कहा कि आज के झारखंड के सिदो मुर्मू एवम कान्हो मुर्मू सहित चांद भैरव के 1855-56 के संथाल विद्रोह में सहादत देनेवाले इन चारों भाइयों को इतिहास में उचित स्थान देने की जरूरत है,जो अंग्रेजों के खून से शौर्य गाथा लिखनेवाले नायक है.
- आजादी की लड़ाई में बिरसा मुंडा के योगदान पर हुई चर्चा
- ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध लड़ी थी मजबूत लड़ाई
बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : भगवान बिरसा मुंडा जन्म दिवस "जनजातीय गौरव दिवस" के अवसर पर जन शिक्षण संस्थान बक्सर में आयोजित में स्वतंत्रता संग्राम के जनजातीय नायकों का योगदान पर चर्चा की गई. इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि पूर्वी भारत तथा आज के झारखंड के देश भर के जनजातीय समुदायों के लिए भगवान के रूप में पूजनीय बिरसा मुंडा की जयंती है, जिन्हें देश भर के जनजातीय समुदाय भगवान के रूप में सम्मान देते हैं. बिरसा मुंडा देश के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और श्रद्धेय जनजातीय नायक थे, जिन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार की शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी.
बिरसा मुंडा के व्यक्तित्व, कृतित्व एवम स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदानों की चर्चा में भाग लेते हुए मुख्य अतिथि ज्योतिश्वर प्रसाद सिंह (बालकदास जी) ने कहा कि मुझे खुशी है कि बक्सर में बिरसा मुंडा एवम जनजातियों के योगदानों पर पहली बार चर्चा हो रही है. ऐसे आयोजनों से नई पीढ़ी बिरसा मुंडा एवम अन्य गुमनाम नायकों/नायिकाओं को समझ पाएगी. बिरसा मुंडा,कुँवर सिंह, महात्मा गाँधी को भूल न जायें, इसलिए भी ऐसे आयोजनों का होना जरूरी है. उन्होंने कहा कि आदिवासियों की लाइफ लाइन जल, जंगल और जमीन पर जब भी हमला होगा तो संथाल विद्रोह होगा-अंग्रेजों ने यहीं किया था. उन्होंने आगे कहा कि आदिवासियों की जीविका का आधार जंगल है. जनजातीय समाज के लोग आज भी पेट की लड़ाई लड़ रहे है.
विशिष्ट अतिथि व वरिष्ठ पत्रकार डॉ शशांक शेखर (सदस्य चाइल्ड वेलफेयर कमिटी, बक्सर) ने कहा कि पूरे देश को बिरसा मुंडा एवम अन्य सेनानियों के इस बिसरे इतिहास से रूबरू करवाना ही चाहिए. उन्होंने आह्वान किया कि प्रताड़ना के खिलाफ आवाज उठनी ही चाहिए.
अपने स्वागत भाषण में जन शिक्षण संस्थान के निदेशक मधु सिंह ने बिरसा मुंडा एवम अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के योगदानों पर पर्चा प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के महिला सेनानियों में फूलों मुर्मू एवम झानों मुर्मू के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता.
वीडियो कॉलिंग से कार्यक्रम से जुड़े संस्था के संस्थापक चेयरमैन एवम वीर कुँवर सिंह फाउंडेशन के अध्यक्ष निर्मल कुमार सिंह ने अतिथियों को एवम प्रशिनार्थियो को इस कार्यक्रम में आने के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि आज के झारखंड के सिदो मुर्मू एवम कान्हो मुर्मू सहित चांद भैरव के 1855-56 के संथाल विद्रोह में सहादत देनेवाले इन चारों भाइयों को इतिहास में उचित स्थान देने की जरूरत है,जो अंग्रेजों के खून से शौर्य गाथा लिखनेवाले नायक है. सिंह ने कहा कि संथाल विद्रोह में ही पहली बार नारा लगा था "करो या मरो". "अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो",
निर्मल सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ आह्वान किया कि स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल सभी नामचीन एवम गुमनाम सेनानियों तथा शहीदों को जिलेवार खोज कर उनके बारे में जानकारी इकठ्ठा करने की जरूरत है.
संताल हूल का नेतृत्व करनेवाले अपने भाइयों वीर सिदो, कान्हू, चांद, भैरव के साथ फूलो और झानो भी कदम से कदम मिला कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ीं. हूल विद्रोह को कार्ल मार्क्स ने कहा था : औपनिवेशिक भारत का पहला संगठित जनयुद्ध.
कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम अधिकारी संजय कुमार ने किया. इस अवसर पर कार्यालय कर्मी प्रशांत पाठक,प्रभाष केसरी, गुप्ता एवम अनुदेशिकाओं में मीरा पांडेय, सोनी कुमारी, बिंदु तथा प्रशिक्षणार्थी उपस्थित रहे. जन शिक्षण संस्थान द्वारा जिले में चल रहे अन्य प्रशिक्षण केंद्रों पर कार्यक्रम पर जागरूकता अभियान चलाया गया तथा बिरसा मुंडा एवम अन्य सेनानियों के संदर्भ में जानकारी दी गयी.
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