बाजारवादी संस्कृति से बचाकर हो सकता है भोजपुरी का विकास: डॉ. भारवि

कहा कि आज भोजपुरी मात्र एक बोली ना होकर एक वैश्विक भाषा बन गई है. इस भाषा की साहित्यिक विरासत बहुत ही समृद्ध है. इसका लालित्य, ओज तथा संपन्नता सभी को प्रभावित करती है. संत कवि कबीर, भिखारी ठाकुर से लेकर आज भी इसके विकास के लिए भोजपुरी साहित्य मंडल जैसी संस्थाएं और डॉ. अरुण मोहन भारवि जैसे रचनाकार अपना खून-पसीना बहा रहे हैं. 








- विश्व मातृभाषा दिवस के मौके पर "भोजपुरी की दशा, दिशा एवं दुर्दशा पर आयोजित हुआ सेमिनार
- भोजपुरी भाषा की दुर्दशा पर भाषा प्रेमियों ने रखें अपने विचार, कवि सम्मेलन का भी हुआ आयोजन

बक्सर टॉप न्यूज़, बक्सर: विश्व की हजारों बोलिया अंतिम सांसे गिन रही हैं. बोली-भाषाओं की श्रीवृद्धि और समृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि इसे बाजारवादी संस्कृति से बचाया जाए. यह कहना है साहित्यकार डॉ. अरुण मोहन भारवि का. उन्होंने बताया कि भाषाओं के संरक्षण के लिए ही 21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस मनाने का फैसला 1999 में यूनेस्को के द्वारा लिया गया.

दरअसल, विश्व मातृभाषा दिवस के मौके पर भोजपुरी पत्रिका गधपूरना, अरुणोदय प्रकाशन तथा भोजपुरी साहित्य मंडल के संयुक्त बैनर तले भोजपुरी भाषा की दशा, दिशा एवं "दुर्दशा" पर एक सेमिनार का आयोजन बक्सर के बंगाली टोला स्थित आर्या एकेडमी के सभागार में किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता भोजपुरी साहित्य मंडल के अध्यक्ष अनिल कुमार त्रिवेदी ने की. इस दौरान जिले के प्रमुख नागरिकों, बुद्धिजीवी एवं साहित्यकारों ने कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. मौके पर स्व. चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह रचित एवं डॉ. अरुण मोहन भारवि द्वारा संपादित भोजपुरी इनसाइक्लोपीडिया पार्ट-टू का लोकार्पण भी किया गया.



सेमिनार के दौरान लोगों को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि बलिराज ठाकुर ने कहा कि आज भोजपुरी मात्र एक बोली ना होकर एक वैश्विक भाषा बन गई है. इस भाषा की साहित्यिक विरासत बहुत ही समृद्ध है. इसका लालित्य, ओज तथा संपन्नता सभी को प्रभावित करती है. संत कवि कबीर, भिखारी ठाकुर से लेकर आज भी इसके विकास के लिए भोजपुरी साहित्य मंडल जैसी संस्थाएं और डॉ. अरुण मोहन भारवि जैसे रचनाकार अपना खून-पसीना बहा रहे हैं. अब समय आ गया है इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए. डॉ बैरागी, प्रभात चतुर्वेदी तथा दीप नारायण सिंह ने कहा कि भोजपुरी को सरकारी कामकाज एवं बाजार की भाषा से जोड़ने पर ही इसका विकास संभव होगा. साहित्यकार कुमार नयन ने इसे रोजी-रोटी की भाषा से जोड़ने की बात कही. 

अध्यक्षीय संबोधन में अनिल कुमार त्रिवेदी ने कहा कि भोजपुरी साहित्य मंडल देश की सबसे पुरानी रजिस्टर्ड भोजपुरी संस्था है जो लगभग 75 सालों से मातृभाषा के लिए समर्पित है. इसे कमला प्रसाद मिश्र एवं गणेश दत्त किरण जैसे दिग्गज साहित्यकारों की दर्जनों पुस्तकों को संपादित और प्रकाशित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है. मौके पर डॉ. रमेश कुमार, श्री भगवान पांडेय, अतुल मोहन प्रसाद, अमरेंद्र दूबे शशि भूषण मिश्र, महेश्वर ओझा, रमाकांत तिवारी, शिव बहादुर पांडेय, रामेश्वर मिश्र "विहान", श्रीनिवास पाठक ने अपने विचार रखें. इस दौरान एक कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया जिसमें हिंदी और भोजपुरी के कवियों ने अपनी प्रस्तुतियों से खूब वाहवाही बटोरी.









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