पंचकोसी यात्रा : माता अहिल्या के धाम पर उमड़ी श्रद्धालुओं की विशाल भीड़, जीवंत हुई परंपराएं ..

जब माता अहिल्या ने उनसे यह पूछा कि आखिर उनकी इसमें क्या गलती है तो गौतम ऋषि को भी इस बात का एहसास हुआ तब उन्होंने कहा कि अब श्राप वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन कुछ समय पश्चात महर्षि विश्वामित्र के साथ उनके दो शिष्य यहां पहुंचेंगे जिसमें श्री राम के चरणों से स्पर्श मात्र से उनका उद्धार हो जाएगा. बाद में ऐसा हुआ भी. 




- माता अहिल्या का पूजन करने के बाद श्रद्धालुओं ने भक्ति भाव से किया प्रसाद ग्रहण
- व्यवस्था संभालने में नाकाम दिखा प्रशासन तो लोगों ने किया सहयोग

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : पंचकोशी परिक्रमा के पहले दिन माता अहिल्या के धाम पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. सभी ने माता अहिल्या की पूजा अर्चना की तत्पश्चात पुआ पकवान और पकोड़े बनाकर प्रसाद स्वरूप उसे ग्रहण किया. सनातन संस्कृति समागम में पहुंची महिलाएं कार्यक्रम स्थल से निकलकर मौके पर पहुंच रही थी. इसके अतिरिक्त प्रतिवर्ष पांच कोस की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ भी मौके पर पहुंची थी. ऐसे में इस बार प्रतिवर्ष से ज्यादा लोगों की भीड़ अहिल्या धाम में पहुंच चुकी थी, जिन्हें नियंत्रित करना प्रशासन के लिए चुनौती साबित हो रहा था जिसके कारण मंदिर समिति से जुड़े लोगों के साथ-साथ पुजारी व स्थानीय लोगों के सहयोग से भीड़ को नियंत्रित किया जा रहा था.

मेले में गुरही जलेबी का लोगों ने चखा स्वाद, गोड़ समाज के लोगों ने किया पारंपरिक नृत्य :

अहिल्याधाम में आयोजित मेले में पूजा सामग्री के साथ-साथ बच्चों के खिलौने तथा गुरही जलेबी का स्टॉल लगाया गया था. गुड़ से बनी जलेबी का स्वाद लोगों को इतना पसंद आया कि जलेबी खाने के बाद वह अपने स्वजनों के लिए भी लेकर जा रहे थे. कार्यक्रम स्थल पर सदियों से चली आ रही परंपरा के तहत गोंड़ समुदाय के लोगों ने नृत्य प्रस्तुत किया. ऐसी मान्यता है कि किसी भी शुभ कार्य अथवा संतान प्राप्ति की मनोकामना पूरी होने के पश्चात महिलाएं इस समुदाय के लोगों को अपने आंचल पर नृत्य कराती हैं. गौर समाज के लोग विशेष तरीके से नृत्य करते हैं इसे देखने के लिए भी लोगों की भीड़ जमा होती है.

यहां महर्षि गौतम के श्राप से शिला बन गई थी माता अहिल्या, राम ने किया उद्धार :

पुजारी विद्या शंकर चौबे उर्फ गोवर्धन चौबे बताते हैं कि भगवान विश्वकर्मा ने पंच कन्याओं की रचना की थी जिसमें ब्रह्मा जी ने प्राण दिए थे. उन्ही पंच कन्याओं में माता अहिल्या भी थी. अत्यंत रूपवती होने के कारण उन पर इंद्र की कुदृष्टि थी. लेकिन ब्रह्मा जी ने गौतम ऋषि को अहिल्या के योग्य पाते हुए उनसे उनका विवाह करा दिया. बावजूद इसके इंद्र ने एक बार चंद्रमा के सहयोग से छल किया और चंद्रमा को छिप जाने का निर्देश दिया. चंद्रमा के छिप जाने के कारण मुर्गे ने बांग दे दी और महर्षि गौतम यह समझ कर कि सुबह हो गई है गंगा स्नान के लिए चल दिए. इसी बीच महर्षि गौतम का रूप बनाकर इंद्र अहिल्या के समक्ष चले आए. उधर गौतम ऋषि जब गंगा स्नान के लिए पहुंचे तो माता गंगा ने उनसे कहा इंद्र उनके साथ छल कर रहे हैं. जैसे ही वह वापस अपनी कुटिया पर आए तो उन्होंने कुटिया से इंद्र को निकलते हुए देखा. उन्होंने माता अहिल्या से यह सवाल किया कि आखिर वह इंद्र को क्यों नहीं पहचान सकी? ऋषि ने माता अहिल्या को तत्क्षण पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया. साथ ही इंद्र के शरीर में असंख्य छिद्र तथा चंद्रमा को क्षय का श्राप दे दिया. उनके श्राप पर जब माता अहिल्या ने उनसे यह पूछा कि आखिर उनकी इसमें क्या गलती है तो गौतम ऋषि को भी इस बात का एहसास हुआ तब उन्होंने कहा कि अब श्राप वापस नहीं लिया जा सकता लेकिन कुछ समय पश्चात महर्षि विश्वामित्र के साथ उनके दो शिष्य यहां पहुंचेंगे जिसमें श्री राम के चरणों से स्पर्श मात्र से उनका उद्धार हो जाएगा. बाद में ऐसा हुआ भी. जब पंचकोशी यात्रा के क्रम में श्रीराम यहां पहुंचे तो अहिल्या को उनका पुराना स्वरूप वापस मिल गया. श्रीराम ने रात्रि विश्राम के दौरान यहां जो कुछ भी भोजन किया था वही भोजन आज भी श्रद्धालु करते हैं.











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