प्रमाण पत्र के लिए घंटों इंतजार से नाराज़ हुए दिव्यांगजन, अस्पताल में की नारेबाजी

कहना है कि यह पहली बार नहीं है, जब उन्हें इस तरह की समस्या का सामना करना पड़ा है. उन्होंने आरोप लगाया कि अस्पताल परिसर में कुछ दलाल सक्रिय हैं, जो अपने नंबर देकर कहते हैं कि रुपये देने पर प्रमाण पत्र बनवा देंगे. इन दलालों का कुछ कर्मियों से मिलीभगत है और वे वसूली भी करते हैं.
दिव्यांगजनों को नंबर का टोकन देते कंप्यूटर ऑपरेटर







                                           




  • सदर अस्पताल में 12:30 बजे के बाद शुरू हुआ प्रमाण पत्र निर्माण कार्य
  • दलालों की सक्रियता और चिकित्सकों की अनुपस्थिति पर जताई चिंता

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर : सदर अस्पताल में गुरुवार को उस समय अफरातफरी का माहौल बन गया जब दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनवाने पहुंचे दिव्यांगजन निर्धारित समय पर चिकित्सक नहीं पहुंचने से नाराज़ हो गए. उन्होंने अस्पताल परिसर में खड़े होकर नारेबाजी शुरू कर दी और प्रमाण पत्र प्रक्रिया में लापरवाही तथा भ्रष्टाचार का आरोप लगाया. नाराज़गी तब और बढ़ गई जब कई घंटे बीतने के बाद भी कार्य प्रारंभ नहीं हो सका. अंततः जिलाधिकारी को फोन किए जाने के बाद चिकित्सकों की उपस्थिति सुनिश्चित हो सकी और प्रमाण पत्र बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई.

खुद को कथित शिक्षक बता रहे व्यक्ति (सफेद शर्ट मेंसे बातचीत करते दिव्यांगजन

जानकारी के अनुसार, जिले के सुदूर इलाकों से आए दर्जनों दिव्यांगजन सुबह 9:00 बजे से ही अस्पताल परिसर में प्रमाण पत्र बनवाने के लिए एकत्रित हो गए थे. लेकिन दोपहर 12:30 बजे तक कोई भी चिकित्सक उपस्थित नहीं था. सिमरी प्रखंड के सहीयार गांव निवासी विकास प्रसाद ने बताया कि 9:30 बजे पहुंचने के बाद भी उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ा. उन्होंने बताया कि 12:24 बजे डीएम को फोन किया गया, जिसके बाद 12:40 बजे डॉक्टर अस्पताल पहुंचे और प्रक्रिया शुरू हुई.

विकास प्रसाद का कहना है कि यह पहली बार नहीं है, जब उन्हें इस तरह की समस्या का सामना करना पड़ा है. उन्होंने आरोप लगाया कि अस्पताल परिसर में कुछ दलाल सक्रिय हैं, जो अपने नंबर देकर कहते हैं कि रुपये देने पर प्रमाण पत्र बनवा देंगे. इन दलालों का कुछ कर्मियों से मिलीभगत है और वे वसूली भी करते हैं.

डुमरांव दिव्यांग संघ के अध्यक्ष विष्णु कुमार पासवान ने बताया कि वह डुमरांव से दो दिव्यांगजनों को लेकर आए थे. सुबह से लिंक फेल और डॉक्टर के नहीं होने की बात कहकर उन्हें टरकाया जाता रहा. उन्होंने बताया कि जब भूख लगी तो उन्होंने नीचे जाकर खुद पानी लाकर दिव्यांगजनों को पिलाया. न तो अस्पताल में पीने के पानी की व्यवस्था है और न ही बैठने की सुविधा. उन्होंने बताया कि 12:40 बजे काम शुरू हुआ, लेकिन लगभग 120 उपस्थित लोगों में सिर्फ 50 को ही टोकन नंबर दिया गया. बाद में काफी अनुरोध पर 17 और लोगों को नंबर मिला. शेष दिव्यांगजन बिना प्रमाण पत्र लिए वापस लौटने को मजबूर हुए.

उन्होंने कहा कि सुदूर गांवों से आने के लिए गाड़ी रिजर्व करनी पड़ती है और कई बार प्रमाण पत्र न बनने के कारण लोगों को आर्थिक नुकसान के साथ शारीरिक परेशानी भी उठानी पड़ती है.

अस्पताल में मौजूद दिव्यांगजनों ने यह भी बताया कि आंख-कान, गला तथा मानसिक रोगों के डॉक्टर वहां उपस्थित नहीं थे. मानसिक रोग से संबंधित प्रमाण पत्र बनवाने आए लोगों को बताया गया कि संबंधित चिकित्सक बुनियाद केंद्र में हैं, जिससे उन्हें वहां जाने को कहा गया. खास बात यह रही कि अस्पताल में इसकी कोई सूचना बोर्ड पर प्रदर्शित नहीं की गई थी, जिससे दिव्यांगजनों को असुविधा हुई.

इसी बीच एक व्यक्ति शंभू सिंह भी मौके पर दिखे, जिन्होंने बताया कि वे मंझवारी स्थित राजकीय बुनियादी विद्यालय में शिक्षक हैं और 6 से 14 वर्ष की आयु वाले बच्चों का नाम दर्ज करने के लिए वहां आते हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या उनकी यहां औपचारिक नियुक्ति है, तो उन्होंने कहा कि नहीं, वह अपनी मर्जी से आते हैं. इस पर सवाल खड़ा होता है कि एक शिक्षक को शैक्षणिक कार्य छोड़कर अस्पताल में बैठने की अनुमति किसने दी?

सदर अस्पताल के कुछ कर्मियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अस्पताल में कुछ कर्मचारी पिछले 10 वर्षों से जमे हुए हैं. इनकी दलालों के साथ मिलीभगत है और प्रमाण पत्र प्रक्रिया में मनमानी करते हैं.

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, गुरुवार सुबह से स्वावलंबन पोर्टल में तकनीकी खराबी थी, जिसके कारण कार्य में देर हुई. पटना से तकनीकी दिक्कत ठीक होने के बाद प्रक्रिया शुरू हो सकी. सिविल सर्जन से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे न तो मुलाकात हो सकी और न ही फोन पर बात संभव हो पाई, जिसके चलते उनका पक्ष नहीं मिल सका.

दिव्यांगजनों और सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि प्रमाण पत्र प्रक्रिया को सुचारु और पारदर्शी बनाने के लिए स्पष्ट व्यवस्था और चिकित्सकों की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित की जाए. साथ ही अस्पताल में पीने के पानी, बैठने की सुविधा और सभी चिकित्सकों की मौजूदगी अनिवार्य हो ताकि दिव्यांगजनों को बार-बार अस्पताल के चक्कर न काटने पड़ें.










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