कहा, "कथा जीवन की वह डिक्शनरी है, जो भटके हुए लोगों को सही मार्ग दिखाती है. कथा वही शक्ति है जो भटकने से रोकती है. जीवन में साधन और संसाधन होने के बावजूद शांति नहीं मिलती है, लेकिन शास्त्र और सत्संग से मन को स्थिरता मिलती है."
- संस्कार विहीन धन बनता है बोझ
- कथा और सत्संग जीवन को देते हैं दिशा
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : इटाढ़ी प्रखंड के गेरुआबांध में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के पहले दिन श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने जीवन में संस्कार और सत्संग की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि जिस अनुपात में धन, पद, प्रतिष्ठा और ऐश्वर्य बढ़ता है, उसी अनुपात में संस्कार, संस्कृति और सदाचार को भी बढ़ाना चाहिए..अगर ऐसा न किया जाए तो धन, पद और प्रतिष्ठा बोझ बन जाते हैं.
जीयर स्वामी जी महाराज ने बताया कि धर्म, कथा और सत्संग जीवन को सुगम बनाते हैं. वेदांग दर्शन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जिज्ञासा का होना अत्यंत आवश्यक है. यदि जिज्ञासा नहीं होगी तो व्यक्ति विभूतियों की महत्ता और गरिमा को नहीं समझ पाएगा. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सोना, मोती, पुखराज या नीलम की पहचान न हो तो व्यक्ति उन्हें बेकार समझकर फेंक सकता है. लेकिन जब उसकी कीमत समझ में आती है, तब वही चीजें मूल्यवान बन जाती हैं. इसलिए जीवन में जिज्ञासा और परिचय का बड़ा महत्व होता है.
कथा जीवन का मार्गदर्शन :
जीयर स्वामी जी ने कथा के महत्व को विस्तार से समझाते हुए कहा कि कथा मानव जीवन का मार्गदर्शक है. उन्होंने कहा, "कथा जीवन की वह डिक्शनरी है, जो भटके हुए लोगों को सही मार्ग दिखाती है. कथा वही शक्ति है जो भटकने से रोकती है. जीवन में साधन और संसाधन होने के बावजूद शांति नहीं मिलती है, लेकिन शास्त्र और सत्संग से मन को स्थिरता मिलती है."
स्वामी जी महाराज ने कहा कि जिन लोगों ने कथा, सत्संग और शास्त्रों का त्याग किया, उनके जीवन में संसाधन तो आए लेकिन शांति नहीं आई. इसलिए जीवन में कथा और धर्म की आवश्यकता अनिवार्य है.
वैदिक दर्शन – सबसे प्राचीन और सनातन :
स्वामी जी ने बताया कि यह कथा उतनी ही प्राचीन है जितनी यह सृष्टि. उन्होंने कहा, "सृष्टि 50 हजार करोड़ वर्ष पुरानी है और उसी समय से कथा का अस्तित्व है. वैदिक दर्शन संसार का सबसे पुराना दर्शन है. आज जिसे सनातन धर्म कहा जाता है, वह तब तक रहेगा जब तक यह सृष्टि है."
संस्कारहीन लोगों का इतिहास कमजोर :
स्वामी जी ने बताया कि जिन लोगों ने धर्म, संस्कृति और संस्कारों का त्याग किया, उनका इतिहास कमजोर रहा है. रावण का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, "रावण के पास धन, शक्ति और ऐश्वर्य सब कुछ था, लेकिन धर्म, सत्संग और संस्कृति की कमी थी. इसका परिणाम यह हुआ कि वह हमेशा के लिए समाप्त हो गया."
उन्होंने कहा कि व्यक्ति के पास धन, पद, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान और ऐश्वर्य हो, लेकिन संस्कार, सत्संग और कथा न हो तो जीवन अधूरा रहता है. उन्होंने कहा कि ज्ञान केवल शास्त्रों के अध्ययन से नहीं आता. कभी-कभी जीवन की कठिनाइयां, अपमान और अनुभव ही व्यक्ति के लिए सबसे बड़े गुरु साबित होते हैं.
स्वामी जी ने अंत में कहा कि जीवन में धर्म और सत्संग का मार्ग अपनाकर ही व्यक्ति सच्ची सफलता और शांति प्राप्त कर सकता है.
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