पारंपरिक तरीके छोड़ वैज्ञानिक अनुसंधान पर निर्भर पुलिस के हाथ खाली .

पुलिस भले ही तमाम वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से मामलों को सुलझाने का दावा करे लेकिन, अपराध अनुसंधान में मुखबिरों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन, हाल के दिनों में  वैज्ञानिक अनुसंधान पर बढ़ी निर्भरता और  मुखबिरों से हुई पुलिसिया दूरी अपराध अनुसंधान में पुलिस को सफल होने से रोक रही है. 






- केवल कागजों तक ही सिमटी है पब्लिक पुलिसिंग
- मुखबिरों को मिल रहे धोखे भी रोक रहे अनुसंधान की राह

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: जिले में लगातार बढ़ रही आपराधिक घटनाओं में पुलिस मामले का उद्भेदन करने में सफल नहीं हो रही. बताया जा रहा है कि पुलिस भले ही तमाम वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से मामलों को सुलझाने का दावा करे लेकिन, अपराध अनुसंधान में मुखबिरों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता. लेकिन, हाल के दिनों में  वैज्ञानिक अनुसंधान पर बढ़ी निर्भरता और  मुखबिरों से हुई पुलिसिया दूरी अपराध अनुसंधान में पुलिस को सफल होने से रोक रही है. पहले थाना पुलिस से लेकर पुलिस अफसर के पास मुखबिरों की लंबी सूची हुआ करती थी. इनकी मदद से पुलिस संदिग्ध से लेकर अपराध की योजना बनाने वाले अपराधियों तक आसानी से पहुंच जाती थी. लेकिन, पिछले कुछ सालों से पुलिस मोबाइल और सीसी कैमरे को ही मुखबिर मान बैठी है. लेकिन, कुछ मामलों को छोड़कर अन्य कई मामलों में फुटेज मिलने के बाद भी पुलिस अपराधियों तक नहीं पहुंच पा रही है. यहां तक की चोरों और हत्यारों का ठिकाना तक पुलिस को नहीं पता. यहीं नहीं, लोगों से संपर्क बढ़ाने के लिए चौपाल से लेकर जनता दरबार तक थानों पर नहीं लगता है. भूमि विवाद सुलझाने के लिए हर शनिवार को लगाए जाने वाला जनता दरबार भी जैसे-तैसे ही निबटाया जाता है. कई थानों में तो यह नियमित चलता भी नहीं. ऐसे में लोगों का पुलिस पर से भरोसा उठ रहा है. पब्लिक-पुलिसिंग भी केवल कागजी बातें रह गई हैं.




तीन माह से फुटेज लेकर घूम रही पुलिस, नहीं मिले अपराधी:

पिछले कुछ माह में कई आपराधिक मामलों में जिस सीसी कैमरे पर पुलिस भरोसा जता रही है, उन्हीं कैमरों का फुटेज हाथ में आने के बाद भी मामले का उद्भेदन नहीं हो पा रहा है. बहुचर्चित अधिवक्ता हत्याकांड में तीन माह बाद भी एक भी अपराधी की पहचान नहीं हो सकी. इस मामले में पुलिस अब भी एंगल ही तलाश रही है तबतक अपराधी पकड़ से काफ़ी दूर निकल चुके हैं. चूंकि, अधिकांश मामलों में चोर इंटरनेट कॉलिंग का इस्तेमाल करते हैं ऐसे में तकनीकी अनुंसाधन भी इसमें विशेष काम नहीं आ रहा.





विश्वास नहीं बना सकी पुलिस:

बताया जाता है कि, शराब के अवैध कारोबार समेत कई मामलों में ऐसा देखा गया है कि मुखबिरों ने अगर पुलिस को जानकारी दी, तो वह बात बाहर तक आ जाती है. सूत्रों की मानें तो ऐसे में उनकी जान पर ही आफत आ जाती है. मुखबिर सूचना देने से पहले निश्चिंत होना चाहते हैं कि उनका नाम सामने नहीं आए, पर ऐसा करने में पुलिस कामयाब नहीं हो पा रही है. नगर थाने में ही एक शराब कारोबारी की सूचना देने वाले मुखबिर की जेल भेज दिया गया था. वहीं, नाम ना छापने की शर्त पर नया बाजार रेलवे क्रासिंग के समीप रहने वाले एक युवक ने बताया कि, उसने जब स्थानीय मुफस्सिल थाना पुलिस को शराब कारोबारियों के बारे में सूचना दी तो पुलिस मौके पर पहुंची और शराब कारोबारियों को पकड़ उनसे लेनदेन कर चलती बनी. ऐसा दो-तीन बार हुआ बाद में पुलिस ने शराब कारोबारियों को उनका नाम भी बता दिया जिससे कि उनसे उनकी दुश्मनी बढ़ गई है.










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