वीडियो : सब्जी विक्रेता की बेटी बनी जिला टॉपर, इंटर कला में राज्य में पाया चौथा स्थान ..

बताया कि उसकी इस सफलता में उसके माता-पिता व गुरु रह चुके आशुतोष सर और बिहारी सर का खासा योगदान है. उनकी प्रेरणा से ही वह इस लक्ष्य को भेदने में सफल रही. उसने बताया कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह जॉब कर पैसे कमाएगी और उससे आगे की पढ़ाई भी जारी रखेगी. 





लक्ष्मी का घर

- जिले के नदांव ग़ांव की निवासी है लक्ष्मी कुमारी
- सिविल सर्विस है सपना, परीक्षा में रहा 93.2 फीसद प्राप्तांक

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : कहते हैं कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज़ नहीं होती. जरूरत केवल उचित अवसर मिलने की होती है. जिसके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व उभर कर पूरी दुनिया के सामने आ जाती है. कुछ ऐसा ही कर दिखाता है बक्सर की एक विद्यार्थी ने जिन्होंने इंटरमीडिएट कला संकाय की परीक्षा में जिले में प्रथम और राज्य में चौथा स्थान पा कर अपना, अपने परिजनों और जिले वासियों के सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है. उसने इस परीक्षा में 93.2 फीसद अंक प्राप्त किए हैं. 

जिले के सदर प्रखंड के नदांव गांव निवासी सब्जी विक्रेता रामपूजन सिंह तथा गृहणी शांति देवी की बेटी लक्ष्मी में यह गौरव प्राप्त किया है. खास बात यह है कि यह सफलता लक्ष्मी ने काफी मुश्किल परिस्थितियों का सामना करते हुए पाई है. 

सिविल सर्विस में जाने का सपना लेकर आगे की पढ़ाई करने की बात कहने वाली लक्ष्मी ने बताया कि उसकी इस सफलता में उसके माता-पिता व गुरु रह चुके आशुतोष सर और बिहारी सर का खासा योगदान है. उनकी प्रेरणा से ही वह इस लक्ष्य को भेदने में सफल रही. उसने बताया कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह जॉब कर पैसे कमाएगी और उससे आगे की पढ़ाई भी जारी रखेगी. 
बिहारी सर


जितना भी पढ़ा मन से पढ़ा, सफलता के लिए घंटों की पढ़ाई का कोई मतलब नहीं :

लक्ष्मी कुमारी ने बताया कि उसने कई घंटों की पढ़ाई नहीं की है उसने जब भी पढ़ाई की पूरे मनोयोग से की है. ऐसे में उन्होंने सभी विद्यार्थियों को यह संदेश दिया कि जब भी वह पढ़ाई करें तो पूरे मनोयोग से करें. भले ही वह एक घंटे की पढ़ाई करें लेकिन यदि वह पूरे मनोयोग से पढ़ते हैं तो पाठ उन्हें जल्दी याद हो जाएगा और कभी भूलेगा भी नहीं.
लक्ष्मी के पिता


बेटों के साथ बेटी को भी अच्छी तालीम :

रामपूजन सिंह कुशवाहा बताते हैं कि वह बक्सर बाज़ार में सब्जी बेचते हैं. उसी से होने वाली आमदनी से वह परिवार का गुजर बसर करते हैं. वह अपने दो बेटों व एक बेटी समेत तीन संतानों को पढ़ाने में कोई भेदभाव नहीं करते. हालांकि, उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने बेटी के शिक्षकों से अपनी खराब आर्थिक स्थिति का हवाला दिया तो उन्होंने निःशुल्क शिक्षा भी दी. शिवपूजन सिंह कहते हैं कि उनका लक्ष्य तो बेटी को बड़ा अधिकारी बनाने का था लेकिन देखने वाली बात होगी कि वह इस कमजोर आर्थिक स्थिति से कहां तक अपने सपने को पूरा कर पाने में सफल हो पाते हैं?

वीडियो : 


















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