जब अर्जुन-भीम थे सामने, फिर भी उत्तरा ने श्रीकृष्ण को पुकारा, शरणागत की रक्षा का अद्भुत प्रसंग ..

बताया कि जीवन में सुख-दुख से छुटकारा पाने के लिए मानव बार-बार संसार का आश्रय लेता है, लेकिन असली समाधान भगवान के शरण में जाने से ही मिलता है.


 










                                           



- बोले आचार्य रणधीर ओझा - विपत्ति में लें केवल भगवान का ही आश्रय, तभी मिलती है कृपा
- भागवत कथा के तीसरे दिन श्रवणकर्ताओं को बताया गया शरणागति और विश्वास का महत्व

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : नगर के शिवपुरी स्थित काली मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कथा व्यास रणधीर ओझा ने श्रद्धालुओं को भगवान की शरणागति की महिमा से अवगत कराया. उन्होंने बताया कि जीवन में सुख-दुख से छुटकारा पाने के लिए मानव बार-बार संसार का आश्रय लेता है, लेकिन असली समाधान भगवान के शरण में जाने से ही मिलता है.

आचार्य ओझा ने उत्तरा और भगवान श्रीकृष्ण के प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताया कि जब अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भस्थ शिशु पर ब्रह्मास्त्र छोड़ा, तब वह किसी योद्धा या ज्ञानी के पास न जाकर सीधे श्रीकृष्ण की शरण में पहुंची. उसने कहा, “प्रभु! मेरी मृत्यु हो जाए तो स्वीकार है, लेकिन मेरे गर्भ में पल रहे शिशु की रक्षा कीजिए.” उस समय वहां अर्जुन, भीम जैसे पराक्रमी खड़े थे, लेकिन उत्तरा ने उन्हीं की बजाय भगवान को पुकारा.

आचार्य श्री ने द्रौपदी के उस प्रसंग को भी याद कराया जब भरी सभा में उसका चीर हरण हो रहा था. उन्होंने कहा कि जब तक द्रौपदी यह सोचती रही कि मेरे पतिदेव, भीष्म पितामह आदि मेरी रक्षा करेंगे, तब तक उसे भगवान का आश्रय नहीं मिला. लेकिन जैसे ही उसने 'हे श्याम' कहकर भगवान को पुकारा और साड़ी को दांत से छोड़ दिया, उसी क्षण भगवान श्रीकृष्ण ने चीर की रक्षा की.

कथा में आचार्य ने आगे बताया कि द्रौपदी की वह सीख उत्तरा को भी दी गई थी. उसने कहा था कि बेटी, संकट के समय किसी अन्य का आश्रय मत लेना. यही कारण है कि उत्तरा ने संकट की घड़ी में केवल श्रीकृष्ण को पुकारा.

भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से ही वह गर्भस्थ बालक, जो आगे चलकर महाराज परीक्षित बने, की रक्षा हो सकी. भगवान श्वास रूप में उत्तरा के गर्भ में प्रविष्ट होकर ब्रह्मास्त्र के प्रहार से उसकी रक्षा करते हैं.

आचार्य रणधीर ओझा ने कथा को निष्कर्ष रूप में समझाते हुए कहा कि भागवत पुराण यही संदेश देता है कि हर प्राणी को केवल भगवान का ही आश्रय लेना चाहिए, अन्याश्रय करने वाले को प्रभु की कृपा नहीं मिलती.

इस मौके पर भक्तों की भारी भीड़ मंदिर परिसर में मौजूद रही. श्रद्धालुओं ने भावविभोर होकर कथा का श्रवण किया और बार-बार ‘जय श्रीकृष्ण’ के जयघोष से वातावरण भक्तिमय बना दिया.











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