धर्महीन रावण का अंत और धर्मनिष्ठ राम की विजय : पौराणिक जी की धर्मगाथा में जीवन का सार ..

भागवत संवाद का उदाहरण देते हुए कहा, “मारकंडेय जी ने जैमिनी से कहा है कि धर्महीन मनुष्य पशु के समान होता है, जिसका कोई चरित्र नहीं होता. ऐसा व्यक्ति हिंसक जानवर की भांति होता है, जिसके पास न संस्कार होता है और न कोई सिद्धांत.









                                           





- संपत्ति, शक्ति, कीर्ति के बावजूद रावण हुआ पराजित, धर्म के बल पर श्रीराम बने विजयी

- धर्म ही है शाश्वत तत्व, बिना धर्म के मनुष्य होता है पशु समान: आचार्य कृष्णानंद शास्त्री

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : नगर में सर्वजन कल्याण सेवा समिति द्वारा आयोजित 17वें धर्मायोजन के पंचम दिवस पर आयोजित श्रीराम कथा में आचार्य कृष्णानंद शास्त्री 'पौराणिक जी' ने धर्म की महत्ता पर गूढ़ और प्रेरणादायी व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि धर्म ही वह शाश्वत और अपरिवर्तनीय तत्व है जो न केवल व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है, बल्कि संपूर्ण विश्व के कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त करता है.

उन्होंने भागवत संवाद का उदाहरण देते हुए कहा, “मारकंडेय जी ने जैमिनी से कहा है कि धर्महीन मनुष्य पशु के समान होता है, जिसका कोई चरित्र नहीं होता. ऐसा व्यक्ति हिंसक जानवर की भांति होता है, जिसके पास न संस्कार होता है और न कोई सिद्धांत.” पौराणिक जी ने स्पष्ट किया कि धर्म का पालन ही मनुष्य को देवता के समान बना देता है.

कथा के दौरान उन्होंने रावण और श्रीराम के जीवन प्रसंगों का उदाहरण देते हुए बताया कि रावण के पास ऐश्वर्य, शक्ति, विद्या, संपत्ति और कीर्ति सब कुछ था. उसके पास स्वर्ण की लंका थी, पुत्र मेघनाद, बलशाली भाई कुंभकरण, सुंदर पत्नी मंदोदरी, और विद्वान मंत्री विभीषण तक थे. उसका दरबार विश्वविजेता योद्धाओं से भरा हुआ था, लेकिन वह धर्मविहीन था. इसके विपरीत प्रभु श्रीराम एक साधारण वनवासी थे, जिनके पास न घर था, न भोजन, केवल अनुज लक्ष्मण और पत्नी सीता थीं.

पौराणिक जी ने कहा कि “रावण के पास सब कुछ था लेकिन धर्म नहीं था. राम के पास कुछ नहीं था, सिवाय धर्म के. और यही धर्म अंत में राम को विजयी बनाता है. यह प्रमाण है कि धर्म का बल संसार के किसी भी भौतिक बल से अधिक है.”

उन्होंने यह भी कहा कि धर्म का मार्ग त्याग और तप का है, जबकि अधर्म का मार्ग भोग और संग्रह का. राम ने त्याग और तप से धर्म का पालन किया और रावण ने भोग और संग्रह में लिप्त रहकर अधर्म का मार्ग अपनाया. इसी कारण रावण का अंत हुआ और धर्म की विजय हुई.

अंत में पौराणिक जी ने श्रोताओं से आह्वान किया कि वे अपने जीवन में धर्म का पालन करें, अधर्म का त्याग करें और सनातन संस्कृति के मूल्यों को आत्मसात करें. उन्होंने कहा कि “जिसके पास धर्म है, वही सच्चे अर्थों में बलवान और पूज्य है. इसलिए हे महामना, धर्म का नृत्य करो और अधर्म का परित्याग ही जीवन का परम कर्तव्य बनाओ.”










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