शिवजी का वाहन बैल, पार्वती जी का वाहन सिंह, गणेश जी का चूहा, कार्तिकेय जी का मोर, शिव जी के गले में सर्प यह सभी जन्मजात एक दूसरे के घोर शत्रु हैं. फिर भी आज तक शिव परिवार में कोई विभाजन नहीं हुआ. ठीक इसके विपरीत आज मानव समाज में सभी के घर में रामचरित कथा है. सभी पूजा-पाठ पूजा करते हैं, किंतु अन्य बात तो छोड़ो अब तो बाप बेटा भी अलग-अलग रहने लगे हैं. कहां तक कहा जाए पति-पत्नी भी अब फैमिली कोर्ट में अपनी-अपनी पैरवी करने में प्रतिष्ठा समझने लगे हैं.
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- नवदिवसीय कथा के तृतीय दिवस आचार्य ने श्री राम बताया पहले श्री शिव कथा का रहस्य
- सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम के द्वारा आयोजित है कार्यक्रम
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : सर्वजन कल्याण सेवा समिति सिद्धाश्रम धाम, बक्सर द्वारा आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ सह नवदिवसीय श्री राम कथा के तृतीय दिवस के आचार्य कृष्णानन्द शास्त्री पौराणिक जी महाराज ने कहा कि "रामायण में श्री राम कथा के पूर्व ही शिव-पार्वती की कथा आती है. यह कथा हमें तमाम असमानताओं के बावजूद परिवार को एक साथ लेकर चलने की सीख देती है. भारद्वाज जी ने श्रीराम की कथा पूछी थी लेकिन याज्ञवल्क्य जी श्री राम कथा न कहते हुए शिव कथा सुना दी. भारद्वाज जी अत्यंत श्रद्धा भक्ति से कथा श्रवण किया. यज्ञवल्क जी ने भारद्वाज जी से पूछा कहो कथा कैसी लगी ऋषि ने कहा प्रभु मैं कृति-कृति हो गया. उनकी श्रद्धा भक्ति से प्रसन्न होकर ऋषि ने कहा- हे मुनि विश्वनाथ के श्री चरणों में जिसकी प्रीति होती है वही श्री राम का सच्चा भक्त है.
मानस ने शिव भक्तों एवं श्री राम के भक्तों का जो दिव्य दर्शन प्रस्तुत किया है वह अन्यत्र दुर्लभ है. श्री राम चरित्र के पूर्व श्री शिवचरित्र के आख्यान का वस्तुतः क्या औचित्य है? यही रहस्य समाज को बताने हेतु विस्तार रहित शिवचरित्र का आख्यान किया गया है.. यदि मनुष्य शिव रहस्य को समझ जाए तो एक दिव्य भक्ति का संचार समाज में हो जाता है. संपूर्ण मानव समाज में सद्भावना की महती स्थापना हो जाती है. सत्यम शिवम सुंदरम से देश परिपूर्ण हो सकता है. आज प्रत्येक परिवार विभक्त हो गया है घर से लेकर गांव तक, गांव से जवार तक, जवार से प्रखंड तक, प्रखंड से जिला तक, जिला से राज्य तक तथा राज्य से देश और देश से विदेश तक पृथक हो रहे हैं. आज समाज हम दो हमारे दो कि कुछ तय विचारधारा में तेजी से प्रवाहमान होकर विनाश एवं अशांति के ग्रंथ में शीघ्रता पूर्वक गिरता जा रहा है.
शिव परिवार इससे अलग दर्शन में जीता है. वह है "वसुधैव कुटुंबकम". शिव परिवार के प्रत्येक सदस्य की प्रकृति और रहन-सहन में व्यापक असमानता है फिर भी यह परिवार संपूर्ण शांति एवं सुख-पूर्वक एक ही साथ रहता है. शिव जी के पांच मुख, 10 हाथ, कार्तिकेय जी को छह मुख, गणेश जी का मुख हाथी का, पार्वती जी को एक मुख्य तीन नेत्र इन चार सदस्यों के रूप-रंग, स्वभाव, खान-पान सब कुछ में एकता का सर्वथा अभाव है. शिवजी का वाहन बैल, पार्वती जी का वाहन सिंह, गणेश जी का चूहा, कार्तिकेय जी का मोर, शिव जी के गले में सर्प यह सभी जन्मजात एक दूसरे के घोर शत्रु हैं. फिर भी आज तक शिव परिवार में कोई विभाजन नहीं हुआ. ठीक इसके विपरीत आज मानव समाज में सभी के घर में रामचरित कथा है. सभी पूजा-पाठ पूजा करते हैं, किंतु अन्य बात तो छोड़ो अब तो बाप बेटा भी अलग-अलग रहने लगे हैं. कहां तक कहा जाए पति-पत्नी भी अब फैमिली कोर्ट में अपनी-अपनी पैरवी करने में प्रतिष्ठा समझने लगे हैं.
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की कथा के पूर्व श्री शिव पार्वती की कथा आने का मुख्य कारण यही है कि भगवान शिव की वंश परंपरा का अनुपालन प्रत्येक मानव के लिए अत्यावश्यक है जो शिव की तरह विषपान करके समाज को जोड़कर जीवन पर्यंत सुबह से शाम- शाम से सुबह तक वसुधैव कुटुंबकम, प्राणियों में सद्भावना और विश्व का कल्याण हो तो वही सच्चा राम भक्त है. शिव भक्ति से श्री राम भक्ति का परिचय प्राप्त होती है जो शिव को प्रिय नहीं और शिवजी जिसको प्रिय नहीं वह राम को भी प्रिय नहीं हो सकता".
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