कलयुग में दृश्यमान हुआ त्रेतायुग का नज़ारा, पुष्प वाटिका प्रसंग में भगवान से खूब हुआ हास-परिहास ..

पुष्प-वाटिका' प्रसंग के दौरान "जिया बसी रहूं पिया के नगरिया,  मिथिला नगरिया ना ..." और "एहो पथिकवर कहाँ तेरो शुभ घर, कहूँ तेरो पिताजी के नाम धनुर्धारियां .." जैसे मधुर गीत वहाँ गूंजने लगे. पुष्प वाटिका प्रसंग को देखने के लिए गुरुवार काफी संख्या में लोग पहुंचे थे लेकिन, कोरोना को लेकर छोटे स्तर पर किए गए इस आयोजन में काफी सतर्कता बरती जा रही थी. 





- कलाकारों ने प्रस्तुत किया त्रेता युग का अलौकिक नजारा
- देव पूजन के लिए पुष्प लाने गए भाइयों के साथ मालियों ने खूब किया हास परिहास

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: नया बाजार स्थित श्री सीताराम विवाह महोत्सव के परिसर में उस वक्त मिथिला नगर का आभास हो रहा था जब 51 वें सिय-पिय मिलन महोत्सव के अंतर्गत पंडाल में 'पुष्प-वाटिका' प्रसंग के दौरान "जिया बसी रहूं पिया के नगरिया,  मिथिला नगरिया ना ..." और "एहो पथिकवर कहाँ तेरो शुभ घर, कहूँ तेरो पिताजी के नाम धनुर्धारियां .." जैसे मधुर गीत वहाँ गूंजने लगे. पुष्प वाटिका प्रसंग को देखने के लिए गुरुवार काफी संख्या में लोग पहुंचे थे लेकिन, कोरोना को लेकर छोटे स्तर पर किए गए इस आयोजन में काफी सतर्कता बरती जा रही थी. 


पुष्प वाटिका प्रसंग में दिखाया गया कि देव पूजन को गुरु विश्वामित्र श्रीराम को पुष्प लाने की आज्ञा देते हैं. भगवान श्रीराम, अनुज लक्ष्मण के साथ पुष्प लाने हेतु वैदेही वाटिका पहुंचते हैं. जहां जनक नंदनी जानकी व दशरथ नंदन श्रीराम की आंखें चार हो जाती हैं.

श्रीराम पुष्प के लिए वाटिका के पास पहुंचते हैं. वहां उन्हें देखते ही वाटिका की रखवाली को मुख्य द्वार पर तैनात माली उन्हें अंदर प्रवेश करने से रोक देते हैं. भगवान श्रीराम 'बंधु माली हो हमके चाहीं कछु तुलसी दल और फूल..' गाते हुए फूलवाड़ी में प्रवेश की अनुमति मांगते हैं, पर मालियों को तो उन्हें छकाना था. लिहाजा श्रीराम को उन्हीं के लहजे में माली गण जवाब देते हुए 'कइसे तुरब रउवा फूल धनुधारी हो..' कौतूहल करते हैं. त्रेतायुग का यह अलौकिक दृश्य पंडाल में बने 'वैदेही वाटिका' में साकार हो रहा था. प्रसंग के दौरान परिकर भगवान को रिझाने के लिए अपनी सुमधुर व प्रेममयी बातों से तरह-तरह के हास-परिहास कर रहे थे. उनकी द्विअर्थी विनोद पूर्ण बातों के उलझन में मिथिला की परंपरागत मेहमानी स्वागत के बीच भगवान श्रीराम उलझकर व अटककर रह जाते थे.




आखिरकार दोनों पक्षों की ओर से उलझन परवान चढ़ने पर मालियों ने यह महसूस कर लिया कि श्रीराम खुद के हाथों ही पुष्प उतारने पर अड़े हैं तो बीच का रास्ता निकालते हुए उन्हें वाटिका में प्रवेश की अनुमति तो दी, लेकिन उनके द्वारा जानकी की जयकारा लगाने के शर्त पर. जिसे सुन पहले तो श्रीराम व लक्ष्मण दोनों बिदके, परंतु दूसरा कोई चार नहीं देख जनक नंदनी की जयकारा लगाने की मालियों की शर्त को उन्हें पूरा करना पड़ता है। जिसके बाद भी मालीगण उनसे विनोद करने से नहीं चूकते हैं और मिथिला को अयोध्या के श्रीराम से श्रेष्ठ बताने के लिए तंज कसते हुए 'अब तो राम ने सीता की जय-जयकार बोल दिया, हमारे सूखे हिया में अमृत का मिठास घोल दिया..' गाते हुए खूब चुटकी लेते हैं.


मालियों की अनुमति पर दोनों भाई वाटिका के अंदर प्रवेश करते हैं और फुलवारी के सौंदर्य को निहारते हुए पुष्प तोड़ने रम जाते हैं. इसी बीच माता सीता अपनी सखियों के साथ गौरी पूजन को पहुंचती है. बाग घूमने के दौरान एक सखी की नजर दोनों भाइयों पर पड़ जाती है. जिसके तुरंत बाद भागी-भागी अन्य सखियों के पास जाती है तथा उनसे उनके सौंदर्य का वर्णन करती है. जिसे सुन वाटिका अवलोकन के बहाने जानकी जी भी भ्रमण करती हैं, इसी क्रम में दोनों की नजरें एक दूसरे पर पड़ती हैं और उनकी आंखें चार हो जाती हैं और सीताजी उसी समय मन ही मन भगवान श्रीराम को वरण कर लेती है. सीताजी वहां से लौटकर मंदिर में माता गौरी की पूजन करती है. जिससे प्रसन्न होकर श्री गौरी जी उन्हें उनकी मनोकामना पूर्ण होने की आशीष देती हैं. माता गौरी की आराधना कर सखियों संग मां जानकी महल में लौट जाती है. इधर भगवान श्रीराम भी पुष्प लेकर गुरु के पास पहुंचते हैं. गुरु विश्वामित्र श्रीराम के प्रेममयी भाव को टटोल उनकी कामनाएं पूरी होने का अशीर्वाद देते हैं.













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