लॉक डाउन हो जाने के बाद अब वह वाराणसी जाने में सक्षम थे. इसी बीच उनकी तबीयत अचानक से खराब हो गई तथा उनके परिजनों द्वारा उन्हें चौसा स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां चिकित्सकों के द्वारा तुरंत रक्त चढ़ाने की बात कही गई.
- आपातकालीन परिस्थितियों में रक्तदान कर हिंदू युवक ने बचाई मुस्लिम व्यक्ति की जान
- कैंसर पीड़ित व्यक्ति को तत्काल रक्त चढ़ाए जाने की थी आवश्यकता
बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: "हिंदू के खून से बच गई मुस्लिम की जान .." जी हां ! आप सही सुन रहे हैं. हिंदू व्यक्ति के द्वारा रक्तदान करने पर एक मुस्लिम व्यक्ति की जान बच गई. आप सोचेंगे इसमें कौन सी नई बात है? खून तो कभी हिंदू या मुस्लिम का नहीं होता. वह तो बस खून होता है जो वक्त पड़ने पर किसी की भी जान बचा सकता है. हालांकि, कुछ लोग इस बात को नहीं समझते. और सदैव नफ़रत की बातें करते हैं. फिर भी, कुछ लोग हैं जो समय-समय पर मजहब की दीवारों को गिरा कर मानवता की मिसाल पेश करते हैं.
ऐसा ही एक उदाहरण बक्सर में उस वक्त देखने को मिला. जब गैर मजहबी व्यक्ति के खून ने आपातकालीन स्थिति में एक व्यक्ति की जान बचाई. दरअसल, भरखरा गांव के निवासी तथा कैंसर से पीड़ित कुर्बान अंसारी का इलाज कुछ महीनों से वाराणसी में चल रहा था. लॉक डाउन हो जाने के बाद अब वह वाराणसी जाने में सक्षम थे. इसी बीच उनकी तबीयत अचानक से खराब हो गई तथा उनके परिजनों द्वारा उन्हें चौसा स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां चिकित्सकों के द्वारा तुरंत रक्त चढ़ाने की बात कही गई.
संबंधित ब्लड ग्रुप घर में किसी के पास नहीं था. ऐसे में कुर्बान अंसारी के कतर में रहने वाले पुत्र ने बक्सर के अंत्योदय सेवा संस्थान के संयोजक गिट्टू तिवारी से फोन कर ब्लड की व्यवस्था कराने का आग्रह किया. इसी बीच संस्थान के सदस्य अभिषेक कुमार ने बताया कि, उनका तथा कुर्बान का रक्त ग्रुप एक ही है. वह रक्तदान को सहर्ष तैयार हो गए तथा उन्होंने मजहब की दीवार को गिराते हुए मानवता के लिए रक्तदान कर कुर्बान अंसारी की जान बचा ली.
कुर्बान अंसारी के बड़े भाई व भतीजे ने अभिषेक का आभार जताते हुए कहा कि, अपना देश मजहबी एकता के लिए सदैव जाना जाता रहा है और यह अभिषेक जैसे लोगों के कारण ही संभव हो सका है.
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