वीडियो : अपनी पहचान खोता जा रहा एक हज़ार वर्ष पुराना किला ..

बताते हैं कि इस किले के नीचे भी एक त्रेता युगीन किला है. जिसे सुरम्य नगरी किला कहा जाता था. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक उसे राक्षसी ताड़का(तारका) के द्वारा बनाया गया था, जहां वह स्वयं निवास करती थी. 

 



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  • धुंधला होता जा रहा बक्सर किले का इतिहास
  • अज्ञात कारणों से कई बार रोक दी गई किले की खुदाई

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर : व्याघ्रसर, सिद्धाश्रम और वेदगर्भा पुरी के नाम से विख्यात रहा गंगा किनारे बसा बक्सर जिला कई मायनों में खास है. मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले भगवान श्री राम ने इस धरती से शिक्षा ग्रहण की और ताड़का-सुबाहु और रावण जैसे आतताइयों का अंत करते हुए राम राज्य की स्थापना की. इसी धरती पर सन 1539 में अफगान शासक शेरशाह ने भारत के मुगल सम्राट हुमायूं को परास्त किया और सन 1764 में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं से भारतीय राजाओं की सेनाओं की हार के बाद भारत में अंग्रेजी सत्ता की नींव मजबूत हुई थी.

इसी जिले के मुख्यालय में सन 1054 (विक्रम संवत 1111) में राजा भोज के द्वारा गंगा के किनारे बनाया गया किला बक्सर के समृद्धिशाली इतिहास की गवाही देता है. आज लगभग 1000 वर्ष का समय पूरा करने जा रहा यह किया अपने सीने में कई राज दफन किए है. राजा भोज की सत्ता जाने के बाद इस किले का जीर्णोद्धार राजा रुद्रदेव ने सन 1111 में कराया, जिसके बाद यह उनके नाम से ही इस किले की ख्याति हुई. हालांकि अब इस किले का इतिहास लगभग जमींदोज हो चुका है. यहां अब जिला अतिथि गृह बना दिया गया है और वर्ष 2024 में उसके नए विस्तारित भवन का भी निर्माण पूरा हो चुका है. ऐसे में यह किला अब केवल अतिथि गृह के नाम से ही जाना पहचाना जा रहा है.

किले के नीचे दूसरा किला :

जानकार बताते हैं कि इस किले के नीचे भी एक त्रेता युगीन किला है. जिसे सुरम्य नगरी किला कहा जाता था. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक उसे राक्षसी ताड़का(तारका) के द्वारा बनाया गया था, जहां वह स्वयं निवास करती थी. इस किले के इतिहास को जानने के लिए 1872, 1928, 1964, 1967 और 1992 में किले की खुदाई हुई लेकिन हर बार अज्ञात कारणों से खुदाई रोक दी गई. हालांकि खुदाई के दौरान कुछ प्रतिमाएं आदि प्राप्त हुई जिन्हें आज भी किले के समीप ही बनाए गए स्वर्गीय सीताराम उपाध्याय स्मृति संग्रहालय में रखा गया है.

किले से सुरंग के रास्ते तय होता था दूर तक का सफर :

इतिहास का सबसे छोटे की किले के रूप में विख्यात इस किले के चारों तरफ गढ्ढा बनाया हुआ है जिसमें हमेशा पानी भरा रहता था, जिससे कि आक्रमण के दौरान उसमें भरे पानी को पार कर कोई भी आक्रमणकारी किले तक ना पहुंच सके. इस किले के बारे में यह भी प्रसिद्ध है कि यहां कई ऐसी सुरंगें बनी हुई थी जिनके सहारे राजा एक जगह से दूसरे जगह तक आवागमन कर सकते थे. 

कुछ ही दूरी पर रानी कुआं बना हुआ है. कहा जाता है कि यहां जाने के लिए भी किले से ही एक सुरंग बनी हुई थी, लेकिन बाद में अंग्रेजी शासन काल में इन सुरंगों बंद कर दिया गया.

किले के संरक्षण की आवश्यकता :

बक्सर नगर के सोमेश्वर स्थान मोहल्ले के निवासी तथा अधिवक्ता दयासागर पांडेय बताते हैं कि यह किला जिले के समृद्ध इतिहास का परिचायक है. राजा भोज के जिले में दो किलों का निर्माण कराया. एक नया भोजपुर में और दूसरा बक्सर जिला मुख्यालय में. हालांकि कुछ लोग बक्सर के किले को राजा रुद्रदेव के द्वारा बनवाया हुआ बताते हैं लेकिन ऐसा नहीं है. प्राचीन इतिहास में भी इस बात का वर्णन है कि किसने इस किले को बनवाया था. आज आवश्यकता है कि प्रशासन किले के संरक्षण का प्रयास करे.

खुदाई से सामने आते कई राज :

सामाजिक कार्यकर्ता कंचन देवी बताती हैं कि किले में होने वाली खुदाई से कई अनछुए सामने आते क्योंकि सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर नालंदा के खंडहर तक सभी खुदाई से ही सामने आए थे. यहां भी कई बार किले की खुदाई की गई, लेकिन स्थानीय लोगों ने इसे करने नहीं दिया जिससे कि इस किले के अंदर छिपे गहरे राज अब तक बाहर नहीं आ सके हैं. इस किले को धरोहर के रूप में संरक्षित करना चाहिए और इसका उचित देखरेख भी होना चाहिए. इसी किले से सटा भैरवनाथ का मंदिर भी बदहाल स्थिति में है. किला लगातार टूट रहा है, जिससे कि इसका नामोनिशान मिटता जा रहा है.

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