आचार्य जी ने राम जी का राज्यरोहण कराया और बधाई गीत गाई तो श्रोता झूम उठे, फिर अवध और ब्रिज की होली ने पूरे वातावरण को ऐसा बना दिया कि मानो होली महोत्सव मनाया जा रहा हो. आचार्य गुप्तेश्वर जी महाराज की पिछले 8 दिनों से लगातार चल रही कथा ने पूरे बक्सर शहर को राम रस में भिंगो दिया.
- श्री लाल बाबा आश्रम सतीघाट पर आयोजित थी भगवान श्री राम कथा
- आश्रम के महंत ने बताया सोमवार को भंडारे का साथ होगा आयोजन का समापन
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : महंत सुरेंद्र जी महाराज के सानिध्य में बक्सर की पावन धरती पर लाल बाबा आश्रम सतीघाट पर जगतगुरु रामानुजाचार्य गुप्तेश्वर जी महाराज के श्री मुख से चल रही राम कथा का विश्राम राम के राज्याभिषेक के हो गया. विश्राम दिवस के दिन भरत चरित्र की कथा इतनी भावपूर्ण रही कि सारे श्रोता अधिकांश समय आंसू भरी आंखों से कथा का श्रवण करते रहे. जब तक भरत चरित्र का प्रसंग चलता रहा श्रोता भावपूर्ण श्रद्धा में आंखे नम कर बैठे रहे.
महाराज जी ने बताया कि भरत जी शत्रुघ्न के साथ जब राजा दशरथ के स्वर्गवास के बाद लौटे तो पिता की मृत्यु और अपने प्यारे अग्रज राम के वनवास के पीछे अपनी मां कैकई को कारण जानकर उनका हृदय शोक से भर गया. अपनी मां को पापनी तक कह डाला और गुरु वशिष्ठ, कौशल्या, मंत्री सुमंत और सारी प्रजा के द्वारा राज्य सिंहासन पर बैठने के आग्रह को विनम्रता पूर्वक अस्वीकार कर राम जी को मनाने चल पड़े.
अयोध्या वासियों ने उनकी जयजयकार की और गुरु वशिष्ठ तथा तीनों माताओं सहित पूरे अयोध्यावासी उनके पीछे-पीछे हो लिए तो देवताओं में हाहाकार मच गई. अगर भगवान राम प्रेमवश भरत के आग्रह पर पुनः अयोध्या लौट गए तो राक्षसों का वध कैसे होगा और देवताओं का कल्याण कैसे होगा. देवताओं के आग्रह पर सरस्वती भगवती ने मंथरा की बुद्धि पलट दी. मंथरा ने कैकई को तर्क से प्रभावित कर कैकई से राम के लिए वनवास मांगा था तो देवता हर्षित हुए थे. अब फिर दुखी हैं और सरस्वती से भरत की मति पलटने का आग्रह कर रहे हैं तो सरस्वती ने उन्हें झटक दिया. भरत राम का चित्रकूट में मिलन की संगीतमय में प्रस्तुति श्रोताओं के हृदय को झकझोर देने वाली थी.
आचार्य जी ने बताया कि राम अपने पिता की आज्ञा मानकर वन जा रहे हैं. श्री राम का धर्म सामान्य धर्म है. वह मर्यादा पुरुषोत्तम है और अपने आचरण से लोगों को मर्यादा का संदेश दे रहे हैं. लोक धर्म के पालन से परलोक में सुख मिलता है, लेकिन लक्ष्मण जी जिस धर्म का पालन कर रहे हैं वह राम के धर्म से बड़ा है. लक्ष्मण का धर्म विशेष धर्म है, वह कहते हैं भैया आपका धर्म है पिता के धर्म का पालन करना लेकिन मेरा धर्म सिर्फ आपकी सेवा करना है. मैं किसी माता-पिता को जानता नहीं - मोरे सवहिं एक तुम स्वामी. लेकिन भारत का धर्म लक्ष्मण जी के धर्म से बड़ा है और वह है- विशेषतर धर्म. निस्वार्थ भाव से अपने प्रियतम से सुख की कामना करना - "तत्सुखे सुखिनः"
भरत जी का भाव गोपी भाव है, वस्तुतः गोपी भाव के प्रथम आचार्य श्री भरत जी हैं इसलिए राम जी के मन की बात समझ कर उन्होंने राम जी को अयोध्या लौटने के लिए विवश नहीं किया और अपनी पादुका लेकर वापस लौट आए, श्री राम के वापस लौटने तक एक तपस्वी का जीवन व्यतीत करते हुए पादुका से आदेश लेकर राज्य का संचालन किया. प्रेम का ऐसा उदाहरण विश्व में दुर्लभ है. भरत की महिमा को शारदा शेष महेश भी नहीं गा सकते. यहां तक की स्वयं राम भी नहीं- "जानहिं राम न सकहिं बखानी. "
आगे की राम कथा को संक्षेप में बताते हुए आचार्य जी ने राम जी का राज्यरोहण कराया और बधाई गीत गाई तो श्रोता झूम उठे, फिर अवध और ब्रिज की होली ने पूरे वातावरण को ऐसा बना दिया कि मानो होली महोत्सव मनाया जा रहा हो. आचार्य गुप्तेश्वर जी महाराज की पिछले 8 दिनों से लगातार चल रही कथा ने पूरे बक्सर शहर को राम रस में भिंगो दिया. श्रोताओं की भीड़ निरंतर बढ़ती रही और कथा स्थल छोटा पड़ गया. हरि कीर्तन के साथ ही सोमवार को भव्य भंडारे का आयोजन कर आयोजन की पूर्णाहुति होगी.
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