मानवता की शिक्षा देने के लिए होता है प्रभु का अवतार ..

सनातन मानवता के विनाश को देखकर देव ऋषि धारा के अंतर ध्यान से जागृत होकर भगवान श्री कृष्णा मानव बन कर संपूर्ण सृष्टि के जीवो की रक्षा एवं सनातन धर्म की  प्रतिस्थापन कर सभी दानवों का उद्धार, साधु संतों का सम्मान करते हुए मानव धर्म अर्थात सनातन धर्म का मनुष्य समाज में उत्कृष्ट प्रशिक्षण देकर अवतारवाद को पूर्ण करते हैं.





- प्रवचन कल्याण सेवा समिति के द्वारा आयोजित है श्रीमद् भागवत कथा
- कृष्णानंद शास्त्री पौराणिक जी महाराज हैं कथावाचक

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : भगवान का इस धरा पर अवतार राक्षस वध एवं साधु का परित्राण मात्र नहीं है. यह सर्वाधिक आसान एवं लघु कार्य तो नारायण बैकुंठ में बैठे-बैठे अपने संकल्प मात्र से ही कर सकते हैं. श्री सुखदेव जी ने कहा राजन परीक्षित, प्रभु के अवतार मनुष्य को मानवता की शिक्षा देने के लिए होता है. यह कहना है कथावाचक कृष्णानंद शास्त्री पौराणिक जी महाराज का. वह सर्वजन कल्याण सेवा समिति के द्वारा 15 वें धर्मायोजन के तहत चतुर्थी दिवस रामेश्वर नाथ मंदिर परिसर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दौरान बोल रहे रहे थे. उन्होंने बताया कि मानव समाज को यह बताने के लिए ही प्रभु स्वयं मानव बनते हैं और यह बताते हैं कि पुत्र का, पिता का, शिष्य का, पति का, राजा का इत्यादि जितने मानवीय संबंध एवं व्यवहार हैं उनका आचरण, व्यवहार, विचार एवं कर्तव्य तथा मानव का धर्म क्या है. मनुष्य को संसार में कैसे रहना चाहिए." 
                           
भगवान के अवतार का कारण है कि जब-जब इस वसुंधरा पर मानवता विनष्ट होकर भयंकर दानवता का रूप धारण कर लेती है और मानवता का दमन करने लगती है तब मानवता की घनी भूत मूर्ति (जिन्हें हम साधु एवं संत कहते हैं )महात्माओं की पुकार सुनकर प्रभु अपने बैकुंठ लोक से इस पृथ्वी पर आते हैं अर्थात उतरते हैं इस उतरने की विधि को ही अवतार कहा जाता है. 


भगवान का अवतार तीन  कार्यों को मुख्यतः संपादित करता है- प्रथम मानव समाज को संपूर्णता के साथ मानवता एवं मानव धर्म की शिक्षा. द्वितीय जो मानव है, साधु, संत, महापुरुष इत्यादि है इन सभी का हित एवं रक्षा. तीसरा कार्य है - राक्षसों, दानव, दैत्य तथा अमानवीय कृत करने वालों का उद्धार. ईश्वर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह किसी को भी मारते नहीं अपितु तारते हैं. जैसे पारस पत्थर किसी भी परिस्थिति में लोहा को सोना बनाता है ठीक वैसे ही भगवान राक्षसों को किसी भी प्रकार का संबंध होते हुए भी उसका उद्धार कर देते हैं. 

अवतार की व्युत्पत्ति अवतार अर्थात रक्षा करना एवं तारना ही है. आज से तकरीबन 5250 वर्ष पहले इस धरा धाम पर मानव समाज से बहुतायत रूप में मानवता समाप्त हो गई थी तथा दानवता प्रतिस्थापित होकर अल्पसंख्या में बची मानवता का विनाश कर सनातन धर्म को नष्ट करने लगी थी. इस कालखंड के धर्मनिरपेक्ष शासको कंस, जरासंध, शिशुपाल,  दुर्योधन, शकुनी इत्यादि के द्वारा साधु-संत महात्मा एवं मानवता अर्थात सनातन धर्म को विनष्ट करने के विविध उपाय एवं नीतियां अपनाई जाने लगी. सनातन मानवता के विनाश को देखकर देव ऋषि धारा के अंतर ध्यान से जागृत होकर भगवान श्री कृष्णा मानव बन कर संपूर्ण सृष्टि के जीवो की रक्षा एवं सनातन धर्म की  प्रतिस्थापन कर सभी दानवों का उद्धार, साधु संतों का सम्मान करते हुए मानव धर्म अर्थात सनातन धर्म का मनुष्य समाज में उत्कृष्ट प्रशिक्षण देकर अवतारवाद को पूर्ण करते हैं. यही हमारे भगवान का उदार चरित्र  विश्व पूजा एवं जगत वंदन योग्य बनाता है. श्री कृष्ण जन्म का यही महत्व है. इस तरह से व्यास श्री शास्त्री जी ने श्री कृष्ण जन्म की कथा का वाचन कर सभी को भगवत भक्ति से ओत-प्रोत कर श्रोता गुण को आनंदित किए.











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