200 कदमों की दूरी 55 दिनों में पूरी कर पीड़ित से बयान लेने पहुंची पुलिस ..

विनोद कुमार ने आशंका जताई कि पुलिस भ्रष्टाचारियों के मेल में है और उनके भ्रष्टाचार को छिपाने तथा उन्हें बचाने के लिए इस तरह का रवैया अपना रही है. जिससे कि मामले से जुड़े सारे सबूत नष्ट हो जाएं और मामला ठंडे बस्ते में चला जाए. उन्होंने कहा कि सीसीटीवी फुटेज की अब तक जांच नहीं की गई जबकि, जाँच में कई आपराधिक गतिविधियों का उद्भेदन होगा.
घटना के बाद दुकान के बाहर लगी भीड़ एवं इनसेट में घायल आरटीआई कार्यकर्ता(फ़ाइल इमेज़)

- डुमराँव नगर परिषद कार्यालय के समीप आरटीआई कार्यकर्ता पर जानलेवा हमले का है मामला
- पीड़ित ने जताई घटना में साक्ष्य नष्ट हो जाने की आशंका

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर: एक तरफ जहां डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय सूबे में कानून का राज स्थापित होने की बात कहते हैं वहीं, दूसरी तरफ उनके ही गृह जिले के कुछ पुलिसकर्मियों के कार्यशैली से लोगों के विश्वास को ठेस पहुंचती है. मामला डुमराँव का है जहां थाने से महज 200 कदमों की दूरी पर बैठे एक पीड़ित के पास पर पहुंचने तथा उसका बयान दर्ज करने में पुलिस को 55दिन का समय लग गया. बताया जा रहा है कि, आरटीआई कार्यकर्ता विनोद कुमार पर इसी वर्ष 29 जून को अज्ञात हमलावरों ने जानलेवा हमला किया था. इस मामले में उन्होंने डुमराँव थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई. मामले में पीड़ित से पूछताछ करने 22 अगस्त को पहुँची.

अपने आवेदन में उन्होंने बताया था कि वह लगातार आरटीआई के द्वारा कई विभागों खासकर नगर परिषद के भ्रष्टाचार की पोल खोलते रहते हैं. ऐसे में उन्हें अंदेशा है कि नगर परिषद के लोगों तथा कुछ वार्ड पार्षदों के शह पर उनके साथ इस तरह की घटना को अंजाम दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा था कि पुलिस अगर सीसीटीवी फुटेज खंगाले तो मामले में बहुत सारे राज खुल कर सामने आ सकते हैं तथा यह भी ज्ञात हो सकता है कि पर्दे के पीछे यह खेल कौन खेल रहा है. हालांकि, पुलिस ने इस बात को कितनी गंभीरता से लिया इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि, पुलिस पीड़ित आरटीआई कार्यकर्ता के यहां तकरीबन 55 दिनों के बाद 22 अगस्त को पहुंची और उनसे पूछताछ की गई.

दरअसल, डुमराँव नगर परिषद कार्यालय के समीप अपनी कोरियर की छोटी सी दुकान चलाने वाले विनोद कुमार एक आरटीआई कार्यकर्ता हैं, कई विभागों के भ्रष्टाचारियों को उन्होंने बेनकाब किया है. कुछ दिनों पूर्व नगर परिषद के द्वारा एक सड़क निर्माण में तकरीबन 1000 वर्ग फीट का काम कराए बगैर पैसा निकाल लेने के मामले को उन्होंने उजागर किया था. मामला सत्य साबित हुआ तथा इस पर नगर परिषद ने दोषी कनीय अभियंता से पैसे की रिकवरी भी की. इसी बीच 29 जून की दोपहर में जब वह अपनी दुकान पर बैठे हुए थे उसी वक्त अज्ञात हमलावरों ने दुकान में घुसकर उन पर जानलेवा हमला किया और फिर आराम से निकल भागे. हैरान-परेशान आरटीआई कार्यकर्ता ने मामले में डुमराँव थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई है. आश्चर्यजनक रूप से मामले में तकरीबन 2 माह का समय बीत जाने के बाद पुलिस उनके यहां पहुंची तथा उनका बयान लिया जबकि, पुलिस थाने से उनकी दुकान की दूरी केवल 200 कदमों की है. विनोद कुमार ने आशंका जताई कि पुलिस भ्रष्टाचारियों के मेल में है और उनके भ्रष्टाचार को छिपाने तथा उन्हें बचाने के लिए इस तरह का रवैया अपना रही है. जिससे कि मामले से जुड़े सारे सबूत नष्ट हो जाएं और मामला ठंडे बस्ते में चला जाए. उन्होंने कहा कि सीसीटीवी फुटेज की अब तक जांच नहीं की गई जबकि, जाँच में कई आपराधिक गतिविधियों का उद्भेदन होगा.

इस बाबत पूछे जाने पर थानाध्यक्ष संतोष कुमार ने बताया कि मामले के अनुसंधान के दौरान जो भी बातें सामने आई हैं उन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. यह पूछे जाने पर कि क्या सीसीटीवी फुटेज अब तक सुरक्षित होगा? उन्होंने बताया कि पंजाब नेशनल बैंक से जुड़े एक मामले में उन्हें यह ज्ञात हुआ था कि सीसीटीवी फुटेज 3 महीनों तक भी सुरक्षित रहता है. ऐसे में मामले के अनुसंधान पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और दोषी को बख्शा भी नहीं जाएगा. बहरहाल, पुलिस अपने दावे पर कितना खरा उतरती है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन, पुलिस की कार्यशैली से कहीं ना कहीं लोगों के बीच अविश्वास जरूर पनप रहा है.















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