्कन और स्टैंड छत पर रखे गए हैं हालांकि, यह नगर परिषद का अंदरूनी मामला है. इससे जनता को अथवा किसी अन्य को कोई मतलब नहीं होना चाहिए.
प्रेम स्वरूपम
कार्यपालक पदाधिकारी,
नगर परिषद
वीडियो :
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