आचार्य ने कथा में कराया श्री राम चरित्र का दर्शन ..

विवाह के बाद 12 वर्ष तक श्री राम अवध में रहे. 27 वर्ष में वनवास हुआ. श्री राम का यह वनवास विश्व वनवास सिद्ध हुआ. श्री राम की पितृ भक्ति, मातृ भक्ति एवं धर्म धारण का अद्भुत काम सृष्टि का उदाहरण बना. राज्य से निष्कासन तथा वनवासी जीवन की स्वीकार्यता ने श्री राम को महामानव बना दिया. 




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- नव दिवसीय श्री राम कथा का लक्ष्मी नारायण महायज्ञ का छठा दिन
- सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम के द्वारा आयोजित कार्यक्रम

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम के द्वारा आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ सह नव दिवसीय श्री राम कथा के छठे दिन आचार्य कृष्णानन्द शास्त्री "पौराणिक जी" महाराज ने कहा कि, "श्री राम कथा में सिद्धाश्रम धाम बक्सर की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका है. उस समय श्रीराम की उम्र 15 वर्ष की थी जब महर्षि विश्वामित्र उन्हें बक्सर ले आए थे. महर्षि ने श्रीराम को बला-अतिबला यह दो विद्याएं प्रदान कर ताड़का का वध कराया. श्री राम ने मारीच को समुद्र पार भेज दिया. सुबाहु का वध किया. अन्य राक्षसों को पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण से ऊपर आकाश में भेज दिया. 

विश्वामित्र का पितृ यज्ञ आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी से चतुर्दशी तक पूर्ण कर दिया. यह बक्सर श्रीराम की शिक्षा स्थली तो नहीं है कर्म भूमि अवश्य है. महर्षि विश्वामित्र ने श्री राम को सरयू तट पर विद्या प्रदान किया था. श्रीराम ने सर्वप्रथम अलौकिक मानव का कर्म बक्सर में किया. एक बाण से तड़का वध एक ही बाण से सुबाहु का शमन तथा एक ही बाण से मारीच का सात योजन समुद्र पार प्रक्षेपण.
 
उस कालखंड का अपूर्व शौर्य था. जनकपुर प्रस्थान के मार्ग में ऋषि पत्नी जो प्रस्तर शीला के रूप में पड़ी थी, उनको चरण राज से उद्धार कर ऋषि लोक में भेज देने की घटना ने श्रीराम को तीनों लोकों में अन्यतम बना दिया. जनक के दरबार में विश्व के समस्त राजा-महाराजा, देव-दनुज   और राक्षस धनुष से पराजित हो गए. जहां विश्व की समस्त शक्तियां धनुष को हिला ना सकी वहीं सबके देखते देखते कमल नल के समान बिना परिश्रम के श्री रामचंद्र दो खंडो में विभक्त करके विश्व विजेता बन गए. 

शिव धनुष  का खंडन करने के बाद उस कालखंड के अद्वितीय वीर परशुराम जी से श्री विष्णु धनुष को दंड धनुष प्राप्त करके समस्त वीरों को पराभूत कर दिया. यह श्रीराम का अतुलित बल और अतुलित प्रभुता जगत विख्यात बनाकर सबका सिरमौर बना दिया. 

प्रभु श्री राम अब श्री सीताराम बन गए. विवाह के बाद 12 वर्ष तक श्री राम अवध में रहे. 27 वर्ष में वनवास हुआ. श्री राम का यह वनवास विश्व वनवास सिद्ध हुआ. श्री राम की पितृ भक्ति, मातृ भक्ति एवं धर्म धारण का अद्भुत काम सृष्टि का उदाहरण बना. राज्य से निष्कासन तथा वनवासी जीवन की स्वीकार्यता ने श्री राम को महामानव बना दिया. देव दुर्लभ राजश्री का पितृ सेवा रूप धर्म पालन हेतु त्याग ने श्रीराम को जन मन में निवास दे दिया. श्री राम ने संसार के मानव मात्र को ही नहीं अपितु समस्त चेतन बुद्धि युक्त प्राणियों को यह शिक्षा दी कि पुत्र का परम कर्तव्य है माता-पिता की आज्ञा का पालन करना. काम ,अर्थ एवं मोक्ष का भी परित्याग करना पड़े तो उसे त्याग कर देना चाहिए किंतु पिता  रूप धर्म का पालन अवश्य करना चाहिए. 

श्री राम का 14 वर्ष का वनवासी जीवन एवं उनके आचरण विकटतम परिस्थितियों में भी सनातन धर्म एवं सनातनियों का संरक्षण आदि आदि ने उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम तथा भगवान श्री राम बनाया. यही है श्री राम का जीवन जिसने कभी भी धर्म का त्याग नहीं किया. राम: विग्रहवां धर्म:. श्री राम का शरीर विग्रहमान धर्म है. सनातन धर्म को ही सीताराम कहा जाता है."






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