दादा को पक्ष में करने का पहलवानी दाव फेल, कटा टिकट ..

वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में बेहद की कमजोर प्रत्याशी माने जाने वाले डॉ दाउद अली ने सभी को पटखनी देते हुए जीत दर्ज की थी. दाउद अली को 42 हजार 538 मत मिले थे. उस वक्त ददन पहलवान 17 हजार 956 वोट लाकर तीसरे स्थान पर खिसक गए थे. इतने बड़े अंतर से हार के बाद लगने लगा था कि ददन पहलवान की राजनीति हसिये पर चली गई है. लेकिन, साल 2015 के चुनाव में बड़ा उलट फेर हुआ.

 

- पक्ष में लाने के लिए कोपवा गांव में बनाया जा रहा दादा के पिता के नाम पर भव्य गेट
- 25 सालों में डुमराँव की राजनीति में अहम भूमिका निभाते रहे हैं ददन पहलवान

बक्सर टॉप न्यूज, बक्सर: पिछले 25 सालों से डुमरांव विधानसभा की राजनीति में ददन यादव उर्फ ददन पहलवान की अहम भूमिका रही है. वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में बेहद की कमजोर प्रत्याशी माने जाने वाले डॉ दाउद अली ने सभी को पटखनी देते हुए जीत दर्ज की थी. दाउद अली को 42 हजार 538 मत मिले थे. उस वक्त ददन पहलवान 17 हजार 956 वोट लाकर तीसरे स्थान पर खिसक गए थे. इतने बड़े अंतर से हार के बाद लगने लगा था कि ददन पहलवान की राजनीति हसिये पर चली गई है. लेकिन, साल 2015 के चुनाव में बड़ा उलट फेर हुआ.

सूत्रों कि माने तो महागठंधन में बशिष्ठ दादा के आशीर्वाद से पहलवान की इंट्री हुई और जेडीयू के प्रत्याशी बने. चुनाव में महागठंधन और पहलवान का जोरदार जादू चला. इन्हें रिकार्ड 81081 वोट मिले. जदयू विशेषकर दादा पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए पहलवान ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. ताकि, जेडीयू के सिंबल पर चुनाव लड़ सके. ऐसे में दादा को अपने पक्ष में रखना बेहद ही जरूरी था. इसके लिए दादा के पिता-स्व. कमता सिंह के नाम पर कोपवा गांव के प्रवेश द्वार पर भव्य गेट बनाया जा रहा था. जिसमें पहलवान की अहम भूमिका थी. 

काेपवा दादा का पैतृक गांव है. वोट डालने के लिए वशिष्ठ नारायण सिंह आज भी अपने गांव आते हैं. लेकिन, पहलवान का कोई भी दाव नहीं चल पाया. उनका टिकट काटकर अंजुम आरा को दिया गया. हालांकि, टिकट काटने के कारणों की खुलकर चर्चा नहीं हुई. बहरहाल, अब देखना होगा कि इस चुनाव में किसका पलड़ा भारी है?















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