रामलीला महोत्सव : अति बलशाली पवननंदन का हुआ जन्म, वज्र प्रहार से बने हनुमान ..

दिखाया गया कि  सुग्रीव को राज्य मिलने के बाद वह श्री राम की सुध लेना भूल जाते हैं. तब लक्ष्मण जी किष्किंधा जाकर उन पर भारी क्रोध करते हैं उसके बाद सुग्रीव जी बंदर, भालूओं को सीता की खोज के लिए सभी दिशाओं में भेजते है. इधर हनुमान, जामवंत, नल, नील, अंगद जी सभी माता सीता को ढूंढने के लिए चल देते हैं. 
लंका में पहुंचे हनुमान ने माता सीता को दिया प्रभु श्रीराम का संदेश






- लंका दहन" व 'श्री हनुमत जन्म' के प्रसंग का हुआ मंचन
- 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव का पन्द्रहवां दिन

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर :  श्री रामलीला समिति,बक्सर के तत्वावधान में रामलीला मैदान स्थित विशाल मंच पर चल रहे 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के दौरान आज पंद्रहवें दिन रविवार को श्रीधाम वृंदावन से पधारी सुप्रसिद्ध रामलीला मण्डल श्री श्यामा श्याम रासलीला संस्थान के स्वामी श्री नन्दकिशोर रासाचार्य जी के सफल निर्देशन में "हनुमत जन्म" तथा "लंका दहन" प्रसंग का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि सूर्य के वर से सुवर्ण के बने हुए सुमेरु में केसरी का राज्य था. उसकी अति सुंदरी अंजना नामक स्त्री थी. एक बार अंजना ने शुचिस्नान करके सुंदर वस्त्राभूषण धारण किया. उस समय पवन देव ने उसके कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर आते समय आश्वासन दिया कि तेरे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा. आगे चलकर कार्तिक मास कृष्ण चतुर्दशी की महानिशा में अंजना के उदर से हनुमान जी उत्पन्न हए. दो प्रहर बाद सूर्योदय होते ही उन्हें भूख लगी. माता फल लाने गई. इधर लाल वर्ण के सूर्य को फल मान कर हनुमान जी उसको लेने के लिए आकाश में उछल पड़े. उस दिन अमावस्या होने से वज्र-प्रहार को ग्रसने के लिए राहु भी आया था, किंतु हनुमान जी को दूसरा राहु मान कर वह भाग गया. तब इंद्र ने हनुमान जी पर वज्र-प्रहार किया. उससे इनकी ठोड़ी टेढ़ी हो गई, जिससे ये हनुमान कहलाए. इंद्र की इस दृष्टता का दंड देने के लिए पवन देव ने प्राणि मात्र का वायु संचार रोक दिया. तब ब्रह्मादि सभी देवों ने हनुमान को वर दिए. ब्रह्माजी ने अमितायु का, इंद्र ने वज्र से हत न होने का, सूर्य ने अपने शतांश तेज से युक्त और संपूर्ण शास्त्रों के विशेषज्ञ होने का, वरुण ने पाश और जल से अभय रहने का, यम ने यमदंड से अवध्य और पाश से नाश न होने का, कुबेर ने शत्रुमर्दिनी गदा से निःशंख रहने का, शंकर ने प्रमत्त और अजेय योद्धाओं से जय प्राप्त करने का और विश्वकर्मा ने मय के बनाए हुए सभी प्रकार के दुर्बोध्य और असह्य, अस्त्र, शस्त्र तथा यंत्रादि से कुछ भी क्षति न होने का वर दिया. इस दृश्य को देख दर्शक रोमांचित हो जय श्री राम का उद्घोष करते हैं.

वहीं देर रात्रि मंचित रामलीला के दौरान "लंका दहन" नामक प्रसंग का मंचन किया गया, जिसमें दिखाया गया कि  सुग्रीव को राज्य मिलने के बाद वह श्री राम की सुध लेना भूल जाते हैं. तब लक्ष्मण जी किष्किंधा जाकर उन पर भारी क्रोध करते हैं उसके बाद सुग्रीव जी बंदर, भालूओं को सीता की खोज के लिए सभी दिशाओं में भेजते है. इधर हनुमान, जामवंत, नल, नील, अंगद जी सभी माता सीता को ढूंढने के लिए चल देते हैं. सीता का पता लगाते हुए सभी बंदर और भालू समुद्र के समीप पहुंच जाते हैं. सभी वीर समुद्र पार करने में अपनी असमर्थता दिखाते हैं. इसके बाद जामवंत जी हनुमान जी को उनके बल का स्मरण दिलाते हैं. तब हनुमान जी गर्जना करके समुद्र मार्ग में चल देते हैं. आगे बढ़ने पर उन्हें सर्पों की माता सुरसा दिखाई देती है. जो हनुमान जी को खाने के लिए सौ योजन का मुंह फैलाए हुए रहती है. हनुमान जी चतुराई करते हुए अपना छोटा सा रूप बनाकर सुरसा के मुख्य में प्रवेश करके बाहर निकल जाते हैं. आगे बढ़ने पर एक सिंध नाम का की राक्षसी मिलती है. उसको मार कर हनुमान जी लंका के द्वार पर पहुंचते हैं. जहां उन्हें लंकिनी से भेंट होता है. वह लंकनी का उद्धार करते हुए लंका में प्रवेश करते हैं. लंका में देखते देखते वह विभीषण जी के महलों में पहुंचते हैं. वहां विभीषण हनुमान को सीता जी का पता बताते हैं. तब हनुमान जी अशोक वन पहुंचकर श्रीराम जी द्वारा दी हुई मुद्रिका माता सीता को देते हैं, और माता को समझा कर फल खाने के बहाने अशोक वन का विध्वंस कर देते हैं. यह सुनकर रावण कई योद्धाओं को भेजता है, अपने पुत्र अक्षय कुमार को भी भेजता है. अक्षय कुमार के मारे जाने के बाद मेघनाद आते हैं और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमान जी को पकड़ लेते हैं. और उनको रावण की सभा में सबके सामने ले आते हैं. जहां रावण की सभा हनुमान जी के पूंछ में आग लगाने का आदेश देती है. तब हनुमान जी छोटा सा रूप बनाकर लंका में आग लगाते हैं, और विभीषण के घर को छोड़कर पूरी सोने की लंका को जला डालते है. फिर वह समुद्र में अपने पूछ की आग बुझा कर सीता जी के समीप आ जाते हैं । वहाँ सीता जी उन्हें चूड़ामणि देकर विदा करती हैं. इस प्रंसंग को देखकर दर्शक रोमांचित हो जाते है, और पांडाल जय श्रीराम के उद्घोष से गूँज उठता है. इस दौरान सम्पूर्ण रामलीला परिसर श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था.
                  













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