समाज तथा सरकार दोनों को भुगतना होगा सरस्वती पुत्रों के अपमान का खामियाज़ा ..

कहते हैं कि विद्यादान अमूल्य है एवं इसकी प्रतिपूर्ति शिक्षकों के वेतन एवं अन्य सुविधओं से नहीं की जा सकती हैं फिर भी ज़िले में माँ सरस्वती के पुत्र यदि लाचार एवं तंगहाली के शिकार हैं तो समाज और लक्ष्मी पुत्रों को भी लज्जित होना पड़ेगा. 

- कोरोना काउंट काल में तोड़ दी है स्कूल तथा कोचिंग संचालकों की कमर
- बंद हो चुके हैं कई स्कूल कई बंद होने के कगार पर

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर: विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥

विद्या विनय देती है; विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म, और धर्म से सुख प्राप्त होता है. वेद की यह सूक्ति कोरोना काल में ज़िले में निष्फल साबित हो रही है. ज़िले मे विद्या, विनय एवं पात्रता के बाद भी निजी स्कूलों एवं कोचिंग संस्थानों के शिक्षक दर दर की ठोकरें खा रहे हैं और जीवन की दुश्वारियाँ बढ़ गई हैं. कोरोना महामारी से ज़िले मे करीब 150 निजी शिक्षण संस्थान बन्द हो गए हैं तथा कई बंद होने के कगार पर हैं. इन संस्थानों से जुड़े अन्य कामगार जैसे ड्राइवर, चपरासी, झाड़ू-पोछा करने वाले सहित कई भुखमरी के कगार पर हैं. कई पुस्तक विक्रेता भी कोरोना से दिवालिया हो गए हैं क्योंकि, महामारी के पूर्व ही नए सत्र के लिए रुपये जमा कर चुके हैं और किताब तथा स्टेशनरी सामग्री दुकान में अटी पड़ी हैं. शहर के कुछ नामचीन निजी स्कूलों को छोड़कर शेष सभी निजी स्कूल बंद हो गए हैं और उनके शिक्षकों के समक्ष भुखमरी की स्थिति आ गई हैं. 

सरकार ने कुछ निजी स्कूलों को क्वॉरेंटाइन केंद्र के रूप में सदुपयोग और दुरूपयोग दोनों किया लेकिन, इन स्कूलों के शिक्षकों व कर्मचारियों की सुध तक नहीं ली. तमाम योग्यता धारित करने के बावजूद ऐसे शिक्षक बहुत कम ही वेतन पर कार्य करते हैं. शहर के नामचीन विद्यालयों में शिक्षकों का औसत वेतन दस हजार रुपये मासिक है. तो शेष निजी स्कूलों में यह रकम पांच हजार रुपये या उससे कम ही है जो महज उनके क्षुधा शांति तक ही है. उस पर पिछले पांच माह से वेतन नहीँ मिलने से उनके व उनके परिवार की हालत अत्यन्त दयनीय हो गई हैं. वे अपने आँगन में ही प्रवासी मजदूरों से भी निम्न जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं. 

कहते हैं कि विद्यादान अमूल्य है एवं इसकी प्रतिपूर्ति शिक्षकों के वेतन एवं अन्य सुविधओं से नहीं की जा सकती हैं फिर भी ज़िले में माँ सरस्वती के पुत्र यदि लाचार एवं तंगहाली के शिकार हैं तो समाज और लक्ष्मी पुत्रों को भी लज्जित होना पड़ेगा. माँ सरस्वती का अपमान व तिरस्कार, कोरोना के पहले एवं बाद में भी "उल्लू" पर सवार 'लक्ष्मी' को भी अपमानित करायेगा. 

राजपुर से लेकर ब्रह्मपुर तक जब राजकीय जन शिक्षा या सरकारी स्कूलों की शिक्षा मिड डे मील, साइकिल, पोशाक भत्ता एवं बिना पढ़े लिखे ही प्रथम श्रेणी की अंकपत्र हासिल करने की रह गई हो एवं एक बड़ा कुपढ़ समाज बनाने की जरिया है तो, ज़िले के हर गाँव और प्रखंड में कुछ सरस्वती पुत्रों ने अपनी लाचारी में ही शिक्षा की अलख जगाये हुए हैं. तभी तो समाज में संस्कृत, विज्ञानं, गणित व अंग्रेजी की शिक्षा मिल पा रही हैं. लेकिन, समाज और सरकार ऐसे समय ऐसे सरस्वती पुत्रों एवं पुत्रियों को भूल गया जिस समय इनकी जरूरत थी. इस उपेक्षा का दंश शिक्षक ही नहीँ झेल रहे हैं. आनेवाले दिनों में समाज को भी झेलना पड़ेगा एवं विद्याविहीन समाज का वह स्वंय जिम्मेदार होगा. 

 महज तीन हजार रुपए पर हर माह अंग्रेजी पढ़ाने वाली पांडेयपट्टी की रूबी को पिछले पांच माह से वेतन नहीँ मिला है2 यदि मिलता तो वह पन्द्रह हजार रूपये उसके लिये ढाक के तीन पात ही होते. रूबी के आंसू और अवसाद को जो समाज तिलांजलि देगा वह स्वंय ही इसका शिकार होगा. रूबी पांडेयपट्टी के निजी विद्यालय में पढ़ाती है, उसके संचालक को भी कम मुसीबत नहीँ है. उन्होंने बैंक से विद्यालय के लिए ऋण ले रखा है, अभिभावक फ़ीस न भी जमा करें, लोन का क़िस्त उनके खाते से घट जा रहा है. नतीजतन उन्हें शिक्षकों को जीने या भरण पोषण तक के लिए पैसा देने की स्थिति नहीं है. सिविल लाइंस क्लब के पास अल्मा किड्स के नाम से पिछले वर्ष स्कूल खोलने वाली पूनम प्रसाद को मलाल है कि नए सत्र के लिये उन्होने काफी निवेश किया है और इस बार बैंक से एक स्कूल वाहन भी फाइनेंस कराया है तब तक कोरोना ने सब पर भारी पड़ गया और इधर बैंक क़िस्त वसूलने लगा है. उनके विद्यालय की करीब एक दर्जन शिक्षिकायें बेरोजगार हो गई हैं. 

दूसरी ओर कई नामचीन विद्यालयों में जहां रसूखदार एवं संपन्न अभिभावक फ़ीस भी जमा कर चुके हैं, वहां भी स्थिति कम भयावह नहीं है. कॉन्ट्रैक्ट पर बहाल शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है और जो नियमित शिक्षक है उनका वेतन 40 फीसदी काटकर महज दो माह तक का ही दिया गया है. कई निजी स्कूल डुमराँव, चौसा सोनबरसा में अपनी शाखा खोलकर विस्तार हेतु काफी पूंजी निवेश कर चुके हैं, बैंकों से लोन भी लिए हैं, अभी स्कूल ही नहीं खुल पाया है. कोचिंग संस्थान भी बंद है, प्रतिभा संपन्न युवकों के लिए कोचिंग संस्थान संजीवनी थी लेकिन कोरोना ने उनकी भी कमर तोड़ दी. हालाँकि, कोरोना काल में कुछ विद्यालय एवं सरकारी शिक्षकों की चांदी है. ज़िले के एक निजी स्कूल संचालक ने अपनी आय को उत्तराखंड में निवेश किया है तो शहर के एक सरकारी उच्च विद्यालय के चर्चित प्रधानाध्यापक ने शहर में आशियाना रहते हुए भी कोरोना काल में साठ लाख रुपये की जमीन का क्रय किया है. निजी स्कूलों और कोचिंग संस्थानों के शिक्षक और उनके परिवार वाले जो दंश झेल रहे हैं इसका खामियाजा समाज और सरकार दोनों को भुगतना पड़ सकता हैं.











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2 Comments

  1. अब जा कर शिक्षा और शिक्षक के बारे में किसी न्यूज ने इतनी बड़ी बात लिखी है नहीं तो अभी तक किसी की हिम्मत ही नहीं हुई थी कि कुछ लिखे क्युकी fan following का भी ध्यान रखना है...... धन्यवाद आपका अपने शिक्षा- शिक्षक और सरस्वती-लक्ष्मी का सम्बंध भी बखूबी समझाया है lllll 🙏🙏🙏🙏

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  2. Online classes chal rahi hai fir bhi Na government koi action le rhi h na school management or na hi parents hm teacher bs work kr rhe h lekin payment milega ya nhi koi thik nhi March se hi sub band h or ab to dukandar bhi udhar dene se pichhe ht rhe h upar se room rent alg se badh rha h ab to smajh nhi aa rha ki kre to kya kre. rat ki nid bhi gayeb ho gai h ab bas family ki problem hi har time dimag me aa rha h

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