संतों का क्रोध बोध उत्पन्न करने वाला और शाप भी परम अनुग्रह : आचार्य भारतभूषण

कहा कि गौतम जी ने शाप के ब्याज से महान् वरदान दिया था जिसके फलस्वरूप भगवान श्रीराम के दर्शन हुए और जिस सुख का भगवान शिव अनुभव करते हैं उसका अनुभव मुझे हुआ. संतों का क्रोध भी बोध उत्पन्न करने वाला और उनका शाप भी परम अनुग्रह होता है. 






- नौ दिवसीय श्रीराम कथा के छठे दिन आचार्य ने बताया विवाह का महत्व
- विवाह के बाद चंद्रमुखी स्त्री पाकर जीवन के विष को अमृत में बदल लेता है पुरुष

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : श्रावण पुरुषोत्तम मास के अवसर पर रामरेखा घाट स्थित रामेश्वर नाथ मंदिर में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के आज छठे दिन प्रवचन करते हुए प्रख्यात भागवत-वक्ता आचार्य डॉ भारतभूषण जी महाराज ने कहा कि महर्षि विश्वामित्र ने अपने यज्ञ की सिद्धि के बाद भगवान श्रीराम के द्वारा गौतम महर्षि की पत्नी तपस्विनी अहल्या का उद्धार कराया तथा राजर्षि जनक के धनुष यज्ञ को सम्पन्न कराया. महात्मा परोपकारी होते हैं. अहल्या जी भगवान का दर्शन कर कृतार्थ हो गईं. उन्होंने कहा कि गौतम जी ने शाप के ब्याज से महान् वरदान दिया था जिसके फलस्वरूप भगवान श्रीराम के दर्शन हुए और जिस सुख का भगवान शिव अनुभव करते हैं उसका अनुभव मुझे हुआ. संतों का क्रोध भी बोध उत्पन्न करने वाला और उनका शाप भी परम अनुग्रह होता है. 

आचार्य ने कहा कि आदि शक्ति जगदंबा जो जगत् को उत्पन्न करने वाली है वही जानकी अथवा सीता के रूप में राजर्षि जनक जी की पुत्री के रूप में प्रकट हुई हैं. विवाह लीला के द्वारा भगवान ने संस्कारों की पवित्रता और वंश की कुलीनता का संदेश दिया है।पुरुष अपने जीवन के विष को चंद्रमुखी - स्त्री को प्राप्त कर अमृत में बदल लेता है यही विवाह का विज्ञान है. समस्त कर्मकांडों और धर्मशास्त्रों का पालन विवाह के बाद ही करने का अधिकार मिलता है. भगवान श्रीराम विधिपूर्वक मंडप अर्थात् ब्रह्म विवाह करते हैं. विवाह शास्त्रोक्त वैदिक विधि से ही परंपरानुसार होना चाहिए अन्यथा वंश परम्परा व्यर्थ हो जाती है और पितर स्वर्गादि लोकों से च्युत हो जाते हैं. 

कथा के आरंभ में आचार्य श्रीकृष्णानन्द शास्त्री "पौराणिक जी" महाराज ने व्यासपीठ का पूजन किया और कथा - वक्ता आचार्य डॉ भारतभूषण जी महाराज को सम्मानित किया. इस अवसर पर श्री शास्त्री जी ने कहा कि श्रीराम चरित मानस के मुख्य देवता विश्वास एवं देवी श्रद्धा हैं. इन दोनों का आश्रय लेने वाला परम विश्राम को प्राप्त करता है और मानव जीवन का चरम लक्ष्य भी विश्राम की प्राप्ति ही है. इसके पूर्व आचार्य रणधीर ओझा तथा मुख्य यजमान कमलेश्वर तिवारी ने मंदिर के समस्त देवताओं और व्यासपीठ का पूजन किया. स्वागत रामस्वरूप अग्रवाल तथा उपेन्द्र दूबे ने और संचालन ब्रजकिशोर पांडेय ने किया.









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