लोकहित के लिए करनी पड़ती है तपस्या : आचार्य रणधीर ओझा

शास्त्र हमें एक सूत्र देता है की जो तप करेगा वही उत्पत्ति पालन और संहार करने में समर्थ हो जाएगा. यही नहीं तप मे इतनी शक्ति सामर्थ होती है कि तप से किसी को भी कुछ अगम नहीं रह जाता है. तप से अप्राप्य, असाध्य, अलम्य इस संसार में कुछ भी नहीं है.





- नगर के सती घाट के समीप आयोजित राम कथा के दौरान बोले कथा व्यास
- कहा - तपस्या में होती है और असाधारण क्षमता दुर्लभ भी बनता है सुलभ

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : तपस्या चमत्कार के लिए नहीं होती. तप का उद्देश्य सत्य राम का साक्षात्कार करना होता है. तप स्वहित नहीं लोकहित के लिए होना चाहिए क्योंकि तप में असाधारण क्षमता होती है. दुर्लभ भी सुलभ बन जाता है. मानस या अन्य ग्रंथों में कई इसके प्रमाण मिलते हैं. यह कहना है आचार्य रणधीर ओझा का. वह नगर के सती घाट के समीप लाल बाबा आश्रम में आयोजित श्रीराम कथा के दौरान बोल रहे थे. 


उन्होंने बताया कि तपोबल से पार्वती जी को भगवान शंकर की प्राप्ति हो गई , मनु शतरूपा तप से शाश्वत परम ब्रह्म को पुत्र के रूप में प्राप्त कर लिया. तप के बल पर विश्वामित्र जी महाराज त्रिशंकु को जीवित कर स्वर्ग भेजने में सफल हो जाते हैं. शास्त्र हमें एक सूत्र देता है की जो तप करेगा वही उत्पत्ति पालन और संहार करने में समर्थ हो जाएगा. यही नहीं तप मे इतनी शक्ति सामर्थ होती है कि तप से किसी को भी कुछ अगम नहीं रह जाता है. तप से अप्राप्य, असाध्य, अलम्य इस संसार में कुछ भी नहीं है. 

आचार्य श्री ने आगे बताया कि मानव जीवन का परम लक्ष्य  तप होना चाहिए. श्रीरामचरितमानस में तप की महिमा का विस्तार में वर्णन किया गया है. धर्म के चार चरण होते हैं सत्य, तप, दया, दान, तप, दया, दान यानी सत्य के अनुगामी होते है. सत्य यानी राम की उपलब्धियां धर्म का सर्वश्रेष्ठ आदर्श है और इस उपलब्धि के लिए तप, दया, दान आदि को साधन बनाया गया है. तप क्या है? तप का सीधा सामान्य अर्थ होता है किसी इष्ट सिद्धि के लिए या आत्मिक शुद्धि के लिए स्वेच्छा से कष्ट का वरण. 




तप में धीरे धीरे स्थूल पदार्थों के प्रति निर्भरता कम करनी पड़ती है. जैसे भोजन जल ,वायु आदि का धीरे-धीरे परित्याग करना पड़ता है. स्थूल पदार्थों के क्रमिक त्याग से शरीर प्रभावित होता है. सृष्टि में जिन पदार्थों का निर्माण स्थूल भौतिक पदार्थों से ही संभव है माना जाता है कि तपस्वी उन्हें मानसिक संकल्प से बना लेता है. आचार्य श्री ने कहा कि मानस एवं अन्य धर्म शास्त्रों में देखा जाता है कि देवता मनुष्य और राक्षस तीनों तप करते हैं परंतु तप से प्राप्त फल का राक्षसों ने दुरुपयोग किया शक्ति संपन्न कर दूसरों को कष्ट देना ही उनका उद्देश्य रहा. रावण वही करता है. तप के बल पर सूर्य, चंद्र ,वसन, वरुण अग्नि जैसे सभी शक्तियां उसके अधीन हो गई. अंत में आचार्य श्री ने कहा कि तपस्या करने का अधिकार चारों वर्णों को है. परंतु इसके फल यानी शक्ति का दुरुपयोग नहीं बल्कि समाज राष्ट्र एवं मानवता के कल्याण के लिए करना चाहिए.

श्रीराम ने जनकपुरी के लिए किया प्रस्थान, रास्ते में अहिल्या का हुआ उद्धार :

श्रीराम कथा के आठवें दिन मामाजी के कृपापात्र आचार्य रणधीर ओझा ने अहिल्या उद्धार, नगर दर्शन और पुष्प वाटिका का वर्णन किया. उन्होंने बताया कि जब राजा जनक की पुत्री के विवाह के लिए उनका मंत्री गुरु विश्वामित्र को आमंत्रित करने के लिए आश्रम आते हैं, तब गुरु विश्वामित्र उनका आमंत्रण स्वीकार करते हुए भगवान राम और लक्ष्मण सहित जनकपुरी के लिए प्रस्थान करते हैं. 

रास्ते में गौतम ऋषि का आश्रम मिलता है जिसके सामने एक पत्थर की मूर्ति के रूप में गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या दिखाई पड़ती हैं. भगवान राम द्वारा जब इस शिला के बारे में गुरु विश्वामित्र से पूछा जाता है तो वे पूरा वृतांत बताकर कहते हैं कि जब तक वे स्वयं इस पत्थर को अपने पैरों से नहीं छूते हैं तब तक इस पत्थर के रूप में स्थापित अहिल्या का उद्धार नहीं होगा. यह सुनकर राम ने गुरु से कहा कि वे क्षत्रिय हैं और अपने पैरों से किसी नारी का अपमान नहीं कर सकते हैं, खासतौर से इस पत्थर की मूर्ति का, क्योंकि गौतम ऋषि जाति से ब्राह्मण थे और वे ब्राह्मण की पत्नी को पैरों से कभी नहीं छू सकते. 

विश्वामित्र समझाते हैं कि जब तक वे शिला को अपने पैरों की अनुभूति नहीं कराएंगे तब तक अहिल्या का उद्धार नहीं होगा. तब जाकर भगवान श्रीराम शिला के उपर पैर रखकर अहिल्या का उद्धार करते हैं. देवी अहिल्या राम से निवेदन करती हैं कि वो चाहती हैं उनके स्वामी महर्षि गौतम उन्हें क्षमा कर उन्हें पुनः अपने जीवन में स्थान दे. प्रभु राम अहिल्या से कहते हैं - "देवी आपकी इसमें लेश मात्र भी गलती ना थी और महर्षि गौतम भी अब आपसे क्रोधित नहीं हैं अपितु वो भी दुखी हैं" अहिल्या के अपने स्वरूप में आते ही कुटिया में बहार आ जाती हैं और पुनः पंछी चहचहाने लगते हैं.






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