नदी की जमीन का दो तरफा अतिक्रमण, भू माफियाओं से लेकर अधिकारियों की संलिप्तता भी उज़ागर ..

हाल में ही ऐसा एक मामला उजागर होने के बाद अंचलाधिकारी ने दाखिल-खारिज रद्द करने की प्रक्रिया शुरु की है. मजे की बात तो यह है कि नदी की जमीन का अतिक्रमण केवल स्थानीय लोगों के द्वारा अथवा भू-माफियाओं के द्वारा ही नहीं बल्कि, नगर परिषद के द्वारा भी किया जा रहा है. नगर परिषद ने तो अब बाजाप्ता नदी के गर्भ में कचरा पुनर्चक्रण पिट भी बना दिया है.

 

नदी में बनाया गया कचरा पुनर्चक्रण पिट

- डुमराँव में ऐतिहासिक काव नदी से जुड़ा हुआ है मामला
- नदी के गर्भ में ही नगर परिषद ने बना दिया है कचरा पुनर्चक्रण पिट
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों की भी खुलकर उड़ाई जा रही धज्जियां

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: एक तरफ जहां राज्य सरकार जल जीवन हरियाली अभियान चलाकर आहार, नहर, नदी, पोखर, तालाब आदि को अतिक्रमण से मुक्त करा कर जल संचय अभियान चला रही है वहीं, डुमराँव नगर में ऐतिहासिक काव नदी की की जमीन पर जमकर अतिक्रमण किया जा रहा है. अतिक्रमणकारी लगातार जहां  काव नदी की जमीन को पाट कर उस पर कब्जा करते जा रहे हैं. वहीं, अंचल कर्मियों की मिलीभगत से उन्होंने जमीन को अपने नाम से दाखिल-खारिज भी करा लिया है. हाल में ही ऐसा एक मामला उजागर होने के बाद अंचलाधिकारी ने दाखिल-खारिज रद्द करने की प्रक्रिया शुरु की है. मजे की बात तो यह है कि नदी की जमीन का अतिक्रमण केवल स्थानीय लोगों के द्वारा अथवा भू-माफियाओं के द्वारा ही नहीं बल्कि, नगर परिषद के द्वारा भी किया जा रहा है. नगर परिषद ने तो अब बाजाप्ता नदी के गर्भ में कचरा पुनर्चक्रण पिट भी बना दिया है.

बताया जा रहा है कि, डुमराँव के वार्ड संख्या 19 तथा 8 में कुल मिलाकर नदी की जमीन तकरीबन 500 बीघा है. जिसका अतिक्रमण वर्षों से किया जा रहा है. वर्ष 2001 में एक आंदोलन चलाकर डुमराँव के समाजसेवियों ने नदी को अतिक्रमण मुक्त कराए जाने की मांग की थी लेकिन, बाद में सत्ता और शासन के प्रभावशाली व्यक्तियों के दखल के पश्चात इस मामले को दबा दिया गया. हालांकि, तत्कालीन अंचलाधिकारी ने कुछ लोगों को अतिक्रमण हटाने के लिए नोटिस तो दिया था लेकिन ,उस मामले में ज्यादा कुछ नहीं हो सका.

वर्ष 2009 में बचपन बचाओ आंदोलन के बैनर तले कुछ लोगों ने मुख्यमंत्री के जनता दरबार में नदी के किनारे बांध की जमीन पर पार्क आदि बनाने का प्रस्ताव दिया था. जिस पर नगर परिषद ने कहा कि वह जमीन उसकी नहीं है इसलिए उस संदर्भ में नप के द्वारा कुछ नहीं किया जा सकता. इसी बीच वर्ष 2016 में नप के तत्कालीन कार्यपालक पदाधिकारी अनुभूति श्रीवास्तव के आदेश से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों को दरकिनार करते हुए नदी में कचरा डंप किए जाने का कार्य शुरू हुआ जो अब तक जारी है. उधर, वर्ष 2018 में नगर परिषद के द्वारा ही तकरीबन 90 लाख रुपये की लागत से नदी के ऊपर एक पुल भी बना दिया गया. यह पुल नदी के पुराने पुल के बगल में बनाया गया. पुल बनने के बाद अतिक्रमणकारियों ने पुराने पुल का भी अतिक्रमण कर लिया. इतना ही नहीं, वर्ष 2019 में नगर परिषद के वर्तमान कार्यपालक पदाधिकारी सुजीत कुमार के द्वारा नदी के गर्भ में कचरा पुनर्चक्रण पिट भी बना दिया गया है.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब नगर परिषद में पूर्व में यह कहा था कि यह जमीन उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है तो फिर किस प्रकार नए पुल का निर्माण किया गया और जल- जीवन- हरियाली अभियान के तहत जहां नदी के जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराया जाना है. ऐसे में नदी के गर्भ में कचरा पुनर्चक्रण पिट कैसे बना दिया गया?

इस संदर्भ में नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी सुजीत कुमार का पक्ष जानने के लिए उनके मोबाइल नंबर 9386863960 पर संपर्क किया गया लेकिन, फोन नहीं उठाने के चलते उनका पक्ष ज्ञात नहीं हो सका.














Post a Comment

0 Comments