न्यायाधीश ने किया बाबा साहब को नमन, शिक्षित बन अधिकारों को पहचानने का दिया संदेश ..

स्कूल में पढ़ाई में काबिल होने के बावजूद उनसे अछूत की तरह व्यवहार किया जाता था. उस दौर में छुआछूत जैसी समस्याएं व्याप्त होने के कारण उनकी शुरुआती शिक्षा में काफी परेशानी आई, लेकिन उन्होंने जात पात की जंजीरों को तोड़ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया और स्कूली शिक्षा पूरी की. 

 






- विधिक सेवा प्राधिकार कार्यालय में आयोजित हुआ था कार्यक्रम
- व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर की गई चर्चा


बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार, पटना के निर्देशानुसार डॉ भीमराव अंबेडकर की 132 वीं जयंती व्यवहार न्यायालय के जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यालय में ज़िला एव सत्र न्यायधीश सह अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अंजनी कुमार सिंह की अध्यक्षता में मनाई गई. अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि बाबा साहब ने जिस प्रकार से शिक्षित बन अपने अधिकारों को पहचानने का संदेश दिया है. हर व्यक्ति को उसे अपने जीवन में उतारना चाहिए.


मौके पर अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश सह सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, बक्सर धर्मेंद्र कुमार तिवारी ने उपस्थित पैनल अधिवक्ताओं, पारा विधिक स्वयंसेवक एवं व्यवहार न्यायालय, बक्सर के न्यायिक कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा कि आज हम सभी यहां उपस्थित होकर डॉ भीमराव अंबेडकर की 132 वीं जयंती मना रहे है. जिन्हें हम बाबा साहब के नाम से भी जानते हैं. हमारे संविधान के निर्माता, दलितों के मसीहा और मानवाधिकार आंदोलन के प्रणेता हैं. जयंती पर उनके जनकल्याण के लिए किए गए अभूतपूर्व योगदान को याद किया जाता है. बाबा साहब निचले तबके से ताल्लुक रखते थे. बचपन से ही समाजिक भेदभाव का शिकार हुए. यही वजह थी कि समाज सुधारक बाबा भीमराव अंबेडकर ने जीवन भर कमजोर लोगों के अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष किया. महिलाओं को सशक्त बनाया. 14 अप्रैल 1981 को मध्यप्रदेश के महू में रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई ने अपनी सबसे छोटी संतान को जन्म दिया, जिसका नाम था भिवा रामजी अंबेडकर बाबा साहब के नाम से पहचाने जाने वाले आंबेडकर अपने 14 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. डॉ. अंबेडकर अछूत माने जानी वाली जाती महार के थे. ऐसे में वह बचपन से उन्हें भेदभाव और समाजिक दुराव से गुजरना पड़ा.  

बालपन से ही बाबासाहब मेधावी छात्र थे. स्कूल में पढ़ाई में काबिल होने के बावजूद उनसे अछूत की तरह व्यवहार किया जाता था. उस दौर में छुआछूत जैसी समस्याएं व्याप्त होने के कारण उनकी शुरुआती शिक्षा में काफी परेशानी आई, लेकिन उन्होंने जात पात की जंजीरों को तोड़ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया और स्कूली शिक्षा पूरी की. 

वर्ष 1913 में बाबा अंबेडकर ने अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी से लॉ, इकोनॉमिक्स और पॉलिटिकल साइंस में डिग्री प्राप्त की. उन्होंने भारत में लेबर पार्टी का गठन किया, आजादी के बाद कानून मंत्री बने. दो बार राज्यसभा के लिए सांसद चुने गए बाबा साहेब संविधान समिति के अध्यक्ष रहे. समाज में समानता की अलख जलाने वाले अंबेडकर को 1990 में भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कमजोर और पिछड़ा वर्ग को समान अधिकार दिलाने, जाति व्यवस्था का कड़ा विरोध कर समाज में सुधार लाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. यही वजह है कि बाबा साहब की जयंती को भारत में जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न जैसी सामाजिक बुराइयों से लड़ने, समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने जाति व्यवस्था का कड़ा विरोध कर समाज में सुधार लाने का काम किया है.

मौके पर कार्यालय कर्मी सुमित कुमार, दीपेश कुमार, मनोज कुमार, सुनील कुमार सहित पैनल अधिवक्ता  चन्द्रकला वर्मा, कुमारी अरुणिमा, अशोक कुमार पाठक, कुमार मानवेंद्र, राजेश कुमार, अशोक कुमार सिन्हा, आरती राय, मधु कुमारी, कुमारी रिंकी एवं अन्य विधिक सेवक मदन प्रजापति, कविंद्र नाथ पाठक , गजेंद्र नाथ दूबे, शत्रुघ्न, अविनाश, हरे राम आदि उपस्थित रहे.















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