विजयादशमी महोत्सव : राम ने चढ़ाई धनुष पर प्रत्यंचा, संपन्न हुआ सीता स्वयंवर ..

दिखाया गया कि राजा जनक भोलेनाथ से धनुष लेकर महलों में आते हैं, और नित्य दिन उसकी पूजा करते हैं. एक दिन राजा जनक किसी कार्य वश महलों से बाहर होते हैं, उस दिन महारानी धनुष की पूजा करना भूल जाती है. यह देखकर सीता जी अपने एक हाथ से धनुष को उठाकर वहाँ गोबर का चौका लगाती है और उसका पूजन कर देती है. 

 






- विजयादशमी महोत्सव का सातवां दिन
- "सीता स्वयंवर, धनुष यज्ञ हुआ मंचन"

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : राम लीला समिति के तत्वावधान में नगर के रामलीला मंच पर चल रहे 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के क्रम में वृंदावन से पधारे श्री नंद नंदन रासलीला एवं रामलीला मंडल के स्वामी श्री करतार बृजवासी के निर्देशन में शुक्रवार को देर रात्रि मंचित रामलीला कार्यक्रम के अन्तर्गत सातवें दिन धनुष यज्ञ नामक प्रसंग का विधिवत मंचन किया गया. जिसमें धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के बाद सीता स्वयंवर संपन्न हुआ. 

लीला में दिखाया गया कि राजा जनक भोलेनाथ से धनुष लेकर महलों में आते हैं, और नित्य दिन उसकी पूजा करते हैं. एक दिन राजा जनक किसी कार्य वश महलों से बाहर होते हैं, उस दिन महारानी धनुष की पूजा करना भूल जाती है. यह देखकर सीता जी अपने एक हाथ से धनुष को उठाकर वहाँ गोबर का चौका लगाती है और उसका पूजन कर देती है. जब यह बात राजा जनक ने सुना कि जानकी अपने एक हाथ से धनुष को उठा कर उसका पूजन किया है, तो उसी समय स्वयंवर की घोषणा करवा देते हैं. कि जो राजा इस धनुष का खंडन करेगा उसी से मेरी किशोरी का विवाह होगा. इस प्रकार राजा जनक धनुष यज्ञ की तैयारी करते हैं. 

सभा में विश्वामित्र सहित श्रीराम और लक्ष्मण भी आते हैं. जनक जी उनको उच्च आसान पर बिठाते दिखाते हैं. सभागार देश- देशांतर से आए हुए राजाओं से भर जाता है. तभी बाणासुशर व रावण का कटू संवाद होने लगता है. और दोनों सभागार से बाहर चले जाते हैं. तब धनुष यज्ञ की घोषणा होती है. एक-एक कर सभी राजा धनुष उठाने का प्रयास करते हैं और असफल हो जाते हैं. सभी राजाओं को धनुष उठाने में विफल होते देख जनक जी को क्रोध आता है उन्होंने सभागार के सभी राजाओं पर क्रोध करते हुए पृथ्वी को वीरों से खाली बता दिया. राजा जनक के इस प्रकार कहने से लक्ष्मण जी को गुस्सा आ जाता है, वह सभागार में खड़े होकर जनक जी के ऐसे वचन बोलने का विरोध करते हैं. तब गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पाकर श्रीराम खड़े होते हैं और धनुष का खंडन करते हैं. धनुष के खंडन होने पर जानकी जी श्रीराम के गले में वरमाला पहनाती है. यह देखकर देवतागण पुष्प की वर्षा करते हैं. उक्त लीला का दर्शन कर रहे दर्शक जय सियाराम का उद्घोष करते हैं. 

लीला मंचन के दौरान आयोजन समिति के बैकुण्ठ नाथ शर्मा, सहित अन्य पदाधिकारी मौजूद थे.







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