होल्डिंग टैक्स मामला: महालेखाकार की टीम ने वर्ष 2016 में भी उजागर किया था रुपयों का हेरफेर ..

कहा था कि जल्द से जल्द इन लोगों के द्वारा यह राशि सरकारी खाते में जमा कराते हुए महालेखाकार कार्यालय को इसकी सूचना दी जाए. बताया जा रहा है कि कई वर्ष बीत जाने के बावजूद आज भी विभागीय अधिकारी को यह तक नहीं पता कि क्या यह राशि खाते में जमा की गई अथवा नहीं.

- कर दारोगा, सहायक कर दारोगा समेत कई व्यक्तियों ने किया 13.39 लाख रुपये का गोलमाल
- 2014 से 2016 तक तक किया गया था होल्डिंग टैक्स की राशि का गबन

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: नगर परिषद में होल्डिंग  टैक्स की राशि के हेरफेर का मामला कोई नया नहीं है. बताया जा रहा है कि वर्ष 2014 से लेकर 2016 तक भी इसी तरह का घोटाला होल्डिंग टैक्स के संग्रहकर्ताओं ने किया था. सरकार के महालेखाकार की ऑडिट टीम के द्वारा यह मामला संज्ञान में आया था. जिसके बाद संबंधित संग्रहकर्ताओं से तकरीबन 13 लाख 39 हज़ार 349 रुपये सरकारी खाते में जमा कराए जाने की बात कही गई थी. हालांकि, अब तक यह पैसा खाते में जमा हो पाया अथवा नहीं? इसकी जानकारी नगर परिषद के वरीय पदाधिकारियों को नहीं है.

इसी बीच घोटालेबाजों का मनोबल इतना बढ़ गया कि एक बार फिर 31 लाख 60 हज़ार रुपयों की राशि का घालमेल कर दिया गया. हालांकि, मामला सामने आने के बाद अब किसी भी तरह मामले को सलटाने का प्रयास किया जा रहा है. बताया जा रहा है कि उस वक्त सहायक लेखा परीक्षक अधिकारी रंजीत कुमार रजक तथा उनकी टीम ने अपनी जांच के दौरान यह पाया था कि कई कर संग्रहकर्ताओं जिनमें तात्कालिक कर दारोगा तथा सहायक कर दारोगा भी शामिल हैं, द्वारा वसूली गई 13 लाख को 39 हज़ार 349 रुपये की राशि को सरकारी खाते में जमा नहीं कराया गया. उन्होंने अपने लिखित निर्देश में यह कहा था कि जल्द से जल्द इन लोगों के द्वारा यह राशि सरकारी खाते में जमा कराते हुए महालेखाकार कार्यालय को इसकी सूचना दी जाए. बताया जा रहा है कि कई वर्ष बीत जाने के बावजूद आज भी विभागीय अधिकारी को यह तक नहीं पता कि क्या यह राशि खाते में जमा की गई अथवा नहीं. बताया जा रहा है कि सरकारी विभागों पर तकरीबन एक करोड़ 29 लाख रुपए का होल्डिंग टैक्स बकाया था. जिसकी वसूली के दौरान प्राप्त राशि में यह गोलमाल किया गया.

गैर जिम्मेदार लोगों के हाथ में दे दिए गए हैं वित्तीय मामले:

बताया जा रहा है कि होल्डिंग टैक्स वसूली अथवा किसी भी वित्तीय मामले में नियमित कर्मियों के द्वारा ही कार्य किया जाना. चाहिए साधारण शब्दों में समझें तो ऐसे लोग वित्तीय कार्यों को देख सकते हैं जिनसे कभी भी वित्तीय अनियमितता की बात सामने आने पर राशि की वसूली की जा सके. ऐसे में अगर कोई नियमित कर्मी किसी भी प्रकार की वित्तीय अनियमितता में लिप्त पाया जाता है तो उसके पीएफ अथवा पेंशन से भी राशि की वसूली की जा सकती है लेकिन, इन सब से उलट नगर परिषद में वित्तीय मामलों का प्रभार उन्हें दिया गया जो खुद ही नियमित नहीं हैं. आश्चर्य की बात तो यह है कि एक तरफ जहां संविदा कर्मी होने के बाद कार्यपालक सहायक ने कर की वसूली की है वहीं, दूसरी तरफ लेखापाल के पद पर कार्यरत व्यक्ति की संविदा समाप्त होने के पश्चात भी उसे वित्तीय कार्यों का प्रभार दिया गया है. ऐसे में स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि नगर परिषद को जनता की गाढ़ी कमाई की तनिक भी परवाह नहीं है.

कहते हैं अधिकारी:

पूर्व में हुए मामले की जानकारी मुझे नहीं है. वहीं, संविदा कर्मियों को वित्तीय कार्य में लगाए जाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है क्योंकि, नगर परिषद में कर्मियों की कमी है. हालांकि, वर्तमान में आयी वित्तीय अनियमितता की जांच कराई जा रही है.

सुजीत कुमार,
कार्यपालक पदाधिकारी,
नगर परिषद











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