आचार्य रणधीर ओझा ने सुनाई शिव विवाह की अनोखी कथा ..

शिव जी तपस्वी थे, उन्हें ये नहीं पता था कि विवाह के लिए किस प्रकार से तैयार हुआ जाता है.इसी के चलते उनको डाकिनियों और चुड़ैलों ने भस्म से सजा दिया और हड्डियों की माला पहना दी. ऐसी बारात को आते देख, बारात के स्वागत में खड़े सभी लोग हैरान हो गए. शिव के इस विचित्र रूप को देखकर पार्वती की मां ने अपनी बेटी का हाथ देने से मना कर दिया. 





- नया बाजार सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम में आयोजित है नौ दिवसीय राम कथा
- चौथे दिन के कथा प्रसंग में शिव विवाह का किया मनोरम वर्णन

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : सीताराम विवाह आश्रम में आयोजित नव दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन मामाजी के कृपा पात्र आचार्य श्री रणधीर ओझा ने शिव पार्वती विवाह प्रसंग के बारे में कथा सुनाई. आचार्य श्री ने बताया कि
भगवान शिव, त्रिदेवों में एक देव हैं, इन्हें देवों के देव महादेव के नाम से भी जाना जाता है. इसके अलावा इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ आदि नामों से भी जाना जाता है. शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं. कैलाश को उनके निवास स्थान के रूप में जाना जाता है. पार्वती, हिम नरेश हिमावन तथा मैनावती की पुत्री हैं. इन्हें उमा और गौरी के नाम से भी जाना जाता है. पार्वती के जन्म के समय देवर्षि नारद ने कहा था कि पार्वती का विवाह भगवान शिव से होगा, किन्तु महादेव जी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हें कठिन तपस्या करनी होगी. 

पूर्वजन्म की कथा के अनुसार पार्वती को दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के नाम से जाना जाता था. उस जन्म में भी वे भगवान शिव की ही पत्नी थीं. सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में, अपने पति का अपमान न सह पाने के कारण, स्वयं को यज्ञ में ही भस्म कर दिया था. इसके बाद उन्होंने हिमनरेश हिमावन के घर पार्वती बन कर जन्म लिया.

भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए पार्वती ने कठोर तपस्या की. इस पर सभी देवता गण भी सहमत थे कि पार्वती का विवाह शिव से हो. पार्वती की कठोर तपस्या के चलते पूरे संसार में हाहाकार मच गया, जिससे बड़े-बड़े पर्वतों की नींव डगमगाने लगी. तब भगवान शिव ने अपनी आंख खोली और पार्वती को किसी समृद्ध राजा से विवाह करने के लिए कहा, लेकिन पार्वती अपनी बात पर अड़ी रहीं। उन्होंने साफ कहा कि अगर वे शादी करेंगी तो सिर्फ शिव से ही करेंगी. पार्वती की ज़िद्द के चलते शिव को उनसे विवाह करना ही पड़ा. 

पार्वती से शादी करने से पहले भगवान शिव ने सप्तऋषियों को पार्वती के पास उनकी परीक्षा के लिए भेजा. ऋषियों ने पार्वती को समझाया कि वे किसी और से शादी कर लें और इस विवाह से उन्हें सुख की प्राप्ति नहीं होगी, पर पार्वती अपने विचारों से टस से मस नहीं हुई. इससे सप्तऋषि प्रसन्न हुए. इस बारे में उन्होंने शिव को बताया और इसके बाद शिव ने पार्वती से शादी के लिए हामी भर दी. 

भगवान शिव से दुनिया का छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा प्राणी जुड़ा हुआ है. जिस वजह से हर कोई उनकी शादी में शामिल होने आया. वैसे देवता और राक्षसों की आपस में बनती नहीं पर शिव की शादी में आपसी दुश्मनी भुलाकर राक्षस भी शामिल हुए. माना जाता है कि इनकी बारात में भूत-पिशाच, विक्षिप्त लोग, कीड़े-मकोड़े, डाकिनियां और चुड़ैलों आदि सभी तरह के लोग शामिल हुए.

शिव जी तपस्वी थे, उन्हें ये नहीं पता था कि विवाह के लिए किस प्रकार से तैयार हुआ जाता है.इसी के चलते उनको डाकिनियों और चुड़ैलों ने भस्म से सजा दिया और हड्डियों की माला पहना दी. ऐसी बारात को आते देख, बारात के स्वागत में खड़े सभी लोग हैरान हो गए. शिव के इस विचित्र रूप को देखकर पार्वती की मां ने अपनी बेटी का हाथ देने से मना कर दिया. इसके बाद देवताओं द्वारा भगवान शिव को दैवीय जल से नहलाया गया और रेशम के फूलों से सजाया गया. जिसके बाद उन्हें एक खूबसूरत रूप दिया गया. भगवान शिव के दिव्य रूप को देख पार्वती की मां ने उन्हें तुरंत स्वीकार कर लिया और ब्रह्मा जी की उपस्थिति में विवाह समारोह शुरु हुआ.

एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में डमरु लिए भगवान शिव का विवाह पार्वती से हुआ. इसके बाद भगवान शिव माता पार्वती को अपने साथ कैलाश पर्वत पर ले गए.

















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