रावण को राम ने नहीं अहंकार ने मारा : जयकांत शास्त्री

कहा कि प्रभु श्री राम ने माता सीता की खोज करने एवं रावण से युद्ध के लिए गिरीकंद राहों में रहने वाले वनवासियों आदि की सहायता लेकर सेना खड़ी की जो हमें यह सीख देता है कि समाज का हर व्यक्ति महत्वपूर्ण है कोई बड़ा और छोटा नहीं है. हम सबों को सब सबके साथ समरस भाव से मिलकर रहना चाहिए तभी समाज एवं राष्ट्र का कल्याण संभव है और बड़े से बड़े लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है.

 




- वाल्मिकी रामायण पाठ के अंतिम दिन लंका कांड का विस्तार पूर्वक किया वर्णन
- कहा, अहंकार बनती है मनुष्य के विनाश का कारण


बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम नया बाजार में चल रहे 51 वें श्री सिय-पिय मिलन महोत्सव में  चल रहे श्रीमद् वाल्मीकि रामायण कथा का आज समापन हो गया. श्री राम कथा के अंतिम दिन कथा व्यास पूज्य जय कांत शास्त्री उपाख्य रामकिंकर दास महाराज ने लंका कांड का विस्तार पूर्वक वर्णन करते हुए कहा कि लंका कांड का सार यही है कि बुराई कितनी भी ताकतवर हो अच्छाई के सामने टिक नहीं सकती है. उसका का पराजय निश्चित है. सत्य और अच्छाई के मार्ग पर चलने वाले को सदैव विजयश्री प्राप्त होती है.




महाराज श्री ने कहा की रावण अत्यंत शक्तिशाली एवं वैभव संपन्न था, किंतु उसके अंदर की आसुरी प्रवृत्ति एवं अहंकार उसके विनाश का कारण बनी. महाराज श्री ने कहा कि रावण को राम ने नहीं अपितु उसके स्वयं के अहंकार ने मारा. इसलिए हम सबों को अपने अंदर के अहंकार को त्याग देना चाहिए मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अहंकार ही है. यदि धरती पर त्यागने योग्य कुछ सर्वश्रेष्ठ है तो वह अहं ही हैं. 

महाराज श्री ने कहा कि प्रभु श्री राम ने माता सीता की खोज करने एवं रावण से युद्ध के लिए गिरीकंद राहों में रहने वाले वनवासियों आदि की सहायता लेकर सेना खड़ी की जो हमें यह सीख देता है कि समाज का हर व्यक्ति महत्वपूर्ण है कोई बड़ा और छोटा नहीं है. हम सबों को सब सबके साथ समरस भाव से मिलकर रहना चाहिए तभी समाज एवं राष्ट्र का कल्याण संभव है और बड़े से बड़े लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है.












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