बक्सर युद्ध के 260 साल : इतिहास और वर्तमान पर मंथन

उन्होंने कहा कि आज भी कथकौली गांव के किसान मजदूर परिवार उस त्रासदी की छाया में जी रहे हैं. डॉ. शेखर ने इस बात पर जोर दिया कि बक्सर के ऐतिहासिक तथ्यों को सहेजने के लिए एक विस्तृत गजेटियर की आवश्यकता है, जो बक्सर के समृद्ध अतीत को उजागर कर सके.







                                                                   





- किसानों की दुर्दशा पर वक्ताओं ने रखे विचार
- गजेटियर की आवश्यकता पर जोर

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : बक्सर युद्ध की 260 वीं वर्षगांठ के अवसर पर मंगलवार को बक्सर इतिहास संस्थान एवं क्रियेटिव हिस्ट्री के संयुक्त आयोजन में एक राष्ट्रीय परिसंवाद आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम का संयोजन श्रमजीवी पत्रकार संघ के अध्यक्ष डॉ. शंशाक शेखर ने किया. इस अवसर पर वक्ताओं ने बक्सर युद्ध के ऐतिहासिक महत्व, इसके प्रभाव, और किसानों की बर्बादी पर विस्तार से चर्चा की.

डॉ. शंशाक शेखर ने बताया कि 22 अक्टूबर 1764 का बक्सर युद्ध न केवल भारतीय इतिहास में एक निर्णायक मोड़ था, बल्कि इस युद्ध की चपेट में स्थानीय किसान भी आए, जिनका जीवन इस घटना के बाद बर्बाद हो गया. उन्होंने कहा कि आज भी कथकौली गांव के किसान मजदूर परिवार उस त्रासदी की छाया में जी रहे हैं. डॉ. शेखर ने इस बात पर जोर दिया कि बक्सर के ऐतिहासिक तथ्यों को सहेजने के लिए एक विस्तृत गजेटियर की आवश्यकता है, जो बक्सर के समृद्ध अतीत को उजागर कर सके.

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद वर्मा ने की. उन्होंने कहा कि बक्सर के ऐतिहासिक तथ्यों को संरक्षित करना आज की महत्वपूर्ण आवश्यकता है. उन्होंने इस दिशा में प्रशासनिक उदासीनता पर भी चिंता व्यक्त की और गजेटियर तैयार करने की मांग की.

अन्य वक्ताओं में डॉ. महेंद्र प्रसाद ने बक्सर के ऐतिहासिक स्थलों के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया. कवि लक्ष्मी कांत मुकुल ने बक्सर की धार्मिक गाथाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि इस क्षेत्र का धार्मिक महत्व भी कम नहीं है.

कार्यक्रम में शशिभूषण मिश्रा, निर्मल कुमार और राजा रमण पांडेय ने भी अपने विचार व्यक्त किए और बक्सर के इतिहास को संजोने की अपील की.

युद्ध के बाद भारत में अंग्रेजी शासन की नींव हो गयी थी मजबूत : 

बक्सर युद्ध 22 अक्टूबर 1764 को बक्सर के कथकौली मैदान में लड़ा गया था. इस युद्ध में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना को पराजित किया था. इस जीत के बाद अंग्रेजों ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार प्राप्त कर लिए, जिससे भारत में उनके शासन की नींव और मजबूत हो गई.

बक्सर युद्ध के परिणामस्वरूप स्थानीय किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. युद्ध के दौरान और बाद में किसानों की फसलें नष्ट हो गईं, जिससे उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. कथकौली गांव के किसान मजदूर परिवार आज भी उस समय की बर्बादी की दास्तानें सुनाते हैं.








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